चित्र साभार गूगल
आज़ पहली बार आज़ाद हुई मैं
चली हूँ अपनी चाल जैसे ही
वो कहते हैं अब तो बर्बाद हुई मैं
उड़ रहे हैं पंख अब हवाओं में
परिंदों का परवाज़ हुई मैं
रोके कोई बेशक मुझे अब भी
रुकेगी न उड़ान मेरी यारों
साथ देंगे जमीं आसमाँ मेरा
जोड़ करके सजा लूँगी मैं टूटे तारों
देख लेना मुझे तुम आज़मा के
अब न टूटेंगे ख़्वाब मेरे फिर
कौन कहता है सज नहीं सकता
हीरे मोती का ताज मेरे सिर
बन भी जाए गर रहगुजर कोई
तो आसमां भी थाम लेंगे हम
मिला न साथ तो भी कोई बात नही
राह कांटों में भी अपनी निकाल लेंगे हम
यही वो बात है मुझमें जो
सबसे जुदा करती है मुझको
आसमां में भी एक सुराख
जो दिखा सकती है सबको
कभी अनजान थी मैं अपने और तुम्हारे से
अब परिचय की नहीं मोहताज मैं
रख दिया है कदम मैंने पहली सीढ़ी पे
देखना हो के रहूंगी अब से कामयाब मैं
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी लिखी रचना सोमवार 19 सितम्बर ,2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
दिन बना दिया आपने ।मेरी बहुत प्रिय रचना का चयन करके। बहुत बहुत आभार दीदी ।
हटाएंचली हूँ अपनी चाल जैसे ही
जवाब देंहटाएंवो कहते हैं अब तो बर्बाद हुई मैं
उड़ रहे हैं पंख अब हवाओं में
परिंदों का परवाज़ हुई मैं
उनकी इजाजत के बगैर चलने वाले उन्हें बर्बाद ही नजर आते हैं...
बहुत सुन्दर सार्थक एवं प्रेरक सृजन
वाह!!!
मेरी इतनी पुरानी पोस्ट पर इतनी सुंदर टिप्पणी अपनी सखी की अहा। आनंदम ।
हटाएंरख दिया है कदम मैंने पहली सीढ़ी पे
जवाब देंहटाएंदेखना हो के रहूंगी अब से कामयाब मैं
आमीन!!
स्वयं के अस्तित्व को एक सुदृढ़ पहचान देती आत्मविश्वास का सुंदर गान जिज्ञासा जी।
प्रेरक कृति
सस्नेह।
मेरी प्रेरक सखियों की सक्रियता इस पोस्ट पर देख मन बागबाग है ।शुक्रिया दोस्त ।
हटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय जिज्ञासा जी।नारी मन की पूर्ण स्वतंत्रता का उद्घोष सच में इतना ही जोशीला और रौबिला होना चाहिए।इस अभिव्यक्ति में एक स्वर और-----
जवाब देंहटाएंखोल कर सब बन्ध मेरे
कर दो ना मुकम्मल मुझे!
घुट रही साँसें बंधन में
कर रही घायल मुझे!
अपनी मर्जी से हरगिज
ना लिखो मेरी तक़दीर तुम!
आगे मेरी परवाज के ,
खिंचो ना इक लकीर तुम!
तुमने जो ढूंढ़ा है शायद
छोटा वो आसमान है ]
आगे तारों से क्या पता
कहीं कोई मेरा जहान है!
साथ रहकर सबके ही,
फिर भी ही जुदा हूँ मैं !
तराश लूंगी खुद को,]
खुद अपना खुदा हूँ मैं!
मुझे भी संग-संग धार के,
बह जाने दो तनिक !
उल्टी लहरों से उलझ,
उस पार जाने दो तनिक!
मनचाहे सपनों के संग!
भर लूँ लम्बी परवाज मैं!
कल की नहीं फिक्र मुझे
जी भरके जी लूँ आज मैं
हार्दिक बधाई इस प्रेरक रचना के लिए !
ओहो ! मेरी कविता इतनी नायाब कविता ।क्या संगम है ! बहुत खुशी हुई इस सुंदर रचना से मिलकर और आपकी प्रतिक्रिया तो फूलों का हार। धन्यवाद आपका।
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