बनाये घूमते, फिरते, कैसी सूरतेहाल हो ?
भई ! तुम बड़े ही कमाल हो !!
गुंजाइशें घूमती हैं तुम्हारे इर्द गिर्द
देखते नहीं उनको आँख उठा के तुम
हर वक्त रहते बेहाल हो !
क्या पता कौन सी कोशिश रंग ले आए
आज़माओ तो खुद को
क्यों बनते फटेहाल हो !
बुरा से बुरा दौर गुजर जाता है
बस वक्त को थोड़ा वक्त दो
भागते जा रहे भेड़चाल हो !
देखते रहो रास्ते इधर उधर के तुम
वरना भटक जाओगे मंज़िल के निकट
पकाते पुलावों का ख़याल हो !
अजनबी भी हाथ पकड़ लेते हैं
गिर रहे हो जब किसी डगर पे तुम
छोड़ते क्यों नहीं भ्रमों का जाल हो ?
बनते बिगड़ते रहेंगे, मत पल पल
अपनी कल्पना को सजाओ ज़रा
फ़ालतू रहते बजाते गाल हो !
साथ देती हैं गुंजाईशें भीड़ में भी
सम्भालते रहो कदम अपने
चाहे कोई भी युग हो या काल हो !
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल
क्या पता कौन सी कोशिश रंग ले आए ....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन, धनात्मक रचना।
पुरुषोत्तम जी, आपकी प्रशंसा भरी टिप्पणी को नमन करती हूँ..सादर..
हटाएंआपने अपनी इस कविता में जीवन के प्रति, गतिशील, सार्थक एवं सकारात्मक सोच को रेखांकित किया है जिज्ञासा जी । यह रचना प्रेरक भी है, साथ ही बहुत व्यावहारिक भी ।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी, आपकी सराहनीय एवं व्याख्यात्मक प्रशंसा से अभिभूत हूँ..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंसाथ देती हैं गुंजाईशें भीड़ में भी
जवाब देंहटाएंसम्भालते रहो कदम अपने
चाहे कोई भी युग हो या काल हो !
सही कहा...
बहुत अच्छी यथार्थपरक कविता
बहुत बहुत आभार, प्रिय वर्षा जी, आपकी प्रशंसा को नमन है..सादर..
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 10 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंप्रिय दिव्या जी, नमस्कार! मेरी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" शामिल करने के लिए आपका हृदय से अभिनंदन करती हूँ..हार्दिक शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंहर काल में गाल बजाते, फटेहाल, बेहाल लोग अपने ख्याली पुलावों के भ्रमजाल फंस भेड़चाल नहीं छोड़ पाते ! कमाल है
जवाब देंहटाएंसार्थक एवं प्रशंसनीय टिप्पणी को नमन करती हूँ..सादर..
हटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ जोशी जी.. सादर नमन..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब जिज्ञासा जी , अपने आप में खोये आत्म मुग्ध लोगों की क्या कहिये ! ये निरे मुंगेरी लाल हैं बस --- भ्रामक कल्पनाओं के भंवर में डूबते - उबरते ये जीवन का स्वर्णिम काल बिता देते हैं और संभावनाओं की ओर एक नज़र भी नहीं डालते | युवा वर्ग इसकी चपेट में सबसे ज्यादा है | अपनी तरह की आप रचना !
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसनीय टिप्पणी से निरंतर मनोबल बढ़ता है प्रिय रेणु जी, आपके सरस स्नेह की हृदय से आभारी हूँ..सादर नमन..
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