नहीं देखी कभी भी इस तरह की तितलियाँ मैंने
हज़ारों पँख में खुद को लपेटे हैं हुए जो
कि जैसे चम चमाती आसमानी बिजलियाँ मैंने
कसम से देखकर मैं डर गया हूँ इनकी फितरत
न देखीं थीं कभी भी इस तरह की शोखियाँ मैंने
कभी फ़ूलों पे मंडराते नहीं देखा इन्हें मैंने
सदा पेड़ों के बुर्जों पे बनातीं आशियाँ अपने
जहाँ देखें परिंदे आसमानी उड़ रहे हैं
ये पंखों को बना देती हैं रंगीं आसमाँ अपने
अगर तुमको कहीं राहों में उड़ती ये दिखें तो
समझ लेना बहारें खुद बनाने आ गई हैं गुलिस्ताँ अपने
कभी सोचा नहीं था इतने काबिल पंख हैं इनके
ये लाकर चाँद तारों को बिठातीं दरमियाँ अपने
पढ़ूँ इनके कशीदे कितने भी, पर कम ही लगते हैं
ये खुलकर हैं दिखातीं हर तरफ़ हैं माज़दा अपने
ये तितली हर क़दीमी आवरण भी तोड़ देती हैं
मिला लेती हैं संग में आजकल की लड़कियाँ अपने
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल
क़दीमी - दकियानूसी
ये तितली हर क़दीमी आवरण भी तोड़ देती हैं
जवाब देंहटाएंमिला लेती हैं संग में आजकल की लड़कियाँ अपने
बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियां जिज्ञासा जी...बहुत सुंदर...
पूरी रचना का मर्म इन दो पंक्तियों में है...
श्रेष्ठ रचना 💐
शरद जी, नमस्कार ! आपकी सराहनीय टिप्पणी ने अभिभूत कर दिया..आपका बहुत-बहुत आभार..!
हटाएंबहुत खूब ... हर शेर / छंद ओने आप में पूरी बात कहता हुआ ... बहुत लाजवाब रचना ...
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी, नमस्कार ! आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी को हृदय से नमन करती हूँ..आपका बहुत बहुत आभार..
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-12-2020) को "ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन" (चर्चा अंक-3928) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार ! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका आभार एवं मेरी हार्दिक शुभकामनायें..!
हटाएंये तितली हर क़दीमी आवरण भी तोड़ देती हैं
जवाब देंहटाएंमिला लेती हैं संग में आजकल की लड़कियाँ अपने
वाह! बहुत सुंदर!!!
विश्वमोहन जी, नमस्कार! आपकी प्रशंसा को तहेदिल से नमन करती हूँ..
हटाएंइन शोखियों में घोली जाए थोड़ी और उड़ान फिर उसमें मिलाई जाए अपनी पहचान तो होगा जो नशा तैयार उसै देखेगा सारा संसार ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब अमृता जी! मज़ा आ आपकी तुकबंदी पढ़कर..आत्मीय प्रशंसा को नमन है..
जवाब देंहटाएंपढ़ूँ इनके कशीदे कितने भी, पर कम ही लगते हैं
जवाब देंहटाएंये खुलकर हैं दिखातीं हर तरफ़ हैं माज़दा अपने
ये तितली हर क़दीमी आवरण भी तोड़ देती हैं
मिला लेती हैं संग में आजकल की लड़कियाँ अपने
सुन्दर।
सधु जी, आप की प्रशंसा को नमन करती हूँ सादर जिज्ञासा सिंह..
हटाएंकभी सोचा नहीं था इतने काबिल पंख हैं इनके
जवाब देंहटाएंये लाकर चाँद तारों को बिठातीं दरमियाँ अपने
वाह!!!
लाजवाब...
सुधा जी आपकी प्रशंसा को हृदय से नमन करती हूँ सादर जिज्ञासा सिंह..
हटाएंबहुत ख़ूबसूरत पंक्तियां आदरणीया जिज्ञासा जी...बहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंपूरी रचना का मर्म इक शाश्वत सत्य को बयाँ कर रही है...
सुन्दर रचना 💐
आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी का अभिनंदन करती हूँ..सादर नमस्कार..
हटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन आदरणीय दी।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार ! प्रिय अनीता जी, स्नेह और शुभकामनाएँ..
जवाब देंहटाएंवाह👌👌बेटियों के आवरणहीन स्वछंद जीवन पर रोचक रचना प्रिय जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु जी, आपकी प्रशंसा भरी प्रतिक्रिया को नमन करती हूँ..
जवाब देंहटाएं