वह दृश्य
अदृश्य
हो ही नहीं रहा
जब उन्होंने मुझसे कहा
अब क्या है
जीवन बीत चुका है
और मैं बुढ़ापे के आनंद में हूँ
आजकल परमानंद में हूँ
जो चाहे सो लो,जो चाहे सो दो
मुझे थोड़ा सा जी लेने दो
इन्हीं दिनों के लिए
तुम्हारे और अपने लिए
ही तो बोया था वो अमर बीज
उससे पैदा हुई जो चीज
वो बहुतों को नहीं मिली
वही संपदा फूली और फली
और मेरी झोली में विराजमान है
देखो न मेरा कितना सम्मान है
सब कुछ मेरा ही तो है
ये शाम नहीं, मेरे बुढ़ापे का सवेरा ही तो है
जब मेरी खुली आँखें
शांत मद्धिम साँसें
अविचल शांति
मेरी आभा मेरी कांति
जो जवाँ दिनों में कोसों दूर थी
मेरी दुनिया ही मजबूर थी
वो आज गुंजायमान है
यही तो मेरा अभिमान है
कि जो जीवन जिया
वर्षों संघर्ष किया
बीत गई वो बेला
जब भी नियति ने खेल खेला
उसे परास्त कर दिया मैंने
और मेरे वही मासूम नन्हें मुन्ने
देखो न मेरे आगे पीछे खड़े हैं
और मुझसे कद में बड़े हैं
लोग कहते हैं, आजकल मैं कम बोलता हूँ
बोलता नहीं, पर सब कुछ तोलता हूँ
गुनता धुनता हूँ
सब कुछ देखता हूं, फिर सोचता हूँ
कि ऐसे ही खुली आँखों से नाप तोल देखता रहूँ
आदि अंत, राग अनुराग, अपने पराए सबको सुनता रहूँ
अपनों का यही सर्द गर्म संवाद
आबाद
करती रहे मेरे बुढ़ापे की सिमटती हुई दुनियाँ
और भरी रहें मेरे इर्द गिर्द मासूम सी खुशियाँ..
**जिज्ञासा सिंह**
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंकाश कि हम भी अपना बुढ़ापा ऐसे शांत और संतुष्ट होकर बिताते !
आदरणीय सर,आपकी प्रशंसा रचना को सार्थक बना गयी, आज के दिन आपको मेरा सादर नमन एवं वंदन।
हटाएंढलती उम्र में ये शुकुन और शांति प्राप्त हो गई तो समझना चाहिए कि -"जीवन सफल हुआ "
जवाब देंहटाएंलेकिन आमतौर पर ऐसा होता नहीं है...आपके पिता जी को सत-सत नमन उनके सफल जीवन के लिए ढेरों बधाईयां और आगे के जीवन के लिए अनंत शुभकामनायें ईश्वर उन्हें लम्बी उम्र दे और यूँ ही शांति प्रदान करें ,सादर नमन आपको
बहुत आभार कामिनी जी, सच पिता जी का सुकून देख अपने जीवन में बड़ा संतोष रहता है, वरना एक बेटी का दर्द तो आप बखूबी समझती हैं।
हटाएंकोविड के बाद,काफ़ी दिनों बाद मैं अपने गाँव में उनके साथ रही,बड़ा अनुभव मिला।अगर मैं आपकी बात उनसे एक बार कर लूँ तो वो हर बार आपकी प्रशंसा के शब्द सुनना चाहेंगे, और कहेंगे कि तुम्हारी कितनी अच्छी दोस्त है,उसके बारे में बताओ, सच कहूँ तो वो मेरे सबसे पुराने दोस्त हैं ।पिताजी की तरफ़ से आपको ढेरों स्नेह।
जिज्ञासा जी,मैंने चार साल पहले अपने पिता को खोया है वो मेरे लिए क्या थे, मेरा और उनका संबंध कैसा था इस पर मैंने एक आपबीती लिखी है "एक खत पापा के नाम" वो आप पढ़ सकती है। आज आपके पिता जे से मिले आशीर्वाद को पाकर मैं भावविभोर हो गई। पिता का ना होना अधूरेपन का अहसास करता है हर पल मगर अब मैं उन्हें सिर्फ ख़ुशी से याद करती हूँ खुद दुखी होकर उनकी आत्मा को दुःख देना नहीं चाहती। आपके सर पर पिता का साया बना रहे यही कामना करती हूँ।
हटाएंअब क्या है
जवाब देंहटाएंजीवन बीत चुका है
और मैं बुढ़ापे के आनंद में हूँ
आजकल परमानंद में हूँ
ये भाव वही पाता है जो हो जाता है जीवन मृत्यु से परे...।
शायद यही है उम्र भर के कर्मों का फल। विरले ही पाते है इस आनंद कौ.....।नमन ऐसे पिता को...।और यह परम आनंद साझा करने हेतु धन्यवाद आपका।
सुधा जी, सच कहा आपने । मेरे पिता जी एक अनमोल आत्मा के मालिक हैं,उनके स्वभाव में सुकून और संतोष कूट कूट कर भरा है,और वही तो सच में आनंद और परमानंद दोनों है,आपकी सुंदर दर्शनयुक्त पंक्तियाँ भाव विभोर कर गयीं,आपका भी मन परिपूर्ण है,वरना इन भावों को कौन समझ सकता है।बहुत नमन आपको।
हटाएंजिज्ञासा दी, ऐसा सफल जीवन बहुत कम लोगो को प्राप्त होता है। ईश्वर उन्हें दीर्घायु करे।
जवाब देंहटाएंजी,सच कहा ज्योति जी आपने, पिताजी का संतोषी और सुकून भरा जीवन बड़ी प्रेरणा देता है, आपकी सुंदर कामना को नमन है।
हटाएंमर्मस्पर्शी! स्वयं एक पिता होने के नाते मैं इन भावों को निकटता से समझ सकता हूँ। ऐसा संतोषजनक वार्धक्य सौभाग्यशालियों को ही प्राप्त होता है। मैं सभी वृद्ध पिताओं (एवं माताओं) के लिए ऐसे ही वार्धक्य की कामना करता हूँ।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी,आपने सच कहा कि अगर बुढ़ापे में सुकून और संतोष जैसी अमूल्य निधि प्राप्त हो तो जीवन में कोई दुःख नहीं रह जाता,मेरे पिता जी शुरू से बड़े संतोषी स्वभाव के हैं।जिसकी वजह से बड़ा अलमस्त जीवन रहा और आज भी है। आपको मेरा आभार और नमन।
हटाएंबहुत ही सुन्दर♥️
जवाब देंहटाएंशिवम् जी आपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंलाजबाव सृजन,सुख संतोष से परिपूर्ण जीवन हो सदा दुआ यही है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार विनीता जी,आपकी प्रशंसा और पिता जी के लिए सुंदर कामना के लिए सादर नमन करती हूँ।
हटाएंबहुत ही भावों से भरा काव्य चित्र प्रिय जिज्ञासा जी |एक पिता का गर्व, उसकी संतान जब उसके दिए संस्कारों में परिपूर्ण हो , खरी उतरती है तो उस आनंद या कहें परामानंद को शब्दों में लिख पाना मुश्किल है | जब पिता के नन्हे -मुन्ने उनसे कद में कहीं ऊँचे - बड़े हो ,उन्हें जीवन की वो समस्त खुशियाँ प्रदान करते हैं ,जो उनकी युवावस्था में उनके लालन- पालन में ही निकल गयी ,उस पिता के सौभाग्य का मूल्यांकन कौन कर सकता है !! और एक पिता के मुह से निकले ये उदगार एक विवाहित बेटी के लिए संजीवनी समान होते हैं| जब उसे माता - पिता की इस आत्मसंतुष्टि का भान होता है तो उन का आनंद बेटी के लिए विराट संतोष और आह्लाद का विषय होता है | पिताजी को समर्पित इस अनूठी रचना और भावपूर्ण सुंदर चित्र के लिए ढेरों शुभकामनाएं और बधाई | पूज्य पिताजी को सादर प्रणाम और शुभकामनाएं| उनकी छाया हमेशा परिवार पर बनी रहे
जवाब देंहटाएंप्रिय सखी,सच कहूँ पिता जी को ये सुंदर अभिभूत करती बातें अगर पढ़कर सुना दूँ तो वो आपसे नाम से परिचित हो जाएँगे और कहेंगे रेणु को बोलना। कि वो खुश रहे,खुश रहे,खुश रहे,ये प्यारा वाक्य उनका तकिया कलाम है।रेणु जी पिता तो अनुभव की खान और स्नेह का भंडार होते ही हैं,मेरे पिता जी ने हमारी परवरिश अकेले की है,जिससे वो ममता से भी परिपूर्ण हैं,और उन्होंने बड़ा ही संतोषी स्वभाव पाया है,जिसका उन्हें इस उम्र में बड़ा फ़ायदा मिल रहा है, और भगवान की कृपा से अच्छे स्वास्थ्य के मालिक हैं तो एक सुकून भरे जीवन में मगन रहते हैं,आप का अभिवादन ज़रूर पहुँचाऊँगी।
हटाएंइतनी सुंदर व्याख्यात्मक प्रशंसा के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
तुम्हारे और अपने लिए//ही तो बोया था वो अमर बीज //उससे पैदा हुई जो चीज//
जवाब देंहटाएंवो बहुतों को नहीं मिली
वही संपदा फूली और फली //और मेरी झोली में विराजमान है
देखो न मेरा कितना सम्मान है//सब कुछ मेरा ही तो है//
ये शाम नहीं,// मेरे बुढ़ापे का सवेरा ही तो है///
वाह! आत्मसंतुष्टि का महाराग !!!!!!!!!!!
सच कहा आपने, पिताजी से मिलते ही एक अजीब सी आत्मसंतुष्टि आ जाती है,जो नवजीवन का मार्ग प्रशस्त करती है.....आपके सुंदर आत्मीय शब्दों ने कविता को सार्थक कर दिया।बहुत शुक्रिया आपको ...
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 21 जून 2021 को साझा की गई है ,
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।संगीता स्वरूप
आदरणीय दीदी,प्रणाम !
जवाब देंहटाएंमेरी रचना के चयन के लिए आपका बहुत बहुत आभार।ढेरों शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह..
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (२१-0६-२०२१) को 'कुछ नई बाते नये जमाने की सिखाना भी सीख'(चर्चा अंक- ४१०२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनिता जी,नमस्कार !
हटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आपका बहुत शुक्रिया, आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।
कृपया रविवार को सोमवार पढ़े।
जवाब देंहटाएंसादर
अब क्या है
जवाब देंहटाएंजीवन बीत चुका है
और मैं बुढ़ापे के आनंद में हूँ
आजकल परमानंद में हूँ
पिता जीवनभर अपना सुख-चैन खोते हैं तब जाकर पूरी ज़िंदगी तजुर्बों से अपनी झोली भरते और फिर बच्चों में बाँटकर बुढ़ापे की दहलीज पर खड़े अपने बच्चों को लायक बनते देख आनंदित होते हैं।यही अनुभूति एक पिता के जीवन में परमानंद की अनुभूति होती है। बेहद हृदयस्पर्शी सृजन जिज्ञासा जी।
अनुराधा जी,आपकी रचना को परिभाषित करती सुंदर प्रतिक्रिया को सादर नमन,ब्लॉग पर निरंतर स्नेह के लिए कोटि कोटि आभार।
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंआदरणीय जोशी जी, आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया को सादर नमन।
हटाएंउत्कृष्ट रचना।
जवाब देंहटाएंआदरणीय उर्मिला दीदी,सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आभार।
हटाएंबहुत भावुक रचना. हार्दिक बधाई इस सुन्दर सृजन के लिए.
जवाब देंहटाएंजेन्नी शबनम जी, मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार।सादर नमन।
हटाएंप्रिय जिज्ञासा जी, आपकी कृतियाँ आम जनमानस के मन के अनकहे भाव होते है। आप इतना सहज सरल और भावपूर्ण लिखती है कि पाठक उस प्रवाह में स्वयं को जोड़ लेता है।
जवाब देंहटाएंपिता हर बच्चे के लिए अति विशिष्ट होते हैं, पिता आजीवन बच्चों के लिए दुआ बनकर जीवन की खुशियाँ बनकर झोली में झरते हैं पर एक पिता का हृदय तब स्वयं को धन्य मानता है जब संतान उनके लिए सुकून और सुख की कतरनें जुटाए।
अति सराहनीय अभिव्यक्ति।
सस्नेह प्रणाम
सादर।
.....पिता आजीवन बच्चों के लिए दुआ बनकर जीवन की खुशियाँ बनकर झोली में झरते हैं पर एक पिता का हृदय तब स्वयं को धन्य मानता है जब संतान उनके लिए सुकून और सुख की कतरनें जुटाए।.... श्वेता जी,आपकी ये पंक्तियाँ अनमोल हैं,इन्हें मेरा प्रणाम...आभार सहित सादर नमन।
हटाएं....
इस बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई जिज्ञासा सिंह जी 🙏
जवाब देंहटाएंआपका बहुत आभार शरद जी,ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी मेरे लिए संजीवनी है,स्नेह बनाए रखें,सादर नमन आपको।
हटाएंआह...अपने पापा को याद कर आँखें भर आईं-
जवाब देंहटाएंकरती रहे मेरे बुढ़ापे की सिमटती हुई दुनियाँ
और भरी रहें मेरे इर्द गिर्द मासूम सी खुशियाँ..
सच पिता ऐसे होते ही हैं,किसी लड़की के सामने जैसे ही पिता का ज़िक्र हो,वो भावुक हो ही जाती है।आपका आभार उषा जी।
हटाएंजो जवाँ दिनों में कोसों दूर थी
जवाब देंहटाएंमेरी दुनिया ही मजबूर थी
वो आज गुंजायमान है
यही तो मेरा अभिमान है।
जीवन की सांध्य बेला में ये आत्म संतुष्टि के स्वर सृष्टि को थामे है ।
बहुत बहुत सुंदर सृजन जिज्ञासा सी समयक्त्व के उच्च भाव परिलक्षित हो रहे हैं इस रचना में ।
सस्नेह।
आपकी सुंदर भावपूर्ण प्रतिक्रिया बहुत गहरे तक उतर गयी, आप जैसी विदुषी के शब्द मेरे लिए प्रेरणा हैं, सृजन सार्थक हुआ।...सप्रेम जिज्ञासा सिंह..
जवाब देंहटाएंसुलझता हुआ अवरोह। सुन्दर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार परवीन जी,आपकी प्रशंसा पाकर रचना सार्थक हो गयी।
जवाब देंहटाएंबुजुर्गों को भला और क्या चाहिए ? थोड़ा सा प्यार , थोड़ा सा सम्मान और अपनापन । मन संतुष्ट तो किसी की ज़रूरत नहीं ।सुंदर भाव ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी, आपकी सुंदर आत्मीय प्रशंसा हमेशा मनोबल बढ़ाती है,आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंसुन्दर और भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंआपको ब्लॉग पर उपस्थित देख बहुत हर्ष हुआ, बहुत बहुत आभार आपका शिखा जी,सादर नमन।
हटाएंभरी रहें मेरे इर्द-गिर्द मासूम सी खुशियाँ ... आमीन
जवाब देंहटाएंशब्द-शब्द सुखद अनुभूति से भरा हुआ ... भावविभोर करती अभिव्यक्ति .. स्नेहिल शुभकामनाएं
बहुत आभार सीमा जी,सादर नमन आपको।
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