मेरे नैनों ने विवश हो, कल ये मुझसे कह दिया
थक गया हूँ साथ रहकर, स्वप्न मत देखो प्रिये
नींद से बोझिल इधर मैं, तुम उधर सपनों में खोयीं
इस तरह की कशमकश में, मत मुझे छोड़ो प्रिये
मेरी पुतली भी सिकुड़ कर तनहा, तिनका रह गई
ऐसा पागल इश्क भी देता नहीं शोभा प्रिये
इश्क़ की परछाइयाँ भी छोड़ देंगी एक दिन
शाम होते छोड़कर जाता चला साया प्रिये
ग़र समझ लो वक्त रहते इश्क़ की गुस्ताखियाँ
फिर मुझे हर वक्त पड़ता यूँ नहीं रोना प्रिये
मेरे नैनों ने विवश हो, कल ये मुझसे कह दिया
थक गया हूँ साथ रहकर, स्वप्न मत देखो प्रिये
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल
ग़र समझ लो वक्त रहते इश्क़ की गुस्ताखियाँ
जवाब देंहटाएंफिर मुझे हर वक्त पड़ता यूँ नहीं रोना प्रिये
सटीक।
ज्योति जी आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी का हृदय से नमन करती हूँ..सादर..
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 27 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंप्रिय दिव्या जी ,आपने मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" शामिल करने के लिए चयनित किया जिसका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर नमन..
हटाएंबहुत सुन्दर और मार्मिक रचना।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार! आपकी प्रशंसा का हृदय से नमन करती हूँ..सादर..
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंयशवन्त जी आपका बहुत-बहुत आभार एवं आपको मेरा नमन..
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 28 दिसंबर 2020 को 'होंगे नूतन साल में, फिर अच्छे सम्बन्ध' (चर्चा अंक 3929) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
रवीन्द्र जी,नमस्कार! आपने मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए चयनित किया, जिसके लिए तहेदिल से आभारी हूँ.अपको मेरी शुभकामनाएँ..
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआदरणीय जोशी जी, बहुत बहुत आभार के साथ, आपको मेरा अभिवादन..
हटाएंमेरे नैनों ने विवश हो, कल ये मुझसे कह दिया
जवाब देंहटाएंथक गया हूँ साथ रहकर, स्वप्न मत देखो प्रिये
सुन्दर सृजन।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद, आपके स्नेह की आभारी हूँ..
जवाब देंहटाएंभावों को बड़ी कोमलता से कविता में पिरोया है आपने जिज्ञासा जी,
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनाएं 💐🙏💐
- डॉ. वर्षा सिंह
आपकी सराहनीय टिप्पणी को नमन करती हूँ..वर्षा जी आपके स्नेह के लिए हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..।
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंओंकार जी आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूँ..सादर नमन..।
हटाएंबेहद हृदयस्पर्शी सृजन
जवाब देंहटाएंअनुराधा जी आपके स्नेह की आभारी हूँ..आपकी प्रशंसा को नमन करती हूँ..सादर..
हटाएंवाह!बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनीता जी, आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी को नमन करती हूँ..सादर..
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद दीपक जी, सादर नमन..
हटाएंदिल को छू गई आपकी रचना बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंशकुंतला जी आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ सादर नमन..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगीं पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद धन्यवाद संजय जी..सादर नमन..
हटाएंइश्क़ की परछाइयाँ भी छोड़ देंगी एक दिन
जवाब देंहटाएंशाम होते छोड़कर जाता चला साया प्रिये
ग़र समझ लो वक्त रहते इश्क़ की गुस्ताखियाँ
फिर मुझे हर वक्त पड़ता यूँ नहीं रोना प्रिये
बहुत खूब प्रिय जिज्ञासा जी। नैन हों या अंतर्मन हर इंसान को व्यर्थ के लगाव और प्रपंचों से बचने
के आगाह करता है पर दिल है कि मानता ही नहीं। सुंदर रचना के लिए बधाई शुभकामनाएं ❤🙏🌹
बहुत ही गूढ़ समझ रखती हैं आप प्रियरेणुजी. सटीक प्रशंसा भरी टिप्पणी के लिए हृदय से आभार..
जवाब देंहटाएंआपकी इस शायराना अभिव्यक्ति पर आने में मुझे विलंब हुआ जिज्ञासा जी लेकिन सौभाग्य है मेरा कि आ ही गया । प्रत्येक भावुक हृदय के लिए अमूल्य हैं आपकी ये पंक्तियां ।
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