धागा हूँ मैं या बिलकुल धागे जैसी,
ताउम्र मोतियों को पिरोया मैंने
अस्तित्व को अपने छिपा लिया ख़ुद से ही,
चल पड़ी मोती की माला बनने
गुजरती रही सिर झुकाए,
पिसती रही मोतियों के भीतर
हज़ार बार दबकर के,
तैयार हुई माला बनकर
झूम उठा ख़ुशी से एक एक मोती,
गले पड़ी सुंदरी के माला ज्यों ही
मोती की महिमा है दूर तलक फैली,
मिट गया वजूद धागे का यों ही
**जिज्ञासा**
झूम उठा ख़ुशी से एक एक मोती,
जवाब देंहटाएंगले पड़ी सुंदरी के माला ज्यों ही
मोती की महिमा है दूर तलक फैली,
मिट गया वजूद धागे का यों ही
वाह !!बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना,संगीता दी के प्रयास के फलस्वरूप आज आपकी पहली रचना को पढ़ने का सौभाग्य मिला,सादर नमन
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआहा कितना तथ्यपूर्ण लिखा है आपने बहुत सुंदर गूढ़ अर्थ समेटे सराहनीय कृति प्रथम रचना यूँ भी विशेष होती है।
जवाब देंहटाएंपढ़कर बहुत अच्छा लगा।
सस्नेह प्रणाम प्रिय जिज्ञासा जी।
सादर।
बहुत सुन्दर 👌
जवाब देंहटाएंआह! सच धागे के प्रतीक से पर्दे के पीछे कंधों पर भार लिए खड़े हर शख्स का दर्द ।
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी सत्य।
गहन भावाभिव्यक्ति । नारी अपना अस्तित्त्व मिटा कर ही माला बनाती है परिवार के रूप में ।।
जवाब देंहटाएंमोती की महिमा है दूर तलक फैली,
जवाब देंहटाएंमिट गया वजूद धागे का यों ही
उफ्…धागे की ओट में बहुत गहरी बात कह दी आपने😊
मोती की महिमा है दूर तलक फैली,
जवाब देंहटाएंमिट गया वजूद धागे का यों ही
उफ्…धागे की ओट में बहुत गहरी बात कह दी आपने😊
आप सब सुधिजनों का बहुत बहुत आभार।आपकी प्रशंसा भरी अभिव्यक्ति को सादर नमन।
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