पास की झुग्गी में बहुत ज़ोर शोरशराबा हुआ
वो दिखा दांत पीसता हुआ
जबड़े कसे ऐसे, जैसे चबा जाएगा
खा जाएगा
उसे कच्चा ही
इतना समझा ही
था कि वह भौंकने लगा
कुत्ते की तरह नोचने लगा
उसके गाल
खींचने लगा उसके बाल
और खींचते खींचते ले गया मेरी आँखों से दूर
वह खें खें चिल्लाती रही हो के मजबूर
अरे मार डाला,मार डाला
देती रही हवाला
हाथ उठा उठा
दहाड़ लगा लगा
पुकारती रही
चिंघाड़ती रही
भीड़ बढ़ती गई
तमाशबीन बनती गई
मैं भी बालकनी में लटकी रही
जहाँ तक वो दिखी देखती रही
आँखें फाड़ फाड़ के
फिर हाथ मुँह झाड़ के
धीरे से अन्दर आ गई
टीवी का रिमोट हाथ में थाम
धम्म से सोफ़े में समा गई
**जिज्ञासा**
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिग्विजय जी, मेरी रचना को शामिल करने के लिए मैं हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर नमन..। मेरे ब्लॉग गागर में सागर पे आपका स्वागत है..सादर..।
जवाब देंहटाएंसंज्ञाशून्य हो जाना, कभी-कभी मानव की नियति बन जाती है। पर एक कवि, संज्ञाशून्य कैसे हो।
जवाब देंहटाएंऐसे संवेदनशील विषय को मुखर करने के लिए साधुवाद जिज्ञासा जी।
आपकी इतनी सुंदर विश्लेषण युक्त प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..। आपको मेरा हार्दिक अभिवादन...।कृपया मेरे गागर में सागर ब्लॉग लिंक पर अवश्य भ्रमण करें..।आपका स्वागत है..।
जवाब देंहटाएंएक पहलू ये भी। सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआदरणीय जोशी जी, आपका बहुत-बहुत आभार व्यक्त करती हूँ..सादर नमन..।
जवाब देंहटाएंयथार्थ एक अटूट सच्चाई कह दी आपने अपने आप को प्रतीक बना कर आपने सभी के नकाब के अंदर का चेहरा दिखाया है मजबूरी का खोल चढ़ा कर ।
जवाब देंहटाएंयथार्थ पर सीधा प्रहार करती गहन रचना।
आप जैसे मर्मज्ञ लोगों का साथ हो तो कहने की हिम्मत पड़ जाती है,आपके प्रोत्साहन के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया..।
जवाब देंहटाएंआज की दास्ताँ कहें या वर्षों पुरानी ये होता था होता है
जवाब देंहटाएंऔर......, बहुत कुशलता से भाओं का वर्णन की आपने।सुन्दर सर्जन
जी, आदरणीय दीदी नमस्कार! आपकी प्रतिक्रिया से मैं सहमत हूँ, आपकी प्रशंसा को नमन है..!
हटाएंआज की इस दिखावटी दुनिया का यह भी एक पहलू हैं
जवाब देंहटाएंहम चाह के भी कुछ कर नहीं सकते
बहुत ही सार्थक प्रयास
सही कहा आपने शकुंतला जी, जब तक पूरा समाज नहीं जागरूक होता तब तक इन समस्याओं को हम अकेले नहीं खत्म कर सकते..और पूरा समाज जागरूक हो ये सच में हमारे बस में नहीं..आपकी प्रशंसा को नमन है..!
जवाब देंहटाएंदिल छू! लेने वाली बात...! बहुत खूब...! अभी पढ़े और जाने
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