गंगा सदा पूज्यनीय (गंगा दशहरा विशेष)



तू मोक्ष है तरंगिणी

तू शिव जटा की धार भी
तू धरणी का श्रृंगार भी
तू मोतियों का हार भी 
धरा के मानचित्र पे तू
कण्ठ में सजी लड़ी
तू मोक्ष....

तू जुगनुओं सी चमकती
तू हीरे जैसी दमकती
तू कुसुम जैसी महकती
प्रकृति की हरीतिमा तू
श्वांस संग घड़ी घड़ी
तू मोक्ष....

तू प्यास भी बुझा गई
तू भूख भी मिटा गई
तू पार भी लगा गई
जो तेरी नाव में चढ़ा
बनी सदा तू तारिणी
तू मोक्ष....

तू आरती तू वंदना 
तू प्रार्थना तू अर्चना
तू मंत्र भी तू कामना
पुकारा तुझको मेघ ने
तो बदरी बन बरस पड़ी
तू मोक्ष....

तू पाप पुण्य धो गई
तू पीढ़ियों को ढो गई
तू सब के दुख में रो गई
तू पूर्वजों को तारती
रही सदा तू बंदिनी
तू मोक्ष....

**जिज्ञासा सिंह**

30 टिप्‍पणियां:

  1. अति-प्रशंसनीय। अभिनंदन जिज्ञासा जी।

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  2. तू पाप पुण्य धो गई
    तू पीढ़ियों को ढो गई
    तू सब के दुख में रो गई
    तू पूर्वजों को तारती
    रही सदा तू बंदिनी
    तू मोक्ष.... अद्भुत रचना जिज्ञासा जी।

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  3. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (25-06-2021) को "पुरानी क़िताब के पन्नों-सी पीली पड़ी यादें" (चर्चा अंक- 4106 ) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद सहित।

    "मीना भारद्वाज"

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    1. आदरणीय मीना जी,मेरी रचना को चर्चा अंक में स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार, असंख्य शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह...

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  4. सुंदर भाव गंगा के लिए । शब्द शब्द में पवित्रता झलक रही है ।

    पूज्यनीया शब्द पर ध्यान दें ।

    जहाँ तक मुझे पता है जब पूज्य शब्द में नीय प्रत्यय लगता है तो शब्द पूजनीय हो जाता है ।

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  5. सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति !!

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  6. तू पाप पुण्य धो गई
    तू पीढ़ियों को ढो गई
    तू सब के दुख में रो गई
    तू पूर्वजों को तारती
    रही सदा तू बंदिनी
    तू मोक्ष....
    बहुत भावपूर्ण अभ्यर्थना माँ गंगे की प्रिय जिज्ञासा जी | माँ गंगा भारतवर्ष की हृदयस्थली में प्रवाहित हो रही अमृतधार है |उसकी महिमा का गान अपने आप में विशेष हो जाता है | आभार और शुभकामनाएं इस रचना विशेष के लिए |

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    1. प्रिय रेणु जी,आपका बहुत आभार,आपकी सार्थक प्रतिक्रिया रचना की लय को सुंदरप्रवाह दे गई,सदा नमन।

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  7. तू जुगनुओं सी चमकती
    तू हीरे जैसी दमकती
    तू कुसुम जैसी महकती
    प्रकृति की हरीतिमा तू
    श्वांस संग घड़ी घड़ी
    तू मोक्ष....

    वाह !
    सुंदर अभिवतक्ति

    सादर

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  8. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय,आपकी सुंदर प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन।

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  9. तू पाप पुण्य धो गई
    तू पीढ़ियों को ढो गई
    तू सब के दुख में रो गई
    तू पूर्वजों को तारती
    रही सदा तू बंदिनी
    तू मोक्ष....

    बहुत ही सुंदर गंगा स्तुति,सादर नमन जिज्ञासा जी

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  10. बहुत बहुत आभार कामिनी जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन।

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  11. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति. बधाई.

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  12. आपका बहुत आभार डॉ. जेन्नी जी,आपकी प्रतिक्रिया को सादर नमन।

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  13. अहा, ऐसी ही अभिव्यक्ति हुई थी गंगा किनारे, बनारस में। http://www.praveenpandeypp.com/2015/01/blog-post.html

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  14. बहुत आभार प्रवीण जी,मैं आपकी रचना का पान कर आई,बहुत सुंदर भावों भरी रचना है आपकी।

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