फिर उलझ गई
पैरों से झाँझर खिसक गई
क्या सुन्दर थी
मन मुंदर थी
बजती थी झनन झनन
कानों में खनन खनन
मधुर रस बरबस
बिहँस बिहँस
घोलती थी
ऐसे बोलती थी
कोयल भी चुप रह जाय
सप्त सुर ही सुनाय
चहुँ ओर दिशाओं में
बासंती हवाओं में
उसकी ही तान थी
गीत और गान थी
उसकी मधुर धुन
पे झूमे भौंरे गुन गुन
चिड़ियों ने नृत्य किया
महक उठी हर बगिया
बगिया के रंग देख
तितली के पंख देख
अप्सरा उतर आईं
लेकर के अंगड़ाई
कलियों से बोलीं ये
सजो आज वेणी में
देखूँगी दर्पन मैं
कजरारे नैनन में
कौन रसिक
कौन पथिक
बसा चला जाता है
ढूँढ मेरी लाता है
झनन झनन झाँझर वो
खनन खनन बजती जो
पहन पहन झूमूँगी
ऋतुराज आये हैं, चरण आज चूमूँगी ..
**जिज्ञासा सिंह**
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-2-21) को "माता का करता हूँ वन्दन"(चर्चा अंक-3979) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
प्रिय कामिनी जी, आपके स्नेह को नमन है मेरी रचना को मान देने के लिए आभार..सादर शुभकामनाएं..
हटाएंबहुत सुंदर, मनोहारी अभिव्यक्ति है यह आपकी जिज्ञासा जी ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद जितेन्द्र जी..प्रशंसनीय प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया..
हटाएंऋतुराज के स्वागत में रची सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी,नमस्कार !आपकी स्नेहपूर्ण प्रशंसा को नमन है..सादर..
हटाएंअति सुंदर,मनभावन सृजन।
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता जी आपका बहुत-बहुत आभार..प्रशंसनीय प्रतिक्रिया के लिए सादर नमन..
हटाएंवाह! सुन्दर।
जवाब देंहटाएंमनभावन।
बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय सधु जी, आपकी स्नेहपूर्ण प्रशंसा को नमन है..
हटाएंबसंत का आगमन और मौसम में उल्लास न जगे ... ऐसा तो हो ही नहीं सकता ... बहुत सुन्दर शब्दों से बुनी रचना ...
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का आदर करती हूँ..स्नेह बनाए रखें..सादर नमन..
हटाएंदेखूँगी दर्पन मैं
जवाब देंहटाएंकजरारे नैनन में
कौन रसिक
कौन पथिक
बसा चला जाता है
ढूँढ मेरी लाता है
झनन झनन झाँझर वो
खनन खनन बजती जो
पहन पहन झूमूँगी
ऋतुराज आये हैं, चरण आज चूमूँगी ..
अति मन भावन रचना..! मुग्ध हो चुका हूँ पढकर। बसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
जी पुरुषोत्तम जो आपकी सुन्दर मनभावन प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ..बहुत-बहुत आभार आपका..बसंत उत्सव की आपको बधाई..
जवाब देंहटाएंसुन्दर. सार्थक और समयोचित प्रस्तुति। आपको बधाई और शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद वीरेन्द्र जी आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन है..सादर शुभकामनाएं..
हटाएंयूँ ही स्वागत करती रहें और बारह महीने ऋतुराज मन में बसे रहें ।
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहपूर्ण प्रशंसा को हृदय से लगा लिया है..सादर नमन.. एवं बसंत पांच की हार्दिक शुभकामनायें..
हटाएंऐसी शुभ घड़ी आई है और मनचाहा पाहुन आया है तो कृतज्ञता चरण चूमेगी ही । अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंजी सच कहा है आपने, बहुत आभार प्रिय अमृता जी, बसंत उत्सव की हार्दिक शुभकामनायें..
हटाएंबहुत सुंदर..मनमोहक कृति..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद प्रिय अर्पिता जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन है..सादर..
जवाब देंहटाएंअहा! बहुत सुंदर शब्द चयन और मनभावन भाव ... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर समय देने के लिए आपका हृदय से अभिनंदन करती हूँ..प्रशंसनीय प्रतिक्रिया के लिए आपको नमन..
हटाएंबहुत ही खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय अनुराधा जी, आपके स्नेहपूर्ण प्रशंसा के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..
हटाएंबहुत बहुत सरस मधुर रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय..सादर नमन..
हटाएंबहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबधाई
आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों से बुनी भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंFursat mile to blod par bhi ayen
sanjay bhaskar
https://sanjaybhaskar.blogspot.com/
बहुत बहुत आभार आपका संजय ji, सादर नमन..
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