अरे ! आज फिर मारी गई मैं
कहूं किससे ये जज़्बात अपने
गर्भ में ही जब मौत के घाट उतारी गई मैं
अभी तो बीज से अंकुरित ही हुई थी मैं
जड़ सहित दोनो हाथों से उखारी गई मैं
प्रस्फुटित जैसे हुई कोपल औे शाखा मेरी
झेल कैंची और कटारी गई मैं
कभी कन्या, कभी देवी, कभी संसार की जननी
बड़े भावों के साथ पूजी कुमारी गई मैं
कभी इस जहाँ में मेरा बड़ा सम्मान होता था
जाने किस बात पे यूँ दिल से निकारी गई मैं
सभी कहते हैं,लड़की एक बोझ होती है
इस दौर में बन,कर्ज उधारी गई मैं
भला ये कौन मानेगा, कि मै भी तुल्य हूँ उनके
मुद्दतों से छली बारी बारी गई मैं
वक्त बदला है पर कुछ लोग अब भी हैं मेरे दुश्मन
ऐसे लोगों की वजह से, बन विपदा भारी गई मैं
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र-साभार गूगल
सार्थक सामयिक रचना। कुछ बदलाव के बाद भी आज भी हममें से अधिकांश लोग लड़कियों को बोझ समझने की मानसिकता से उबर नहीं पाए हैं।
जवाब देंहटाएंयशवन्त जी आपका बहुत-बहुत आभार..आपकी प्रतिक्रिया से मैं सहमत हूँ..।सादर नमन..
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" (1980...सुरमई-सी तैरती मिहिकाएँ...) पर गुरुवार 17 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र जी,नमस्कार ! मेरी रचना"पांच लिंकों का आनन्द" पर प्रकाशित करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..।सादर..।
हटाएंमार्मिक अभिव्यक्ति प्रिय जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंसामाज में वैचारिकी जागरूकता का अभाव और विकृत मानसिकता के परिणामस्वरूप ऐसे कृत्य होते हैं।
किंतु वर्तमान परिदृश्य में बदलाव दिखते तो हैं।
प्रिय श्वेता जी आपने ब्लॉग पर समय देकर अपनी सराहनीय प्रतिक्रिया दी
जवाब देंहटाएंअपको मेरा नमन और वंदन..।मेरे ब्लॉग लिंक गागर में सागर पे आपका स्वागत है..जिज्ञासा..।
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 17-12-2020) को "बेटियाँ -पवन-ऋचाएँ हैं" (चर्चा अंक- 3919) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
कृपया दिनांक 17-12-2020 के स्थान पर 18-12-2020 पढ़े. सादर...
हटाएंजी अवश्य, सादर अभिवादन..!
हटाएंआदरणीय मीना जी, चर्चा अंक का शीर्षक इतना सुन्दर है तो अंक भी बेहतरीन होगा. इसी आशा और शुभकामनाओं के साथ, मेरी रचना को शामिल को शामिल करने के लिए आपको सहृदय धन्यवाद..सादर नमन..।
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक चित्रण
जवाब देंहटाएंप्रिय शकुंतला जी, प्रेरक टिप्पणी के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..।नमन सह..।
जवाब देंहटाएं–आखिर क्यों...!
जवाब देंहटाएंजी, आदरणीय दीदी जी, नमस्कार! यही तो प्रश्न है? मूढ़ मानसिकता को खत्म करने तथा स्त्री उत्थान के लिए अभी बहुत कार्य करने की आवश्यकता है..सादर नमन..!
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी सृजन
जवाब देंहटाएंअभी भी तथाकथित शिष्ट परिवारों में भी बेटी बेटे का भेदभाव दिखाई देता है....ऐसे लोग बेटे की चाह में ऐसे पाप कर रहे हैं।
हृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति,एक एक प्रश्न आत्मा तक उतरता।
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने कुछ लोगों के कारण..
अब सोच बदल रही है परिणाम भी काफी अच्छे आ रहे हैं ।
बाकी सब कुछ बदलने में समय और मानसिकता दोनों को बदलना होगा।
साधुवाद।
जी, कुसुम जी, आपकी प्रशंसा मुझे हमेशा आनंदित करती है और गौरवान्वित भी..सदैव स्नेह की आकांक्षा में जिज्ञासा..मेरे अन्य ब्लॉग लिंक पर, समय हो तो अवश्य निगाह डालें..सादर नमन..!
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