अपना अपना संतोष (सीख)

चित्र-साभार गूगल 

कुछ मिट्टी कुछ जल

थोड़ी सी हरियाली

चले बसाने अंतरिक्ष में 

एक दुनिया निराली


सोचा कामवाली को ले लूँ 

करेगी सारा काम

अंतरिक्ष में रहेगा आराम


बर्तन वाली से पूँछा 

वो बोली  बाबा 

मुझे नहीं जाना


पोंछे वाली को समझाया

उसने कुछ ऐसा पाठ पढ़ाया


बोली मकान नम्बर ३६वाले साहब बीमार हैं

मेमसाहिब चलने में लाचार हैं


१६नंबर वाली गईं है विदेश

छोड़कर पूरे घर का लफड़ा

साहब आफिस जाएँगे

कौन करेगा खाना बर्तन कपड़ा


आप तो जानती हैं

साक्षी मेमसाब टीचर हैं

और तो और अपना तो

ससुरा खसम भी बड़ा शनीचर है


मारता पीटता ज़रूर है

पर उसे जीने का नहीं सऊर है

पिएगा पिलाएगा

मछरियाँ लेके आएगा


कौन बनाएगा मेमसाब

आपके साहब..आपके साहब

तो आपके साथ ही जाएँगे

उहीं नई दुनिया बसाएँगे


लड़का बच्चा उहीं पढ़ेंगे

उहीं बियाह होगा

अपना तो सब कुछ इहीं है

मेमसाहब अपना तो इहीं निबाह होगा


**जिज्ञासा**

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