झिमिर झिमिर
ठहर ठहर
बूँदों का बरसना
आँचल में ठहरना
देख मैं हुई अचंभित
सशंकित
भी !!!
अभी अभी
तो ठहरी है बरसात
फिर ये बूँदों की बारात
कहाँ से आ रही है ?
मुझे भरमा रही है
क्या ???
ठहरकर देखा
तो अनमनी सी दिखी
बेरुखी
से बोली
मैं हूँ सहेली
इसकी पुरानी
बड़ी जानी पहचानी
ये होती है जब उदास
मैं ही होती हूँ इसके पास
काली घटा बन
बन ठन
इसके आँखों में
ख्यालों ख्वाबों में
समा जाती हूँ
रह रह बरस जाती हूँ
ये समेट लेती है
अपने आँचल में लपेट लेती है
कभी-कभी बन जाती है सहेली भी
हमजोली भी
लड़कपन के किस्से सुनाती है
लगाती है
ठहाके खिलखिलाकर
मैं भी हँसकर
लोटपोट हो जाती हूँ
फिर उसकी मुस्काती आँखों में बस जाती हूँ
हँसते-हँसते बिहँस पड़ती हूँ
उन्हीं आँखों से बरसती हूँ
जिनमें अनमोल आँसुओं की बिरासत है
और आँसुओं के पास रूप बदलने की फितरत है
**जिज्ञासा सिंह**
आंसू के रूप में जाने क्या क्या निकल आता है..कभी चाहा कभी अनचाहा..लेकिन बह जाना ही सही है..इसका रूप बदल जाना ही सही है
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना..
सुन्दर प्रशंसा भरी टिप्पणी के लिए शुक्रिया..सादर शुभकामनाएं..
हटाएंये आँसू मेरे दिल की ज़ुबान हैं । बहुत अच्छी और बिलकुल सही अभिव्यक्ति है आपकी जिज्ञासा जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी, आपकी स्नेह सिक्त प्रशंसा के लिए नमन है..
हटाएंअद्भुत
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार गगन जी, आपकी अतुल्य प्रतिक्रिया का स्वागत है. सादर नमन..
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-02-2021) को "प्रणय दिवस का भूत चढ़ा है, यौवन की अँगड़ाई में" (चर्चा अंक-3977) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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"विश्व प्रणय दिवस" की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार !
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..ब्लॉग पर निरंतर आपके स्नेह का अभिनंदन है..शुभकामनाओं सहित सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह..
बूंदों की तरह आपकी रचना भी पाठको के दिल में सजलता छोड़ जाती है - - सुन्दर शैली व अभिव्यक्ति, साधुवाद सह।
जवाब देंहटाएंशांतनु जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया हमेशा उत्साहवर्धक होती है..ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी का सदैव स्वागत है..सादर नमन..
हटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी, सादर नमन..
हटाएंहँसते-हँसते बिहँस पड़ती हूँ
जवाब देंहटाएंउन्हीं आँखों से बरसती हूँ
जिनमें अनमोल आँसुओं की बिरासत है
और आँसुओं के पास रूप बदलने की फितरत है
वाह !! बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमन आपको
हृदय की गहराईयों से आपका कोटि-कोटि आभार,.आपकी सुन्दर सराहनीय टिप्पणी का ब्लॉग पर हमेशा स्वागत है..सादर नमन..
हटाएंआंसुओं के पास रूप बदलने की फ़ितरत है! वाह क्या खूब लिखा है। आपको बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद वीरेन्द्र जी, ब्लॉग पर निरंतर आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का स्वागत है..
हटाएंअत्यंत सराहनीय सुन्दर रचना कई सुगन्धों से सज्जित
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय आलोक सिन्हा जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन है..
जवाब देंहटाएंआँसुओं के कई रुपों का निरूपण करती अत्यंत सुन्दर और सराहनीय भावाभिव्यक्ति जिज्ञासा जी ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय मीना जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को दिल से नमन करती हूँ..सादर अभिवादन..
जवाब देंहटाएंआँसू की फितरत कुछ भी हो लेकिन आते व्व प्यार के कारण ही हैं ।दुख सुख सभी कुछ तो प्यार के कारण ही महसूस होता है । सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंजी,बहुत बहुत आभार दीदी..आपकी प्रशंसनीय अभिव्यक्ति रचना को सार्थक कर गई..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंमोतियों से भी ज्यादा कीमती हैं ये आंसू । बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद प्रिय अमृता जी, आपका कथन स्वीकार करते हुए आपका आभार व्यक्त करती हूँ..सादर नमन..
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