तू मोक्ष है तरंगिणी
तू शिव जटा की धार भी
तू धरणी का श्रृंगार भी
तू मोतियों का हार भी
धरा के मानचित्र पे तू
कण्ठ में सजी लड़ी
तू मोक्ष....
तू जुगनुओं सी चमकती
तू हीरे जैसी दमकती
तू कुसुम जैसी महकती
प्रकृति की हरीतिमा तू
श्वांस संग घड़ी घड़ी
तू मोक्ष....
तू प्यास भी बुझा गई
तू भूख भी मिटा गई
तू पार भी लगा गई
जो तेरी नाव में चढ़ा
बनी सदा तू तारिणी
तू मोक्ष....
तू आरती तू वंदना
तू प्रार्थना तू अर्चना
तू मंत्र भी तू कामना
पुकारा तुझको मेघ ने
तो बदरी बन बरस पड़ी
तू मोक्ष....
तू पाप पुण्य धो गई
तू पीढ़ियों को ढो गई
तू सब के दुख में रो गई
तू पूर्वजों को तारती
रही सदा तू बंदिनी
तू मोक्ष....
**जिज्ञासा सिंह**
अति-प्रशंसनीय। अभिनंदन जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी।
हटाएंतू पाप पुण्य धो गई
जवाब देंहटाएंतू पीढ़ियों को ढो गई
तू सब के दुख में रो गई
तू पूर्वजों को तारती
रही सदा तू बंदिनी
तू मोक्ष.... अद्भुत रचना जिज्ञासा जी।
हृदयतल से आभार अनुराधा जी,सादर नमन।
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (25-06-2021) को "पुरानी क़िताब के पन्नों-सी पीली पड़ी यादें" (चर्चा अंक- 4106 ) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
आदरणीय मीना जी,मेरी रचना को चर्चा अंक में स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार, असंख्य शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह...
हटाएंसुन्दर एवं भावपूर्ण गंगा-आरती !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद सर। सादर नमन।
हटाएंबहुत ही सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शिवम जी।
हटाएंसुंदर भाव गंगा के लिए । शब्द शब्द में पवित्रता झलक रही है ।
जवाब देंहटाएंपूज्यनीया शब्द पर ध्यान दें ।
जहाँ तक मुझे पता है जब पूज्य शब्द में नीय प्रत्यय लगता है तो शब्द पूजनीय हो जाता है ।
जी,आपका बहुत बहुत आभार आपका दीदी,सादर नमन।
हटाएंसुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार अनुपमा जी।
हटाएंवाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंविश्वमोहन जी, आपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंतू पाप पुण्य धो गई
जवाब देंहटाएंतू पीढ़ियों को ढो गई
तू सब के दुख में रो गई
तू पूर्वजों को तारती
रही सदा तू बंदिनी
तू मोक्ष....
बहुत भावपूर्ण अभ्यर्थना माँ गंगे की प्रिय जिज्ञासा जी | माँ गंगा भारतवर्ष की हृदयस्थली में प्रवाहित हो रही अमृतधार है |उसकी महिमा का गान अपने आप में विशेष हो जाता है | आभार और शुभकामनाएं इस रचना विशेष के लिए |
प्रिय रेणु जी,आपका बहुत आभार,आपकी सार्थक प्रतिक्रिया रचना की लय को सुंदरप्रवाह दे गई,सदा नमन।
हटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ओंकार जी।
हटाएंतू जुगनुओं सी चमकती
जवाब देंहटाएंतू हीरे जैसी दमकती
तू कुसुम जैसी महकती
प्रकृति की हरीतिमा तू
श्वांस संग घड़ी घड़ी
तू मोक्ष....
वाह !
सुंदर अभिवतक्ति
सादर
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय,आपकी सुंदर प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन।
जवाब देंहटाएंलाजवाब अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रीति जी।
हटाएंतू पाप पुण्य धो गई
जवाब देंहटाएंतू पीढ़ियों को ढो गई
तू सब के दुख में रो गई
तू पूर्वजों को तारती
रही सदा तू बंदिनी
तू मोक्ष....
बहुत ही सुंदर गंगा स्तुति,सादर नमन जिज्ञासा जी
बहुत बहुत आभार कामिनी जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति. बधाई.
जवाब देंहटाएंआपका बहुत आभार डॉ. जेन्नी जी,आपकी प्रतिक्रिया को सादर नमन।
जवाब देंहटाएंअहा, ऐसी ही अभिव्यक्ति हुई थी गंगा किनारे, बनारस में। http://www.praveenpandeypp.com/2015/01/blog-post.html
जवाब देंहटाएंबहुत आभार प्रवीण जी,मैं आपकी रचना का पान कर आई,बहुत सुंदर भावों भरी रचना है आपकी।
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