चित्र -साभार गूगल
क्या कहें ? मुझे पहचानते नहीं हैं वोकभी परछाईं से भी मुझे जान लेते थे वोमेरी पलकों के आंसू भी थाम लेते थे वोसाथ है, मेरा उनका चालीस बरस कापर ऐसा लगता है, मुझे जानते नहीं है वो
हर रिश्ता निभाया है, जी जान से उन्होंनेलगाते उनको भी गले थे, दगा दिया हो जिन्होंनेकिसी के बेटे, किसी के भाई, किसी के पिता हैं वो,मेरे तो पती हैं, पर मानते नहीं है वो
वो अनुशासित रहे कदम दर कदमगुस्सा नाक पर रहता था हरदमबरस पड़ते थे, आंखें लाल कर किसी पर भीअब तो भौहें भी तानते नहीं हैं वो
हर फन में माहिर, हर क्षेत्र में गुनी थे वोसिद्धांतों के पक्के, मूल्यों के धनी थे वोआसमान से तोड़ लाते थे तारे भी एक पल में जोघर से निकलने को भी ठानते नहीं है वो
क्या कहे ? मुझे पहचानते नहीं वो
**जिज्ञासा सिंह**
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 5 दिसंबर 2020 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! ,
नमस्कार श्वेता जी, मेरी रचना को चयनित करने के लिए हृदय से आपका आभार व्यक्त करती हूँ..सादर..
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार शिवम जी, आपकी प्रशंसा का स्वागत है..सादर..।
हटाएंवो भले ही न पहचानें लेकिन अपना हाथ और साथ उनके साथ हमेशा बना रहे।
जवाब देंहटाएंयशवन्त जी, नमस्कार !आपने बिल्कुल सही कहा है..और लिखने का मकसद भी यही है हमें ऐसे अपनों से बिल्कुल जुड़ कर रहना चाहिए..सादर..।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-12-2020) को "उलूक बेवकूफ नहीं है" (चर्चा अंक- 3907) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आदरणीय शास्त्री जी, प्रणाम! मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका आभार व्यक्त करती हूँ, आपको मेरा नमन..।
हटाएंऐसे समय में ही जरूरत होती है बस स्पर्श की। सुन्दर।
जवाब देंहटाएंजोशी जी, नमस्कार !जी सही सलाह दी है आपने..।आपके स्नेह के लिए आभारी हूँ मैं..सादर..
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों तक उतरती हुई रचना, जिसे सिर्फ़ अनुभव किया जा सकता है, बहुत ही हृदयस्पर्शी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शान्तनु जी ,आपको मेरा सादर नमन ..।
हटाएंक्या कहे ? मुझे पहचानते नहीं वो
जवाब देंहटाएंकितनी पीड़ा भरी बेबसी है!!
मर्मांतक , दिल को बेधती रचना! हार्दिक शुभकामनाएं जिज्ञासा जी।
आपकी शुभकामना का हृदय से स्वागत करती हूँ .. रेणु जी,अपना स्नेह और प्रेम बनाए रखिएगा..सादर नमन..।
हटाएंबहुत ही हृदय स्पर्शी सृजन। हर बंद सराहना से परे।
जवाब देंहटाएंसादर
अनीता जी, आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी से अभिभूत हूँ..।आपकी सराहना निरंतर हौसला देगी..सादर जिज्ञासा..।
हटाएंबहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी...
जवाब देंहटाएंअल्जाइमर किसी अपने को...बहुत मानसिक पीड़ा देता है
भावपूर्ण सृजन
प्रोत्साहित प्रशंसा के लिए आपका हृदय से आभार सुधा जी..सादर नमन.. ।
जवाब देंहटाएंभगवान करे कि किसी को भी ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े.
जवाब देंहटाएंलेकिन अगर हमारा कोई अपना ऐसी स्थिति का सामना करता है तो हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम उस पर तरस खाने के बजाय उसे ख़ुशी के चंद लम्हे ज़रुर दें.