चित्र -साभार गूगल
माँऽऽऽऽऽ !! फिर छू कर चला गया कोई, अभी अभी
बिल्कुल अभी अभी, अरेऽऽऽऽ !! कहा न, अभी अभी
बार बार क्यूँ पूछ रही हो ? ऐसी बात
जो घायल कर रहे मेरे ज़ज्बात
उफ्फ्फ ! आज लाडली को फिर छू गया कोई
गहरेऽऽ, अनंत गहरे, घाव फिर दे गया कोई
न जाने कभी भरेंगे ,भी ये
या नित होते रहेंगे हरे ये
ये सोचते हुए मैंने बेटी का हाथ पकड़ा
उस की उंगलियों को अपनी उंगलियों से कस्स से जकड़ा
और तेज़ कदमों से घर की तरफ भागी
लगा जैसे पीछा कर रही हो कोई विकराल आँधी
जो मेरी लाडली को घोट कर पी जाएगी
उसके कोमल मन पर बरछी चला जाएगी
और वह यही, सोचते हुए बड़ी होगी
कि कदमों के हर मोड़ पर एक हथकड़ी होगी
जिसमें जीवन भर जकड़ी रहेगी वो
और मैं कौन सी दिलासा दिलाऊँगी उसको
कि हाऽऽय मैं तो कुछ कर ही नहीं सकती
लोग ऐसे ही होते हैं, मैं बदल नहीं सकती
मेरे ज़माने से ऐसा होता आ रहा है
जो कुछ तुम्हें आज दिख रहा है
वो तो तुम्हें झेलना ही पड़ेगा
किसी से कहना मत, वरना हर कोई तुम पर हँसेगा
ख़ामोश देख ,बेटी ने कहा, कहाँ खो गईं अम्मा ?
क्यों गुमसुम हो मेरी प्यारी अच्छी मम्मा ?
शांत रहो ,क्यूँ परेशान हो ?
तुम इतनी सी ही बात पर हैरान हो
अरे मैं तो खुद को क्या ?दस अपने जैसों को संभाल लूँगी
वो सामने तो आ जाए तुम्हें ऐसी मिसाल दूँगी
जो तुम भूल नहीं पाओगी कभी भी
और ऐसी घटनाएँ होंगीं जहाँ कहीं भी
लोग तुम्हारी बेटी का हवाला देकर
अपनी औलाद को बनाएंगे बहादुर
मैंने बेटी को आश्चर्य से देखा औऱ मुस्कराई
अपनी ही सोच पर मुझे हंसी आई
मैं उसकी बातों को सुनकर हैरान थी
अपनी परवरिश पर मुझको हुआ अभिमान भी
**जिज्ञासा सिंह**
बेहतरीन....
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना !!!
हार्दिक बधाई!!!
शरद जी ,आपकी सराहनीय टिप्पणी को हृदयतल से मेरा नमन..।सादर...।
हटाएंबहुत खूब जिज्ञासा जी! बहुधा सुकोमल बालिकाओं के लिए , ज़माने के असंवेदनशील और कुत्सित रवैये के फलस्वरूप प्राय हर माँ अपनी बेटी के प्रति असुरक्षा की भावना से ग्रस्त रहती है। इसके पीछे उसके किशोर वय के अपने अनुभव और पूर्वाग्रह भी होते हैं। पर आज तस्वीर दूसरी भी हैं। हमारी बेटियां ऐसे छद्म तत्वों से निपटने में खुद बहुत सक्षम हैं। बहुत सकारात्मक रचना जो निराशा में आशा की किरण दिखाती है। सुंदर सार्थक प्रेरक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं🙏 🙏❤🌹
जवाब देंहटाएंआपकी सुंदर प्रतिक्रिया बहुत ही सृजनात्मकता से भरी होती है ,जो और भी कुछ नया लिखने के लिए प्रेरित करती है..।आपकी हर बात अक्षरशः सही है..।आपको मेरा नमन..।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-11-2020) को "असम्भव कुछ भी नहीं" (चर्चा अंक-3900) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार ! मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार..।सादर...।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 28 नवंबर नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार..।हार्दिक शुभकामनाएँ..।
जवाब देंहटाएंबालिकाओं का बहादुर होना आज के समय की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंजी..।बिल्कुल सही कहा आपने यशवंत जी..।आपका आभार और नमन..।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआदरणीय जोशी जी,आपकी प्रशंसा का स्वागत है..।आपको मेरा अभिवादन...।
हटाएंमैं उसकी बातों को सुनकर हैरान थी
जवाब देंहटाएंअपनी परवरिश पर मुझको हुआ अभिमान भी
बहुत ही ह्रदय स्पर्शी रचना, साहस और संस्कार दोनों ही ज़रूरी हैं, कोई भी अन्याय आंख मूंद के सहना भी आत्म प्रतारणा से कम नहीं - - प्रभावशाली लेखन।
जी शान्तनु जी,आपका कथन बिल्कुल सत्य है..।आपकी हृदय स्पर्शी टिप्पणी का हृदय से स्वागत है..।आपको मेरा अभिवादन...।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ओंकार जी, आपकी प्रशंसा को नमन है..।सादर..।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सधु जी..।नमन सह..।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआदरणीय सिन्हा जी, सादर धन्यवाद और आपको मेरा नमन..।
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