तुम चलो, सारथी मैं हूँ
थोड़ा सा तो चलो, डगर पर कदम बढ़ाओ
उन कदमों से कदम मिलाते चलते जाओ
अपने कदमों का दो सच्चाई से साथ,सारथी मैं हूँ
तुम चलो...
करके घोर परिश्रम जो चलते हैं सबसे आगे
उनका पकड़ो हाथ बिना कुछ उनके मांगे,
भर जाएगी खाली मुट्ठी,कर लो ये विश्वास, सारथी मैं हूँ
तुम चलो...
वो रुक सकते हैं,पर तुम रुक मत जाना
मार्ग दिखे अवरुद्ध,मगर तुम मत घबराना
अंतर्मन में झाँक, दिखे जो मार्ग, वही सन्मार्ग, सारथी मैं हूँ
तुम चलो...
आगे जो कुछ भी है, है गंतव्य तुम्हारा
दिख जाएगा, एक दिशा हो,एक लक्ष्य हो प्यारा
सौग़ातों की होगी, फिर बरसात, सारथी मैं हूँ
तुम चलो...
क्यों घबराते हो? हूँ मैं जब साथ तुम्हारे
वही मनुज है,जो विपत्ति में कभी न हिम्मत हारे
दिव्य जलाए ज्योति, और फिर जग में करे प्रकाश, सारथी मैं हूँ
तुम चलो, सारथी मैं हूँ ।।
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी कविता बहुत अच्छी है जिज्ञासा जी। मुझे प्रतीत होता है कि यह बेहतर हो सकती थी। सम्भव हो तो पुनरावलोकन करके देखिएगा। किंतु इस कुछ हटकर किए गए प्रयास के लिए (जो निश्चय ही अत्यंत प्रभावशाली है) आप अभिनंदन की पात्र हैं।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी,आपकी त्वरित टिप्पणी का स्वागत है, आपके सुझाव पे आंशिक अमल किया है मैंने,ये कविता मैंने बेटे के लिए, लिखी थी,मैंने वो संदर्भ उल्लिखित कर दिया है,आपके बहुमूल्य सुझावों का हमेशा स्वागत है आशा है आप ऐसे ही नवीन सुझावों से हमेशा इंगित करते रहेंगे ।विनम्र नमन एवं बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आपका जिज्ञासा जी। अब यह कविता और भी अच्छी बन पड़ी है। एक स्नेह से परिपूर्ण माता (या एक पिता) के अपने बालक/बालिका के लिए यही भाव हो सकते हैं। मैं भी आपकी इस कविता को अपने पुत्र (तथा पुत्री) के लिए स्मरण करके रखूंगा। एक बार पुनः अभिनन्दन आपका।
हटाएंवाह,बहुत खूब🌻👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शिवम् जी।
हटाएंहौसला बढ़ाती सकारात्मकता ! आज इसकी जरुरत भी बहुत है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार गगन जी, आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत शुक्रिया।
हटाएंबच्चों के लिए माता पिता हमेशा सारथी की भूमिका में रहना चाहते हैं . लेकिन वक़्त गुजरने के बाद बच्चों को लगाम थाम लेनी चाहिए , जो आज कल कम ही देखने को मिलता है .
जवाब देंहटाएंआप आपने मन के भावों को बखूबी कह पायी हैं .
बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया के लिए आपको मेरा नमन।
हटाएंबच्चों में आशा का संचार करती बहुत सुंदर रचना, जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ज्योति जी,आपकी प्रशंसा को र नमन।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२३-0६-२०२१) को 'क़तार'(चर्चा अंक- ४१०४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी, नमस्कार !
हटाएंमेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका कोटि कोटि आभार...सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह...
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 23 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
पम्मी जी, नमस्कार !
हटाएं"पांच लिंकों का आनन्द" में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार...सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह...
चरैवेति चरैवेति । _/\_
जवाब देंहटाएंनूपुर जी,आपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार उर्मिला दीदी,आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन।
हटाएंबच्चों को इसी विश्वास और प्यार की तो आवश्यकता है । दिल छू लिया आपकी 'सारथी मैं हूँ' कविता ने ..अति सुन्दर सृजन जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंआशा का संचार करती बहुत सुंदर रचना, शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मधुलिका जी,आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी का हार्दिक स्वागत है।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ओंकार जी।
हटाएंवाह ,बख़ूबी कही अपनी बात !!सूंदर रचना हेतु बधाई एवं शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंसुंदर,मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार अनुपमा जी।
हटाएंअद्भुत और उत्साहवर्धक शब्दसंतति
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी,आपकी सराहनीय टिप्पणी को हार्दिक नमन।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सुमन जी।
जवाब देंहटाएंअनुपम भावों का संगम ... शानदार सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहूत आभार आपका।
जवाब देंहटाएंक्यों घबराते हो? हूँ मैं जब साथ तुम्हारे
जवाब देंहटाएंवही मनुज है,जो विपत्ति में कभी न हिम्मत हारे
दिव्य जलाए ज्योति, और फिर जग में करे प्रकाश, सारथी मैं हूँ
तुम चलो, सारथी मैं हूँ
एक विदूषी मां की शब्दों के माध्यम से विराट सांत्वना
बेटे के लिए। जिसके पास इतना सशक्त अवलंबन हो उसका पथ निष्कंटक ही रहता है। भावों से भरा अपनी ही तरह का आप सृजन प्रिय जिज्ञासा जी।। मां बेटे की ये जुगलबंदी निर्बाध रहे यही कामना और दुआ है
सुंदर व्याख्या और सुंदर शब्दों से सज्जित प्रतिक्रिया मन को मोह गयी प्रिय रेणु जी,आपका स्नेह हृदय से लगा लिया है।सादर नमन आपको।
हटाएंबच्चों के लिए हम सारथी ही तो है,बहुत ही सुंदर भाव अभिव्यक्ति जिज्ञासा जी ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंबहुत आभार प्रिय सखी कामिनी जी,आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के आगे नतमस्तक हूँ,सदैव स्नेह बना रहे,यही कामना है।
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंहारे को हिम्मत देती अभिव्यक्ति.
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय रवीन्द्र जी,ब्लॉग पर उपस्थिति देख बहुत हर्ष हुआ,आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंवो रुक सकते हैं,पर तुम रुक मत जाना
जवाब देंहटाएंमार्ग दिखे अवरुद्ध,मगर तुम मत घबराना
अंतर्मन में झाँक, दिखे जो मार्ग, वही सन्मार्ग, सारथी मैं हूँ ----वाह खूबसूरत पंक्तियां और गहन रचना। खूब बधाई जिज्ञासा जी।
बहुत बहुत आभार आपका संदीप जी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को सादर नमन।
हटाएंवाह! बहुत प्रेरक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आपका,आपकी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया को सादर नमन।
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