गली मोहल्ले के कुत्ते रोटी डालते ही
गेट पर दौड़े चले आते हैं
रात भर भौंकते हैं साथ में
पिल्ले भी कूँ कूँऽऽ चिल्लाते हैं
पीढ़ी दर पीढ़ी विराजमान हैं यहाँ
अक्सर गाड़ी से दबकर चोटिल हो जाते हैं
कई बार तो बिना इलाज
पड़े पड़े मर भी जाते है
पर जो बचते हैं वो अहसानों के तले
दबे नज़र आते हैं
वो एक रोटी का मोल
जीवन पर्यंत चुकाते चले जाते हैं
और हम इंसान किसकी कितनी रोटी खाई
ये बहुत जल्दी भूल जाते हैं
तुमने हमारे लिए क्या किया ?
कहते हुए बिलकुल नहीं शर्माते है
**जिज्ञासा**
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 08 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिग्विजय जी, मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर नमन..
हटाएंआपने बिलकुल ठीक कहा जिज्ञासा जी । कुत्ते से अधिक कृतज्ञ कोई नहीं तथा मनुष्य से अधिक कृतघ्न (तथा निर्लज्जता की सीमा तक स्वार्थी) कोई नहीं । कुत्तों की इस कृतज्ञता (तथा मूक प्रेम) को मैंने अपने जीवन में स्वयं अनेक बार अनुभव किया है । जहाँ तक अधिसंख्य मनुष्यों के साथ मेरे अनुभवों की बात है, कुछ न कहना ही उचित है । आपने एक नग्न सत्य को रेखांकित किया है । साहसिक कार्य है यह आपका ।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी, नमस्कार ! सुन्दर और व्याख्यात्मक प्रशंसा को नमन करती हूँ..सादर..
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंजोशी जी, नमस्कार ! आपकी प्रशंसा को नमन करती हूँ..सादर..
हटाएंसुन्दर बात कही है।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहनीय टिप्पणी को नमन करती हूँ..सादर..
जवाब देंहटाएंजीवन की वास्तविकता उजागर करती, बहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंशांतनु जी, आपकी प्रशंसा को नमन है सादर अभिवादन..
जवाब देंहटाएंकभी ये गुण इंसानों में पाया जाता था पर बेज़ुबाँ जानवर शायद इसका निर्वहन करना भली भाँति जानते हैं . बहुत सार्थक रचना कृतज्ञता का महत्व बताती हुई. हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏
जवाब देंहटाएंजी, बहुत बहुत आभार प्रिय रेणु जी..
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (10-01-2021) को ♦बगिया भरी बबूलों से♦ (चर्चा अंक-3942) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार ! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..मेरी हार्दिक शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंमनुष्य के कथित मनुष्यत्व पर कटाक्ष करती उम्दा रचना 🌹🙏🌹
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद शरद जी,आप की प्रशंसा को हृदय से नमन करती हूँ..सादर..
जवाब देंहटाएंसार्थक सटीक एक छोटी सी रचना से आपने मानवता के ढहते संस्कारों पर गहन निशाना साधा है ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय कुसुम जी ,ब्लॉग पर आपकी स्नेह भरी प्रशंसा हमेशा मनोबल बढ़ाती है..सादर नमन..
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