प्रार्थना तू कितनी महान है
चिंता भय शोक में डूबा हुआ मानव
तेरे सानिध्य में बनता इंसान है
प्रार्थना...
दुःखों का अंबार बौना नज़र आता है
करती अकाट्य कष्टों का निदान है
प्रार्थना...
मन का मैल धो देती है सदा के लिए
मन भरता तितली सी उड़ान है
प्रार्थना...
द्वेष घृणा ईर्ष्या कोसों दूर चले जाते हैं
मनन ही हर उलझन का निदान है
र्प्राथना...
नकार देती है मन में भरा अशुभ चिंतन
स्वस्थ विचारों को देती उचित स्थान है
प्रार्थना...
**जिज्ञासा**
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 16 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंप्रिय दिव्या जी, "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार..। सादर नमन..।
जवाब देंहटाएंबहुत सही।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी, आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है, अपना आशीर्वाद बनाए रखें..सादर नमन...।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार जोशी जी आपका..आपकी प्रशंसा से हमेशा हौसला बढ़ता है...सादर नमन.. ।
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए दिलबाग सिंह जी आपका बहुत आभार व्यक्त करती हूँ, सादर नमन.. ।
हटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय प्रार्थना।
जवाब देंहटाएंसादर
प्रिय अनीता जी, आपका तहेदिल से आभार व्यक्त करती हूँ, सादर नमन.. ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंआदरणीय अनुराधा चौहान जी, नमस्कार ! प्रशंसनीय टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत आभार..।
हटाएंअलौकिक ।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया भी अलौकिक है..सादर, सस्नेह..जिज्ञासा..।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंदुःखों का अंबार बौना नज़र आता है
जवाब देंहटाएंकरती अकाट्य कष्टों का निदान है
प्रार्थना... दिव्य सृजन।
शांतनु जी आपकी इतनी दिव्य टिप्पणी के लिए मैं क्या आभार करूँ..बस अभिभूत हूँ..सादर नमन.. !
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