तू इतना महान भी नहीं जितना बन रहा है
शिकारियों के बुने जाल में फंस रहा है
करीब से देखा है मैंने भी काफी करीब से
मुखातिब हुआ हूँ मैं भी गरीबी और गरीब से
हल चलाया है मैंने भी पसीने में तर बतर होकर
सोया हूँ निथरी खटिया पे थककर
किसान हूँ न नंगी आँखों से दुनिया देखी है
मेरे माथे पे लिखी मेरी लेखी है
मैंने भी लड़े हैं कई बार अधिकारों के युद्द
अपने ही लोगों के विरुद्ध
मशालें जलाई हैं अपने हाथों से
शिकंजे में रहा हूँ जेल की सलाखों के
कोड़े खाए हैं नंगी पीठ पर
मैं रोता रहा वो हँसते रहे अपनी जीत पर
तुम्हें क्या लग रहा है धरने से सब बदल जाएगा
या तुम्हारी किस्मत का दिया जल जाएगा
या भर देंगे व्यंजनों से तुम्हारी थाली ये
या हर दुःख दर्द से करेंगे तुम्हारी रखवाली ये
सुन मेरे भाई ! ऐसा कुछ नहीं होगा रे
तुम्हारे सपने जहाँ हैं वहीं रहेंगे धरे
और तू खिलौना बन कर रह जाएगा इनके हाथों का
बहकावे में मत आ, पिटारा है इनके पास खोखली बातों का
इनके बनाये कानूनों से मत डर
आगे बढ़ अपने फैसले खुद कर
तू तो अन्नदाता है तेरा दाता कोई नहीं
देता बस विधाता है दिलाता हमें अपना कर्म ही
तू अपनी नियति लेकर आया था वही लेकर जाएगा
किसान ! लफड़े में मत पड़, बेमौत मारा जाएगा
**जिज्ञासा सिंह**
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२-१२-२०२०) को 'मौन के अँधेरे कोने' (चर्चा अंक- ३९१३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
प्रिय अनीता जी, नमस्कार ! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..।आपको मेरी शुभकामनाएँ...।
हटाएंप्रिय जिज्ञासा जी,
जवाब देंहटाएंहल चलाया है मैंने भी पसीने में तर बतर होकर
सोया हूँ निथरी खटिया पे थककर
किसान हूँ न नंगी आँखों से दुनिया देखी है
मेरे माथे पे लिखी मेरी लेखी है
बहुत मार्मिक कविता...
हार्दिक शुभकामनाएं,
डॉ. वर्षा सिंह
प्रिय वर्षा जी, नमस्कार ! आपने अपना समय देकर कविता पढ़ी और अपनी सुंदर प्रतिक्रिया दी.. जिसके लिए आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूँ..।सादर..।
हटाएं🙏
हटाएंऔर तू खिलौना बन कर रह जाएगा इनके हाथों का
जवाब देंहटाएंबहकावे में मत आ, पिटारा है इनके पास खोखली बातों का
बेहद हृदयस्पर्शी रचना 👌
आदरणीय अनुराधा जी, आपका बहुत बहुत आभार..। आपकी टिप्पणी का ब्लॉग पर हृदय से स्वागत करती हूँ..।आपको मेरा नमन..।
जवाब देंहटाएंतू तो अन्नदाता है तेरा दाता कोई नहीं
जवाब देंहटाएंदेता बस विधाता है दिलाता हमें अपना कर्म ही
तू अपनी नियति लेकर आया था वही लेकर जाएगा
किसान ! लफड़े में मत पड़, बेमौत मारा जाएगा
मर्मस्पर्शी रचना....
विकास जी,आपकी सराहनीय टिप्पणी के लिए हृदय से आपका आभार व्यक्त करती हूँ..।ब्लॉग पर आपके स्नेह का स्वागत है, आदर के साथ जिज्ञासा..।
जवाब देंहटाएंबात सही है। सभी को किसानों के आंदोलन में सहभागी बनकर कॉर्पोरेट्स को लाभ पहुंचाने वाले कानूनों को रद्द करने हेतु सरकार को मजबूर करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंयशवंत जी आपकी प्रतिक्रिया का सम्मान करते हुए मैं ये कहना चाहती हूँ ,कि देश के विकास के लिए किसान का समृद्ध होना बहुत आवश्यक है ,परंतु अगर हमारा औद्योगिक ढाँचा मज़बूत नहीं होगा तो देश का सर्वांगीण विकास सम्भव नहीं हो सकता अतः सरकार के हर क़ानून का हम विरोध नहीं कर सकते हाँ सरकार को सभी वर्गों की राय ज़रूर लेनी चाहिए जो व्यावहारिक हो..। और किसानों के लिए जो व्यवस्था की जाय ,वो लचीली और उनके हित में हो जिससे उन्हें बेवजह की परेशानी न उठानी पड़े..।सादर नमन...।
जवाब देंहटाएंतुम्हें क्या लग रहा है धरने से सब बदल जाएगा
जवाब देंहटाएंया तुम्हारी किस्मत का दिया जल जाएगा
या भर देंगे व्यंजनों से तुम्हारी थाली ये
या हर दुःख दर्द से करेंगे तुम्हारी रखवाली ये
सही कहा किसान तो बस मुद्दा मात्र हैं खेल तो सियासत और विपक्ष का है....।
बहुत सटीक सुन्दर एवं लाजवाब सृजन
सुधा जी,आपकी तथ्यपरक टिप्पणी के लिए हृदय से धन्यवाद प्रेषित करती हूँ, आपको मेरा सादर अभिवादन...।
हटाएंनिहित स्वार्थ और राजनीति के फंदे में फंसा बचारा किसान!
जवाब देंहटाएंआदरणीय प्रतिभा जी, आपका कथन बिल्कुल सत्य है , आपने ब्लॉग पर अपना समय दिया जिसके लिए आभारी हूँ, सादर नमन..।
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआदरणीय जोशी जी ,आपकी प्रतिक्रिया हमेशा हौसला बढ़ाती है, सादर नमन..।
जवाब देंहटाएंकिसान की पीड़ा को समझने का सार्थक प्रयास !!!
जवाब देंहटाएंशरद जी आपका ब्लॉग पर आने के साथ साथ, प्रशंसनीय प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत बहुत आभार..।सादर नमन..।
जवाब देंहटाएंअत्यंत प्रभावी लेखन ।
जवाब देंहटाएंअमृता जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर नमन.. ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शिवम जी..!
जवाब देंहटाएं