वही जो समझना मुश्किल, समझना चाहता है मन
घनी बस्ती में होकर के, निकलना चाहता है मन
दिशाएँ देखकर अवरुद्ध, कहीं से रास्ता निकले
यही एक बात है जो सोचना, अब चाहता है मन
किनारे ही किनारे से, चले जाने को है बेबस
भँवर में डोलती नैया, को खेना चाहता है मन
अगर चलते समय से, तो पहुंचना सहज हो जाता
कटीले मार्ग को उपवन, बनाना चाहता है मन
ये काँटे भी तो उसने ही, उगाये थे बहुत पहले
चुभे जब पाँव में तो, राह तजना चाहता है मन
पता क्या था कि एक दिन ? रास्ता मिलना कठिन होगा
पुरानी उन लकीरों को, मिटाना चाहता है मन
अगर खुद के बनाए रास्ते, इतने कठिन हों तो
कर्म का आंकलन निज से ही, करना चाहता है मन
अगर ऐसा सुलभ सौंदर्य, खुद में ही प्रकट होगा
तो समझो इस धरा पे, राज करना चाहता है मन
**जिज्ञासा सिंह**
ये काँटे भी तो उसने ही, उगाये थे बहुत पहले
जवाब देंहटाएंचुभे जब पाँव में तो, राह तजना चाहता है मन
बहुत खूबसूरत रचना रची आपने जिज्ञासा ।
मन जिज्ञासाएँ उमड़ने लगी आपकी इस रचना को पढ़कर।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सादर।
उत्साह वर्धक प्रशंसा के लिए आपका बहुत बहुत आभार..प्रिय सधु जी सादर नमन..
हटाएंमन की स्थितियों का खूबसूरत शब्दचित्र।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का हृदय से नमन करती हूँ ..सादर..
हटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंगगन जी, आपकी प्रशंसा को नमन करती हूँ.सादर अभिवादन..
हटाएंपता क्या था कि एक दिन ? रास्ता मिलना कठिन होगा
जवाब देंहटाएंपुरानी उन लकीरों को, मिटाना चाहता है मन
बहुत ख़ूब...
हार्दिक शुभकामनाएं,
डॉ. वर्षा सिंह
वर्षा जी, आपकी स्नेहसिक्त प्रशंसा का आभार व्यक्त करती हूँ..सादर नमन..
हटाएंबहुत ख़ूब जिज्ञासा जी !
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी, आपकी सराहना का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर अभिवादन..
हटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंशिवम् जी, बहुत बहुत आभार शिवम् जी..सादर नमन..
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-2-21) को "शाखाओं पर लदे सुमन हैं" (चर्चा अंक 3965) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
कामिनी जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार ! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ हार्दिक शुभकामनाओं सहित सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह..
अच्छी रचना .
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंभला कौन मन राज करना नहीं चाहता होगा पर उसके लिए बहुत साधना होगा मन ।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने..सादर..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शांतनु जी, सादर अभिवादन..
हटाएंवाह!बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय दी मन की डगर को साधती।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार प्रिय अनीता जी, सादर नमन..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंअगर खुद के बनाए रास्ते, इतने कठिन हों तो
जवाब देंहटाएंकर्म का आंकलन निज से ही, करना चाहता है मन
गहन भावों का समावेश हर पंक्ति में ...!!