किराए में


किराए में बहुत कुछ मिलता है

घर मकान,ऊँची बड़ी दुकान,
गहना और खाने का सामान
यूँ कहें आजकल ,किराए पे कोख में बच्चा पलता है

दूल्हा दुल्हन,  शादी का जोड़ा, शेरवानी
शादी में मम्मी पापा, नाना नानी
यूँ कहें किराए पे सात फेरों पे, घी का दिया जलता है

किराए पे भीड़, बुला लेते हैं नेतागण 
बिजली पानी राशन, साथ देते है लंबे भाषण
ये किराए का जातिवाद और भ्रष्टाचार बहुत खलता है

चाँद पर मैंने भी ली है जमीन किराए पे
सैटलाइट में बैठ के जाएंगे किराए पे
सुना है खाना कपड़ा पानी, वहाँ किराए पे सब पहुंचता है

सब किराए पे मिले, तो काम क्या करना
अपना चैनो हराम क्या करना ?
किराया देती रहेगी अगली पीढ़ी, 
अपना क्या खाक कुछ बिगड़ता है

किराए में बहुत कुछ मिलता है

     **जिज्ञासा सिंह**

32 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है! बहुत खूब। बहुत बढिय़ा। आपको बधाई। सादर।

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  2. जी हाँ जिज्ञासा जी । झूठा और दिखावटी प्यार और झूठी इज़्ज़त तक किराये पर मिल जाते हैं ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद जितेन्द्र जी, बिल्कुल सही कहा आपने..सादर..

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज बुधवार 03 फरवरी को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी, नमस्कार ! मेरी रचना  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर शुभकामनाओं के साथ. जिज्ञासा सिंह..

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  5. किराए पर सभी कुछ मिलता है..
    क्या बात कही आपने..बहुत सुंदर..
    सादर प्रणाम

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  6. बहुत बहुत धन्यवाद आपका ..आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी का हृदय से स्वागत है..सादर..

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  7. सार्थक व्यंग्यपूर्ण रचना।
    किराए पर बहुत कुछ मिलता है लेकिन सब कुछ नहीं मिल सकता।

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    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार..सादर नमन..

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    1. आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी के लिए हृदय से आपका आभार व्यक्त करती हूँ विश्वमोहन जी, ..सादर नमन..

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  9. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (०४-०२-२०२१) को 'जन्मदिन पर' (चर्चा अंक-३९६७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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    1. प्रिय अनीता जी, मेरी रचना चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ.. शुभकामनाओं सहित सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह..

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  10. किराए में बहुत कुछ मिलता है। बहुत सुंदर रचना,जिज्ञासा दी।

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  11. प्रिय ज्योति जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद..सादर नमन..

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  12. वर्तमान दशा पर कटाक्ष करती सार्थक रचना 🌹🙏🌹

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  13. बहुत बहुत आभार ओंकार जी, सादर नमन..

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  14. सब किराए पे मिले, तो काम क्या करना
    अपना चैनो हराम क्या करना ?
    किराया देती रहेगी अगली पीढ़ी,
    अपना क्या खाक कुछ बिगड़ता है


    बिलकुल सत्य है,करारा व्यंग लाजबाब सृजन ,सादर नमन आपको

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय कामिनी जी, ब्लॉग पर आपके स्नेह की आभारी हूँ..सादर नमन..

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  16. वर्तमान परिपेक्ष्य में रची सुन्दर और सकारात्मक रचना।

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    1. आदरणीय शास्त्री जी, आपकी स्नेह सिक्त प्रशंसा हमेशा हौसला बढ़ाती है..सादर नमन..

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  17. बहुत खूब ! पर एक बात है किराए पर रिश्ते जरूर मिल जाते हैं पर ममता, वात्सल्य अपनापन ...........!

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    1. सच कहा आपने ! आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी को नमन करती हूँ..सादर अभिवादन..

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  18. वर्तमान जीवन जीने के लिए जो प्राइस करने पड़ते हैं ताकि हम सुविधा से जी सकें
    किराए वाली इस मानसिकता को औऱ बाजारवाद की की सच्चाई को उजागर करती कमाल की रचना
    बहुत खूब
    बधाई

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय! आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया को तहेदिल से नमन है..सादर..

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  19. सच, किराए पर सब कुछ मिल जाता है। बाजार को चलाने के लिए किराएदारों की ही जरूरत है। बेहतरीन व्यंग्य रचना जिज्ञासा जी।

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  20. बहुत आभार प्रिय मीना जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन है..सादर..

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