जब जागो तभी सवेरा

वही जो समझना मुश्किल, समझना चाहता है मन 
घनी बस्ती में होकर के, निकलना चाहता है मन 

दिशाएँ देखकर अवरुद्ध, कहीं से रास्ता निकले 
यही एक बात है जो सोचना, अब चाहता है मन 

किनारे ही किनारे से, चले जाने को है बेबस 
भँवर में डोलती नैया, को खेना चाहता है मन 

अगर चलते समय से, तो पहुंचना सहज हो जाता 
कटीले मार्ग को उपवन, बनाना चाहता है मन 

ये काँटे भी तो उसने ही, उगाये थे बहुत पहले 
चुभे जब पाँव में तो, राह तजना चाहता है मन 

पता क्या था कि एक दिन ? रास्ता मिलना कठिन होगा 
पुरानी उन लकीरों को, मिटाना चाहता है मन 

अगर खुद के बनाए रास्ते, इतने कठिन हों तो 
कर्म का आंकलन निज से ही, करना चाहता है मन 

अगर ऐसा सुलभ सौंदर्य, खुद में ही प्रकट होगा 
तो समझो इस धरा पे, राज करना चाहता है मन 

**जिज्ञासा सिंह**

26 टिप्‍पणियां:

  1. ये काँटे भी तो उसने ही, उगाये थे बहुत पहले
    चुभे जब पाँव में तो, राह तजना चाहता है मन

    बहुत खूबसूरत रचना रची आपने जिज्ञासा ।
    मन जिज्ञासाएँ उमड़ने लगी आपकी इस रचना को पढ़कर।
    बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    सादर।

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    1. उत्साह वर्धक प्रशंसा के लिए आपका बहुत बहुत आभार..प्रिय सधु जी सादर नमन..

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  2. मन की स्थितियों का खूबसूरत शब्दचित्र।

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    1. आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का हृदय से नमन करती हूँ ..सादर..

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    1. गगन जी, आपकी प्रशंसा को नमन करती हूँ.सादर अभिवादन..

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  4. पता क्या था कि एक दिन ? रास्ता मिलना कठिन होगा
    पुरानी उन लकीरों को, मिटाना चाहता है मन

    बहुत ख़ूब...
    हार्दिक शुभकामनाएं,
    डॉ. वर्षा सिंह

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    1. वर्षा जी, आपकी स्नेहसिक्त प्रशंसा का आभार व्यक्त करती हूँ..सादर नमन..

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    1. जितेन्द्र जी, आपकी सराहना का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर अभिवादन..

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  7. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-2-21) को "शाखाओं पर लदे सुमन हैं" (चर्चा अंक 3965) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा


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  8. कामिनी जी,
    नमस्कार ! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ हार्दिक शुभकामनाओं सहित सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह..

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  9. बहुत बहुत आभार आदरणीय..सादर नमन..

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  10. भला कौन मन राज करना नहीं चाहता होगा पर उसके लिए बहुत साधना होगा मन ।

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  11. वाह!बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय दी मन की डगर को साधती।
    सादर

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  12. बहुत बहुत आभार प्रिय अनीता जी, सादर नमन..

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  13. बहुत बहुत आभार आदरणीय..सादर नमन..

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  14. अगर खुद के बनाए रास्ते, इतने कठिन हों तो
    कर्म का आंकलन निज से ही, करना चाहता है मन
    गहन भावों का समावेश हर पंक्ति में ...!!

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