अपनेपन का विछोह

ये तुमसे मेरा कैसा विछोह है ?

देखा नहीं जाना नहीं
अच्छी तरह पहचाना नहीं
फिर भी पीड़ा देता,ये कौन सा मोह है ?
ये तुमसे मेरा कैसा विछोह है ?

अभी कुछ ही दिनों की बात है
थोड़ी सी गुफ्तगू, कुछ शब्दों की मुलाकात है
तुम आखिर मेरे कौन हो ? क्या रिश्ता है ? यही ऊहापोह है
ये तुमसे मेरा कैसा विछोह है ?

हर घड़ी हर पल
परछाइयों की तरह साथ रहे हो चल
तुम्हारी झील सी आँखों में डूबा हर आरोह है
ये तुमसे मेरा कैसा विछोह है ?

जानती हूं कुछ शब्दों ने हमें वाक्य बना दिया
जुड़ना,जीना,हंसना,रमना,एक दूसरे को समझना सिखा दिया
ये उन्हीं शब्दों की एक सुंदर कड़ी का अवरोह है
 अपनेपन के अहसासों का विछोह है
अपनेपन का विछोह है ।।

**जिज्ञासा सिंह**

20 टिप्‍पणियां:

  1. आपने बहुत अच्छा किया जिज्ञासा जी इस कविता की रचना करके। मेरे हृदय के भावों एवं पीड़ा को शब्द दे दिए आपने।

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  2. हर हृदय का अथाह दर्द यही कह रहा है ।

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  3. देखा नहीं जाना नहीं
    अच्छी तरह पहचाना नहीं
    फिर भी पीड़ा देता,ये कौन सा मोह है ?
    ये तुमसे मेरा कैसा विछोह है ?
    ...एक यही खूबी है मानव में कि वो एक जागृत मन है। कब कहाँ किससे, कैसे जुड़ जाता है पता ही नहीं चलता। व्यथा की एक अन्तःकथा लिखता रहता मै मन, बस! नाम जाते हैं कुछ अनाम रिश्ते!

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    1. बिल्कुल सत्य कहा आपने पुरषोत्तम जी,आपकी सुंदर भावनावों को नमन।

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  4. एक यही खूबी है मानव में कि वो एक जागृत मन है। कब कहाँ किससे, कैसे जुड़ जाता है पता ही नहीं चलता। व्यथा की एक अन्तःकथा लिखता रहता है मन, बस! नाम जाते हैं कुछ अनाम रिश्ते!

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  5. प्रिय जिज्ञासा जी, आज हर शख्स यही प्रश्न कर रहा कि चित्र में मुस्कुराती हुई वर्षा जी से हमारा कौन सा रिश्ता था या फिर ये विचित्र आत्मीयता कैसी कि उनकी छवि आँखों से ओझल नहीं हो पा रही!! उनके प्रति स्नेह का ये ज्वार अकारण नहीं। रिश्ते आभासी सही लेकिन भावनाएं तो सच्ची हैं। बस यही जुड़ाव व्यथित कर रहा है! आपने बहुत ही आत्मीयता से वर्षा जी के लिए जो रचना लिखी उसमें उनको जो भाव समर्पित किये हैं, समस्त शोकाकुल ब्लॉग जगत के यही उदगार हैं! काश वर्षा जी इस प्रश्न का उत्तर दे पाती---
    देखा नहीं जाना नहीं
    अच्छी तरह पहचाना नहीं
    फिर भी पीड़ा देता,ये कौन सा मोह है ?
    ये तुमसे मेरा कैसा विछोह है ?
    भावों से भरे सृजन ने मन भावुक कर दिया। वर्षा जी की पुण्य स्मृति को सादर नमन और विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🙏

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    1. आपकी प्रतिक्रिया हमेशा किसी भी रचना को पूर्णता प्रदान कर देती है,आपको मेरा नमन।

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  6. **ना दुआ लगी ना दवा लगी
    जाने कैसी थी नज़र लगी,
    साँसों की डोर बड़ी थामी
    जब टूटी तब ना खबर लगी**
    🙏🙏🙏😔😔😔🙏🙏
    **रेणु**

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  7. बिल्कुल सत्य, मन के दर्द भरे उद्गार को प्रेषित करती पंक्तियाँ।सादर शुभकामनाएँ प्रिय सखी।

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  8. देखा नहीं जाना नहीं
    अच्छी तरह पहचाना नहीं
    फिर भी पीड़ा देता,ये कौन सा मोह है ?
    ये तुमसे मेरा कैसा विछोह है ? विश्वास नहीं होता..सच यह कैसा विछोह है। अभी अभी तो मिले और इतनी जल्दी बिछड़ जाएंगे पता नहीं था 😢 भावुक करती रचना।

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    1. आपकी इतनी आत्मीय प्रतिक्रिया रचना के मर्म तक पहुंचने में कामयाब रही,आपको मेरा नमन ।

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  9. ये मैं पढ़ चुकी थी ...कुछ लिखने की स्थिति में नहीं थी .... आज भी नहीं हूँ ...

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  10. जी,सच कहा आपने ।कभी कभी मन तटस्थ हो जाता है,आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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  11. जानती हूं कुछ शब्दों ने हमें वाक्य बना दिया
    जुड़ना,जीना,हंसना,रमना,एक दूसरे को समझना सिखा दिया
    ये उन्हीं शब्दों की एक सुंदर कड़ी का अवरोह है
    अपनेपन के अहसासों का विछोह है
    अपनेपन का विछोह है ।।
    सही कहा जिज्ञासा जी!शब्दों की सुन्दर कड़ी से भाव बाँटे थे हमने...बस उसी विछोह की पीड़ा है ये..।
    बहुत ही भावपूर्ण सृजन आपका..

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  12. आपका बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी,आपकी भावों भरी आत्मीय प्रशंसा को हार्दिक नमन करती हूं । आपको सादर शुभकामनाएं।

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