प्रेम से परे


बहुत कुछ है प्रेम से परे भी !


देखा है कई बार प्रेम से चलकर ।

जिया भी प्रेम के संग,

 यहाँ वहाँ इधर उधर ।।

आसमानों में । बाग़ानों में ।।

झील के किनारों पे ।चाँद और सितारों पे ।।

उछल कूदकर ।पेड़ों के इर्द गिर्द छुपकर ।।

रज़ाई कंबलों में सिमटकर ,उनकी आँखों में ठहरे भी !

पर बहुत कुछ है प्रेम से परे भी !!


हम तो ठहरते रहे प्रेम के हर आशियाने में  ।

प्रेम को सजाने में  ।।

मकान भी बनाया ।मचान भी सजाया ।।

मंजरियों लताओं से ।बासंती हवाओं से ।।

झूम झूम कर लिपटते रहे ।

उन्हीं में सिमटते रहे ।।

साधते सहेजते प्रेम को, जाने कितनी बार बिखरे भी !

यहाँ बहुत कुछ है प्रेम से परे भी !!


प्रेम की कभी कभी तो बांसुरी सी बजी ।

और मैं राधिका सी सजी ।।

मधुर तानों में डूबी ।कृष्न की खूबी ।।

मेरे शीश पर चढ़ी ।

चाँद सितारों से मढ़ी ।।

मैं अग्नि के फेरे भी लगा गई ।

उनके हिय में समा गई ।।

और गहरे, और गहरे,और गहरे भी !

किन्तु , बहुत कुछ है प्रेम से परे भी !!


कहते हैं प्रेम तपस्या हैं प्रेम त्याग है ।

प्रेम संगीत है राग है ।।

वंदन है नर्तन है ।जीवन है मरन है ।।

अपना है पराया है  ।

रग रग में समाया है ।।

प्रेम संसार है । प्रेम निराकार है ।।

है तो ये, बड़ा ही विशाल ।

नहीं है कोई इसकी मिसाल ।।

पर छुपते, छुपाते नैनों में, ये आँसू बन अपनी गति से झरे भी !

सच है ! यहाँ बहुत कुछ है प्रेम से परे भी !!

 बहुत कुछ है प्रेम से परे भी !!


**जिज्ञासा सिंह**

33 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 23 नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी..अवश्य दीदी ।आपके स्नेह के लिए आभारी हूँ ।"पांच लिंकों का आनन्द" के मंच पर मेरी कविता प्रकाशित करने के लिए आपका धन्यवाद । सादर अभिवादन..।

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 23 नवंबर 2020 को 'इन दिनों ज़रूरी है दूसरों के काम आना' (चर्चा अंक-3894) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. नमस्कार रवीन्द्र जी ! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका आभार..।आदर सहित..।

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  4. सच है ! यहाँ बहुत कुछ है प्रेम से परे भी !!
    बहुत कुछ है प्रेम से परे भी !!
    –अद्धभुत! आप बुद्ध हैं
    साधुवाद

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    1. प्रणाम दीदी,
      सराहना के लिए हृदयतल से आपकी आभारी हूँ..।सादर..।

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    1. नमस्कार ओंकार जी ,
      प्रशंसा के लिए आपका आभार व्यक्त करती हूँ..।

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    1. नमस्कार जोशी जी,
      आपकी टिप्पणी हमेशा हौसला बाढ़ा देती है..। सादर..।

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  7. प्रणाम उर्मिला दी,
    आपकी प्रशंसा उत्साहवर्धन करेगी और नई कविता का सृजन होगा..।सादर धन्यवाद..।

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  8. बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर।

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    1. वीरेंद्र जी नमस्कार,
      आपकी सुंदर टिप्पणी के लिए आभारी हूँ..।मेरे ब्लॉग पर अपना स्नेह बनाए रखें..।सादर..।

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  9. आपकी प्रशंसा भरी टिप्पणी से उत्साह बढ़ता है..।आपका सादर अभिवादन..।

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  10. बहुत ही सुंदर मन को छूती अभिव्यक्ति।
    बहुत कुछ है प्रेम से परे भी।..वाह! सराहनीय।
    सादर

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  11. आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी से हमेशा हौसला बढ़ता है आपका बहुत बहुत आभार..।अपना स्नेह बनाए रखें ।सादर..।

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  12. बहुत सुंदर दिल को छूती रचना।

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  13. प्रेम संसार है । प्रेम निराकार है ।।

    है तो ये, बड़ा ही विशाल ।

    नहीं है कोई इसकी मिसाल ।। बहुत ख़ूबसूरती से प्रेम की विशालता को शब्दों में आपने ढाला है - - अध्यात्म की दिव्य अनुभूति को महीनता से उकेरा है - - नमन सह।

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    1. शांतनु जी नमस्कार ,
      आपकी अकल्पनीय प्रशंसा से अभिभूत हूँ, मैं अभी नई ब्लॉगर हूँ, परंतु आप लोगों के स्नेह से निरंतर हौसला मिल रहा है आदर सहित धन्यवाद..।

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  14. धन्यावाद ज्योति जी ,अपना स्नेह ऐसे ही बनाए रखें..।सादर ..।

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  15. बहुत सुंदर गहन अहसास सुंदर शाश्र्वत ।
    सच कहा आपने बहुत कुछ है प्रेम से परे भी,
    जी सचमुच बहुत बहुत कुछ होता है संसार में प्रेम से परे भी ।
    अभिनव भाव अभिनव सृजन।

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  16. इतनी सराहनीय टिप्पणी का क्या जवाब दूँ ? शब्द नहीं हैं । लग रहा है, जीवन में बहुत कुछ मिल गया है..।आपको मेरा अभिवादन और बंदन..।कृपया आज की कविता को ज़रूर पढ़ें..। जिज्ञासा...।

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  17. आपकी लिखी रचना सोमवार. 14 फरवरी 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  18. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर... सही कहा बहुत कुछ है प्रेम से परे भी...प्रेम बहुत कुछ है पर सब कुछ नहीं
    गहन एवं लाजवाब सृजन।

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  19. प्यार से भी जरूरी कई काम है
    प्यार सबकुछ नहीं ज़िंदगी के लिए...
    ग----
    पर प्रेम सबकुछ न होकर भी बहुत कुछ है न...।
    सुंदर अभिव्यक्ति जिज्ञासा जी।

    सस्नेह।

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  20. प्रेम से परे भी तो प्रेम ही है,इस ढाई आखर में ही तो समस्त खुशहाल संसार सिमटा है, यही खत्म हो रहा है संसार से इसलिए ये बिखर भी रहा है, बहुत ही सुन्दर सृजन जिज्ञासा जी 🙏

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  21. इस प्रेम से परे ने मुझे भी आकर्षित किया था , तभी न लिया था इस रचना को । प्रेम तिलिस्म की तरह , कहाँ जान पाया कोई । बहुत अच्छी रचना ।

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  22. और भी गम हैं जमाने में मुहब्बत के सिवाय!-------
    यही पँक्तियाँ याद दिलाती है ये रचना। दुनिया के तमाम लोग प्रेम करते हैं ,इसे पाते भी हैं पर जो पूरा हुआ वो प्रेम कभी नहीं माना गया और जो अधूरा रह गया वह एक टीस जगाकर आगे बढ़ गया।समझ अन्त में यही आया कि इसमें क्यों जी लगाया! और बहुत कुछ था चिंतन करने के लिए।एक बहुत रोचक और भावों से सजी रचना हार्दिक बधाई प्रिय जिज्ञासा ♥️

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  23. सुन्दर रचना के लिये पुष्कल साधुवाद स्वीकारें जिज्ञासा सिंह जी

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