गुंजाईशें

बनाये घूमते, फिरते,  कैसी सूरतेहाल हो ?
भई ! तुम बड़े ही कमाल हो !!

गुंजाइशें घूमती हैं तुम्हारे इर्द गिर्द 
देखते नहीं उनको आँख उठा के तुम 
हर वक्त रहते बेहाल हो !

क्या पता कौन सी कोशिश रंग ले आए 
आज़माओ तो खुद को 
क्यों बनते फटेहाल हो !

बुरा से बुरा दौर गुजर जाता है 
बस वक्त को थोड़ा वक्त दो 
भागते जा रहे भेड़चाल हो !

देखते रहो रास्ते इधर उधर के तुम 
वरना भटक जाओगे मंज़िल के निकट 
पकाते पुलावों का ख़याल हो !

अजनबी भी हाथ पकड़ लेते हैं 
गिर रहे हो जब किसी डगर पे तुम 
छोड़ते क्यों नहीं भ्रमों का जाल हो ?

बनते बिगड़ते रहेंगे, मत पल पल 
अपनी कल्पना को सजाओ ज़रा 
फ़ालतू रहते बजाते गाल हो !

साथ देती हैं गुंजाईशें भीड़ में भी 
सम्भालते रहो कदम अपने 
चाहे कोई भी युग हो या काल हो !

 **जिज्ञासा सिंह** 
चित्र साभार गूगल 

14 टिप्‍पणियां:

  1. क्या पता कौन सी कोशिश रंग ले आए ....
    बेहतरीन, धनात्मक रचना।

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    1. पुरुषोत्तम जी, आपकी प्रशंसा भरी टिप्पणी को नमन करती हूँ..सादर..

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  2. आपने अपनी इस कविता में जीवन के प्रति, गतिशील, सार्थक एवं सकारात्मक सोच को रेखांकित किया है जिज्ञासा जी । यह रचना प्रेरक भी है, साथ ही बहुत व्यावहारिक भी ।

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  3. जितेन्द्र जी, आपकी सराहनीय एवं व्याख्यात्मक प्रशंसा से अभिभूत हूँ..सादर नमन..

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  4. साथ देती हैं गुंजाईशें भीड़ में भी
    सम्भालते रहो कदम अपने
    चाहे कोई भी युग हो या काल हो !

    सही कहा...
    बहुत अच्छी यथार्थपरक कविता

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    1. बहुत बहुत आभार, प्रिय वर्षा जी, आपकी प्रशंसा को नमन है..सादर..

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  5. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 10 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. प्रिय दिव्या जी, नमस्कार! मेरी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" शामिल करने के लिए आपका हृदय से अभिनंदन करती हूँ..हार्दिक शुभकामनायें..

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  7. हर काल में गाल बजाते, फटेहाल, बेहाल लोग अपने ख्याली पुलावों के भ्रमजाल फंस भेड़चाल नहीं छोड़ पाते ! कमाल है

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    1. सार्थक एवं प्रशंसनीय टिप्पणी को नमन करती हूँ..सादर..

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  8. आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ जोशी जी.. सादर नमन..

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  9. बहुत खूब जिज्ञासा जी , अपने आप में खोये आत्म मुग्ध लोगों की क्या कहिये ! ये निरे मुंगेरी लाल हैं बस --- भ्रामक कल्पनाओं के भंवर में डूबते - उबरते ये जीवन का स्वर्णिम काल बिता देते हैं और संभावनाओं की ओर एक नज़र भी नहीं डालते | युवा वर्ग इसकी चपेट में सबसे ज्यादा है | अपनी तरह की आप रचना !

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  10. आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी से निरंतर मनोबल बढ़ता है प्रिय रेणु जी, आपके सरस स्नेह की हृदय से आभारी हूँ..सादर नमन..

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