अल्ज़ाइमर से पीड़ित (मेरे अपने)

 

                                                                                                   चित्र -साभार गूगल  

                       
            क्या कहें ? मुझे पहचानते नहीं हैं वो  
                                                                
कभी परछाईं से भी मुझे जान लेते थे वो
मेरी पलकों के आंसू भी थाम लेते थे वो
साथ है, मेरा उनका चालीस बरस का
पर ऐसा लगता है, मुझे जानते नहीं है वो

 

हर रिश्ता निभाया है, जी जान से उन्होंने
लगाते उनको भी गले थे, दगा दिया हो जिन्होंने
किसी के बेटे, किसी के भाई, किसी के पिता हैं वो,
मेरे तो पती हैं, पर मानते नहीं है वो

 

वो अनुशासित रहे कदम दर कदम
गुस्सा नाक पर रहता था हरदम
बरस पड़ते थे, आंखें लाल कर किसी पर भी
अब तो भौहें भी तानते नहीं हैं वो


हर फन में माहिर, हर क्षेत्र में गुनी थे वो
सिद्धांतों के पक्के, मूल्यों के धनी थे वो
आसमान से तोड़ लाते थे तारे भी एक पल में जो 
घर से निकलने को भी ठानते नहीं है वो

 

क्या कहे ? मुझे पहचानते नहीं वो

                                                                                             **जिज्ञासा सिंह**

19 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 5 दिसंबर 2020 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! ,

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    1. नमस्कार श्वेता जी, मेरी रचना को चयनित करने के लिए हृदय से आपका आभार व्यक्त करती हूँ..सादर..

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  2. उत्तर
    1. बहुत-बहुत आभार शिवम जी, आपकी प्रशंसा का स्वागत है..सादर..।

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  3. वो भले ही न पहचानें लेकिन अपना हाथ और साथ उनके साथ हमेशा बना रहे।

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    1. यशवन्त जी, नमस्कार !आपने बिल्कुल सही कहा है..और लिखने का मकसद भी यही है हमें ऐसे अपनों से बिल्कुल जुड़ कर रहना चाहिए..सादर..।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-12-2020) को   "उलूक बेवकूफ नहीं है"   (चर्चा अंक- 3907)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. आदरणीय शास्त्री जी, प्रणाम! मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका आभार व्यक्त करती हूँ, आपको मेरा नमन..।

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  5. ऐसे समय में ही जरूरत होती है बस स्पर्श की। सुन्दर।

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  6. जोशी जी, नमस्कार !जी सही सलाह दी है आपने..।आपके स्नेह के लिए आभारी हूँ मैं..सादर..

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  7. दिल की गहराइयों तक उतरती हुई रचना, जिसे सिर्फ़ अनुभव किया जा सकता है, बहुत ही हृदयस्पर्शी।

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    1. बहुत बहुत आभार शान्तनु जी ,आपको मेरा सादर नमन ..।

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  8. क्या कहे ? मुझे पहचानते नहीं वो
    कितनी पीड़ा भरी बेबसी है!!
    मर्मांतक , दिल को बेधती रचना! हार्दिक शुभकामनाएं जिज्ञासा जी।

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    1. आपकी शुभकामना का हृदय से स्वागत करती हूँ .. रेणु जी,अपना स्नेह और प्रेम बनाए रखिएगा..सादर नमन..।

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  9. बहुत ही हृदय स्पर्शी सृजन। हर बंद सराहना से परे।
    सादर

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    1. अनीता जी, आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी से अभिभूत हूँ..।आपकी सराहना निरंतर हौसला देगी..सादर जिज्ञासा..।

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  10. बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी...
    अल्जाइमर किसी अपने को...बहुत मानसिक पीड़ा देता है
    भावपूर्ण सृजन

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  11. प्रोत्साहित प्रशंसा के लिए आपका हृदय से आभार सुधा जी..सादर नमन.. ।

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  12. भगवान करे कि किसी को भी ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े.
    लेकिन अगर हमारा कोई अपना ऐसी स्थिति का सामना करता है तो हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम उस पर तरस खाने के बजाय उसे ख़ुशी के चंद लम्हे ज़रुर दें.

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