शून्य हूँ ! कल शून्य में मिलना मुझे है
पर सफर ये शून्य का कैसे करूँ मैं ।
शून्य के अंजान पथ पर अग्रणी हो
चल रे मनवा हाथ तेरा पकड़ लूँ मैं ।।
शून्य अम्बर, शून्य धरती,शून्य जग ये
फिर भी मानव खेलता है शून्य से ।
है अटल से भी अटल ये शून्य का भ्रम
युद्ध सा है चल रहा मूर्धन्य से ।।
घोर हाहाकर सा है दिख रहा
शून्य के प्रतिरोध में हर मनुज जीता ।
शून्य को चाहो बना लो अजर अविकल
या बना लो अमरता की तुम सुभीता ।।
शून्य का ये चक्र सा जो चल रहा
डोलते हैं हम सभी उस चाक में ।
कौन है जो अडिग अविचल जी सके
कौन है जिसको न मिलना ख़ाक में ।।
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 28 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिग्विजय जी, नमस्कार ! मेरी रचना को"सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" शामिल करने के लिए आपका बहुत आभार व्यक्त करती हूँ..सादर..
हटाएंबहुत खूब। सभी को खाक में मिलना है। शुभकामनाएं। सादर।
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत आभार वीरेंद्र जी..सादर नमन..
हटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंजाते हुए साल को प्रणाम।
आदरणीय शास्त्री जी,नमस्कार ! आपकी स्नेहसिक्त प्रतिक्रिया के लिए आपका नमन और वंदन करती हूँ..सादर..
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जवाब देंहटाएंशून्य अम्बर, शून्य धरती,शून्य जग ये
फिर भी मानव खेलता है शून्य से ।
है अटल से भी अटल ये शून्य का भ्रम
युद्ध सा है चल रहा मूर्धन्य से ।।
सचमुच बड़ा महत्व है इस शून्य का...और शून्य हो जाना किसी को पसंद नहीं....जबकि अन्ततः शूनि में ही मिलना है
लाजवाब सृजन।
सुंदर प्रासंगिक व्याख्या के साथ सराहनीय टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ..सादर नमन..
हटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपकी मूल्यवान प्रशंसा को नमन औरवंदन .. आपको मेरा अभिवादन..सादर ..
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-12-20) को "नया साल मंगलमय होवे" (चर्चा अंक 3930) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
चर्चा अंक में मेरी रचना शामिल करने के लिए आपको हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें..
हटाएंशून्य हूँ ! कल शून्य में मिलना मुझे है
जवाब देंहटाएंपर सफर ये शून्य का कैसे करूँ मैं ।
शून्य के अंजान पथ पर अग्रणी हो
चल रे मनवा हाथ तेरा पकड़ लूँ मैं ।।
अंदाज़े बयां ऐसा कि हर शब्द, निशब्द कर जाये - - बेहद सुन्दर सृजन।
आपकी अति प्रशंसनीय टिप्पणी को हृदय से नमन करती हूँ..आपका कोटि कोटि आभार..सादर अभिवादन..
जवाब देंहटाएंकौन है जो अडिग अविचल जी सके
जवाब देंहटाएंकौन है जिसको न मिलना ख़ाक में ।
–सच्चाई
आदरणीय विभा रानी दी, आपकी प्रशंसा का हृदय से नमन और वंदन करती हूँ..सादर जिज्ञासा..
हटाएंशून्य का ये चक्र सा जो चल रहा
जवाब देंहटाएंडोलते हैं हम सभी उस चाक में ।
जीवन सत्य यही तो है । शून्य को परिभाषित करती अति सुन्दर कृति।
आदरणीय मीना जी, आपकी प्रशंसा को तहेदिल से नमन करती हूँ..सादर अभिवादन..।
हटाएंवाह!,बेहतरीन सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शुभा जी , सादर नमन !
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता जी..सादर नमन..
हटाएंशून्यवत ... हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी से अभिभूत हूँ..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंशून्य का ये चक्र सा जो चल रहा
जवाब देंहटाएंडोलते हैं हम सभी उस चाक में ।
कौन है जो अडिग अविचल जी सके
कौन है जिसको न मिलना ख़ाक में ।
बहुत सुन्दर रचना | बधाई की साथ नव वर्ष की शत शत शुभ कामनाएं
जी, आलोक सर !आपकी स्नेहपूर्ण प्रशंसा को नमन करते हुए आपको प्रणाम प्रेषित करती हूँ..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें..सादर जिज्ञासा सिंह..
हटाएंसार्थक रचना है यह आपकी जिज्ञासा जी । संसार का भी एवं जीवन का भी सत्य तो अंततः यही है ।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ सादर नमन..
जवाब देंहटाएंशून्य का ये चक्र सा जो चल रहा
जवाब देंहटाएंडोलते हैं हम सभी उस चाक में ।
कौन है जो अडिग अविचल जी सके
कौन है जिसको न मिलना ख़ाक में ।।
जीवन की नश्वरता की गहनता से पड़ताल करती विद्वता पूर्ण रचना प्रिय जिज्ञासा जी।
इतनी सुन्दर उपमा देने के लिए जितना आभार व्यक्त करूँ कम है प्रिय रेणु जी आपकी सुन्दर और सशक्त भाषा को नमन करती हूँ 💐
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