हर्ष है अतिरेक हर्ष ।
रामलला आयेंगे देने फिर हमें दर्श ।।
बेला गुलाब खिले, तुलसी की मंजरी ।
उपवन वन झूम रहे, कुसमित है अवधपुरी ।।
फूलों की लड़ियाँ हैं बिछी हुई राहों में,
आतुर है सृष्टि भी करने को पदस्पर्श ।
धोऊँगी आज चरण प्रभु अपने अँसुअन से ।।
मलिनता का शाप लिए बहती रही युग युग से,
कर लो प्रभु स्नान हो जाए उत्कर्ष ।
दर्शन को व्याकुल हैं,नयन नहीं धरें धीर ।
कण कण में बसे फिर भी, दिखें नहीं रघुवीर ।।
हिय में उतारने की बेला को आने में,
बीते कई कालखंड बीते विगत कई वर्ष ।
तुलसी धुन गूंज रही गाएं भजन मीरा भी ।।
रामधुन गा गा के नृत्य करें नर नारी,
भूल गए दशकों से किए गए संघर्ष ।
रामराज फिर होगा आस जगी है मन में ।
फैलेगा उजियारा जन जन के आंगन में ।।
कंचन सिंहासन पे बैठे हैं रामसिया,
हाथ जोड़े खड़े भक्त करने को अनुकर्ष ।
हर्ष है अतिरेक हर्ष ।।
**जिज्ञासा सिंह**
जय श्री राम..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन..
बहुत आभार प्रिय अर्पिता।
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