मौन से साक्षात्कार



उथलपुथल उठापटक 
खटपट 
शोरशराबा भूचाल 
भूत भविष्य वर्तमान काल 
हलचल 
घोर कोलाहल 
नृत्य क्रीड़ा 
व्याधि पीड़ा 
हँसन रुदन
करुण क्रंदन 
ऊँच नीच आकाश पाताल 
भ्रमों का जाल 
संदेहों का स्पन्दन 
भ्रांतियों का स्फुरण 
जीव परजीव की व्युत्पत्ति 
सद्गति सन्मति अवनति 
सब का अधिग्रहण  
करता हुआ मेरा मन 
विपाशा में फँसा 
अपने ऊपर ही हँसा 
हो न पाया शान्त 
रहा अशान्त 
बार बार 
बारम्बार 
झकझोर जगाया 
न उठा न जागा न कसमसाया 
हार कर हो गई आज मौन 
है कहीं, कोई और कौन ?
जिससे साक्षात्कार हो
अंगीकार हो 
जिसे मेरा, ये वाचाल मन
कर ले आत्म आलिंगन 
मुझे प्रस्फुटित कर दे 
प्रज्ज्वलित कर दे 
दीप 
सुदीप 
इन कोलाहलों के मध्य 
मेरे सानिध्य 
बस वही हो,  बस वही हो 
वही सुनूँ, जो उसने कही हो 
वही समझूँ जो वो बताये 
वही रास्ता दिखाए
अब जाके उसे थोड़ा सा पहचाना है 
कोलाहल से, भ्रमों से दूर जाना है 

**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल 

28 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 12-02-2021) को
    "प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है" (चर्चा अंक- 3975)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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    1. आदरणीय मीना जी,नमस्कार ! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हृदय से शुक्रिया करती हूँ..ब्लॉग पर आपके स्नेहाशीष की आभारी हूँ..आपको हार्दिक शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह..

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  2. आज 'मौनी अमावस्या' के दिन मेरा 'मौन से साक्षात्कार' हुआ है आपकी काव्य-रचना के माध्यम से । छोटी-छोटी पंक्तियों में एकांत, प्रेम एवं अध्यात्म सभी से संयुक्त आपकी यह अभिव्यक्ति मेरे मन को स्पर्श कर गई जिज्ञासा जी । आभार एवं अभिनंदन ।

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    1. आपकी प्रशंसनीय, एवं रचना को विस्तार देती टिप्पणी का हृदय से अभिनंदन करती हूँ..आपका बहुत-बहुत आभार एवं नमन..

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  3. अब जाके उसे थोड़ा सा पहचाना है
    कोलाहल से, भ्रमों से दूर जाना है,प्रभावशाली, सुन्दर सृजन।

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    1. शांतनु जी, आपकी प्रशंसनीय एवं उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया को हृदय से नमन करती हूँ..सादर..

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  4. इन कोलाहलों के मध्य
    मेरे सानिध्य
    बस वही हो, बस वही हो
    वही सुनूँ, जो उसने कही हो
    वही समझूँ जो वो बताये
    वही रास्ता दिखाए
    अब जाके उसे थोड़ा सा पहचाना है
    कोलाहल से, भ्रमों से दूर जाना है

    क्या बात!!!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सधु जी, आपकी प्रशंसा को नमन है सादर..

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


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    1. श्वेता जी, नमस्कार ! मेरी रचना के चयन के लिए आपका हृदय से आभार..ब्लॉग पर आपके स्नेह को नमन है..सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह..

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  6. वही तो है पर अभी रूप धरा है जिज्ञासा का एक दिन पूर्ण होगी जिज्ञासा और प्रकटेगा वही वही...

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  7. आदरणीय अनीता दी, आपके स्नेहाशीष से अभिभूत हूँ..आपको मेरा हार्दिक नमन..

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  8. शानदार अभिव्यक्ति जिज्ञासा जी,
    बहुत शुभकामनाएं और बधाई 🙏

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  9. वर्षा जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हृदय में समाहित कर लिया है..सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह..

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  10. आध्यात्म भावों से मण्ड़ित सुंदर अभिव्यक्ति ।
    सुंदर भाव मन का आड़ोलन बस रुकने को है परम मौन में ।

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  11. आपका बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर नमन..

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  12. बहुत खूब जिज्ञासा जी ! जीवन के कोलाहल से दूर जब इंसान अपने में डूब हो मौन धारण करता है तो उसे अपने भीतर ही वो मिलता है जिसकी अभिलाषा में वह बाहर भटक रहा होता है |मौन के स्वर मुखर करती रचना | हार्दिक शुभकामनाएं|

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    1. बहुत ही प्यारी व्याख्यात्मक प्रशंसा..रेणु जी आपके स्नेह की आभारी हूँ..सादर नमन..

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति जी, प्रशंसा के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर नमन..

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  14. यह रचना भिन्न है। वाकई कुछ उलझने पीड़ादायक होती है। खैर, यह बेहतरीन रचना है।

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  15. बहुत आभार आपका प्रकाश जी, आपकी प्रशंसा को नमन है..

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  16. आदरणीय आलोक जी, आपकी प्रशंसा को नमन है..

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  17. अक्सर यही होता है कि तमाम कोलाहल के बीच ही मौन से होता है साक्षात्कार । यूँ ही मैंने भी मौन पर बहुत कुछ लिखा है हर तरह का अनुभव ।
    बहुत सुंदर और गहन प्रस्तुति ।

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  18. आपकी कई रचनाएं पढ़ीं..गहन गूढ़ अनुभव का सृजन हैं. .आपकी स्नेहमय त्वरित प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ..सादर जिज्ञासा सिंह..

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