आम का पेड़

वो नन्हा सा
बौना सा
दो पत्तियों वाला पौधा
जिसे मैंने नाजों से पाला पोसा
बड़ा बन गया
आज मुझे धीरे से मां कह गया ।।
जब उसमे बौर आए
वह मुझे देख मुस्कराए
अमियां आईं
नानी कह इठलाईं
इतनी
कि पिसकर बन गईं चटनी
मैंने भी स्वाद लिया चटखारे लेकर
आम के पने को पीकर
अंदर तक रम गईं
मेरी सांसें थम गईं
तब,
जब 
अचार बनाया
खट्टे मीठे का तड़का लगाया
चाटते रहे लोग उंगलियां
मेरी भी ली गईं बड़ी बलाइयां
खटाई तो साल भर चलती रही
दाल चटनी,सांभर का स्वाद बनती रही
मेरा  नन्हा सा बिरवा दिन दूना
रात चौगुना
बढ़ गया 
धीरे धीरे छत तक चढ़ गया
हरे,
आधे पीले, आधे हरे
पीले पीले
आधे लाल आधे पीले
ऐसे आमों के घौदे
कोई धीरे से छू दे 
तो टपक पड़ें
हम तो खड़े खड़े
अपने हाथों से उन्हें तोड़ने लगे
स्वादों की कड़ियाँ जोड़ने लगे
कौन कितना मीठा है बताने लगे
खुद खाए, दूसरों को खिलाने लगे
कई बार तो उसमें बेमौसम बौर आया
आम लगा और खूब खाया
उसकी ठंडी मदमस्त हवा भी कम नहीं
चिड़ियों को बसेरे का गम नहीं
क्या कुछ नहीं दिया उसने
उसके साथ जुड़े हैं मेरे अनमोल सपने 
पर जाने क्यूं ? इस साल वो उदास है
मेरे भावों का करता परिहास है
लाखों बौरों में, कुछ एक अमियाँ आई हैं
ये देख मेरी नजरें भर आई हैं
लगता है वो मुझसे कुछ नाराज है
शायद मैने भी उसकी अहमियत को किया नजरंदाज है
क्या करुँ ? उसे कैसे समझाऊँ ?
कैसे बताऊँ ?
कि मैं उसे देख नहीं पाई,
छू नहीं पाई
अब ऐसा नहीं होगा
उसका सम्मान होगा
आखिर वो जीवनदाता है
हमारी श्वाँसों का अधिष्ठाता है
उसने हमे बहुत कुछ दिया
जीवन को हरा भरा किया
हमीं उसे भूल जाते है
अपने फ़ायदे के लिए इन्हें चोट पहुँचाते हैं 
हमें इनके बारे में सोचना होगा 
वरना स्वाद तो दूर की बात है,
चन्द साँसों के लिए भटकना होगा.... 

**जिज्ञासा सिंह**

26 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, बहुत बढ़िया।
    आजकल गांव में आम के बारी बगीचे बहुत कम हो गए है। जामुन के एक दो पेड़ दिख जाए वही बड़ी बात हैं।

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    1. सही कहा शिवम जी आपने । आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन करती हूं ।

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  2. बहुत सुन्दर !
    आज वह आम अपनी माँ का पोषक बन गया है पर हम अपनी नादानी से उसे फिर से मिट्टी में मिलाने पर तुले हैं.

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    1. आदरणीय गोपेश जी आपकी सुंदर सार्थक प्रशंसा को हार्दिक नमन करती हूं ।सादर अभिवादन ।

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  3. आम के पेड़ से इतना सुंदर रिश्ता और उससे मिले स्वादों का कितना जीवन्त वर्णन, आपके लेखन में एक ताजगी का अहसास होता है, अगले बरस फिर ढेर सारे आम आएं यही कामना है

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    1. आदरणीय दीदी,आपकी उत्साहित करती प्रशंसा से अभिभूत हूं,आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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    1. विश्वमोहन जी आपका आभार, आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन करती हूं ।

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०८-०५ -२०२१) को 'एक शाम अकेली-सी'(चर्चा अंक-४०५९) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  6. अनीता जी नमस्कार !
    सबसे पहले तो आपको उपस्थित देख मन खुश हो गया,आप स्वस्थ है,इस बात की हार्दिक खुशी हुई,ईश्वर आपको हमेशा स्वस्थ और प्रसन्न रखे मेरी यही शुभकामना है,मेरी रचना के चयन के लिए आपका कोटि कोटि आभार ।

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  7. बहुत खूब जिज्ञासा जी, पेड़ जड़ नहीं सजीव अस्तित्व रखते हुए हमारे लिए उपयोगी ही नहीं हमारे सुख दुःख के अभिन्न सहचर है। एक भावपूर्ण काव्य चित्र जिसमें पेड़ से मन का अटूट रिश्ता दृष्टि गोचर होता है। हार्दिक शुभकामनाएं इस भावपूर्ण रचना के लिए 🌷🌷💐💐

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय रेणु जी,आपकी सुंदर आत्मीय प्रशंसा को सादर नमन करती हु । बहुत बहुत शुभकामनाएं प्रिय सखी ।

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  8. पहले शुरू के पंक्ति से बीच के पंक्तियों तक पढते हुए मेरे मुख पर एक मुस्कान थी मानो मैं के पेड़ के पास हूं उससे ही बतिया रहा हूं...उसे हर ओर से देख रहा हूं...छू रहा हूं..मतलब पूरा खुश था पर आपने अचानक आगे के पंक्तियों से बिल्कुल भावुक कर दिया। हाँ...हम इंसान ही उनका सही ढंग से ख्याल नहीं कर रहें है....जो आज की परिस्थिति का कारण है।
    आप वाकई बेहतरीन लिखे हैं....मुझे बेहद पसंद आई यह रचना।

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    1. ब्लॉग पर आने के लिए आपका शुक्रिया,आपकी सुंदर टिप्पणी को नमन करती हूं ।

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  9. बहुत अच्छी कविता |हार्दिक शुभकामनायें

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    1. जयकृष्ण जी,बहुत बहुत आभार आपका । आपको सादर नमन ।

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  10. जिज्ञासा दी, पेड़ की महत्ता व्व ही पहचानता है जो उसे लगाता है, उसकी देख रेख करता है। मेरे यहाँ भी मैंने कुछ पेड़ लगाए रखे है। सच मे पेड़ को थोड़ा सा भी किसी ने नुकसान पहुचाया तो बहुत दुख होता है। बहुत ही सुंदर वर्णन किया है आपने।

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    1. बिल्कुल सही कहा आपने ज्योति जी, अपने लगाए हुए पेड़ पौधों से बड़ा लगाव हो जाता है,सादर शुभकामनाएं आपको ।

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  11. ज‍िज्ञासा जी आप इतना सुंदर ल‍िखती हैं क‍ि मैं तो ढंग से समीक्षा भी नहीं कर पाती...मेरा नन्हा सा बिरवा दिन दूना
    रात चौगुना
    बढ़ गया
    धीरे धीरे छत तक चढ़ गया..आम और प्रकृत‍ि ..वाह

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    1. आपकी सुंदर प्रशंसा से अभिभूत हूं,प्रिय अलकनंदा जी,आप बहुत सुंदर लेखन लिखती हैं,और समीक्षा करती हैं,मैने पढ़ा है, आपको मेरा सादर नमन और ढेरों शुभकामनाएं ।

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  12. बेहतरीन रचना जिज्ञासा जी।

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  13. आदरणीय अनुराधा जी,आपका बहुत बहुत आभार एवम अभिनंदन । आपकी सुंदर सार्थक प्रशंसा को नमन है ।

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  14. वाह ... बहुत बढ़िया ... आम ने दिए न फल आपको ..... वैसे भी आम एक साल छोड़ कर ज्यादा बौर देता है ....तो अगले साल खूब खाइएगा छक कर

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  15. बिल्कुल सही कहा आपने दीदी,पर मेरे आम के पेड़ पर अब फिर दोबारा बौर आए हैं,नन्ही नन्हीं अमियाँ फिर से लग रही है,पिछले साल तो दिसंबर तक आम थे । ऐसा पहले नहीं होता था,पिछले साल से हो रहा है, वैसे अच्छा ही है । आपका मेरा हार्दिक आभार और नमन।

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  16. बहुत आभार आपका जयकृष्ण जी, आपको मेरा सादर नमन।

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