मैं जलनिधि हूँ, मैं सागर हूँ (विश्व महासागर दिवस)




हम ढूंढ रहे उन श्वाँसों को, जो आज तलक मुझको न दिखी
कल देखा अपने आसपास, कहीं यहाँ रखी, कहीं वहाँ रखी

कोई लिए खड़ा है हाथों में,कोई लटकाए है घूम रहा
कोई करता उनका मोलभाव,कोई चरणों की रज चूम रहा

अब कौन सुनेगा बात मेरी, जो वर्षो पहले बोली थी
एक दृश्य दिखाया था मैने, और आँख तुम्हारी खोली थी

तब सुनकर तुम मुस्काए थे,जैसे कि विश्व तुम्हारा है
सब कुछ है तुम्हारी हाथों में, सबपे अधिकार तुम्हारा है

अपने मासूम से हाथों से, प्रकृति का दोहन कर डाला
मुझको भी नहीं छोड़ा तुमने, मेरा उदर प्रदूषित कर डाला 

अब फिर से मेरी बात सुनों,मैं जलनिधि हूँ, मैं सागर हूँ 
मैं पूरी धरा पे फैला हूँ, मैं जाता समा एक गागर हूँ 

ये नदियाँ और हिमालय भी,मेरे जीवन के साथी हैं
वसुधा के कण कण में कुसुमित, जनजीवन मेरी थाती हैं

मैं जल भी हूँ, मैं अग्नी हूँ, मैं अतुल वनस्पति वाला हूँ 
मेरा गर्भ भरा है सृजनों से, मैं साँसों का रखवाला हूँ 

मैं चन्द्र के जैसा शीतल हूँ, मैं सूर्य की गर्मी पीता हूँ 
मैं तुममें हूँ, तुम मुझमें हो, सृष्टि को प्रतिपल जीता हूँ 

तुम मुझको सहज मत ले लेना, मैं प्रबल धार का मालिक हूँ  
तुमने नौका में छेद किया,फिर सबसे बुरा मैं नाविक हूँ 

ऐसे में कहूँ मैं कुछ अपनी, तुम मुझसे करना छल छोड़ो
इस ब्रह्म जगत के जीवों की, खातिर मुझसे नाता जोड़ो

तुम मेरी सुनो मैं तेरी सुनूँ, मैं सब कुछ अर्पण कर दूँगा
हे मानव ! बनकर अनुगामी, सर्वस्व समर्पण कर दूँगा

**जिज्ञासा सिंह**

42 टिप्‍पणियां:

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    1. गगन जी, आपका बहुत बहुत आभार, आपकी प्रशंसा को तहेदिल से नमन ।

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  2. तुम मेरी सुनो मैं तेरी सुनूँ, मैं सब कुछ अर्पण कर दूँगा
    हे मानव ! बनकर अनुगामी, सर्वस्व समर्पण कर दूँगा
    सच सामने वाले की क़द्र समझना जरुरी है, वर्ना वह भी अपनी पर उतर आये तो हाय तौबा मचने के नौबत आनी ही है

    बहुत सुन्दर

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    1. आपका बहुत बहुत आभार कविता ,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया हमेशा नव सृजन का मार्ग प्रशस्त करती है,सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।

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  3. उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार शिवम जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन ।

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    1. अनुपमा जी,आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी को हार्दिक नमन एवम वंदन ।आपका बहुत बहुत आभार ।

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  5. अद्भुत रचना जिज्ञासा जी. वास्तव में समुद्र सृजनो से भरा हुआ है और उसके अर्थ को समझना अपने आप में एक समुद्र मंथन है. सुन्दर सी रचना के लिए अपको बहुत सी शुभकामनायें!

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    1. आपका बहुत बहुत आभार प्रिय भावना जी,आपकी प्रशंसा को हृदय से लगा लिया है ।

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  6. बहुत प्रेरक रचना । हर तरह से तुम मानव को समझाने में लगी हो । धरती , सूरज , वृक्ष समंदर सभी तो मनुष्य की करतूतों से परेशान हो गए हैं ।
    काश अब भी संभल जाएँ ।
    👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌

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    1. आदरणीय दीदी, प्रणाम !
      आपकी प्रशंसा मेरा हमेशा मनोबल बढ़ाती है,सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।

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  7. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०९ -०६-२०२१) को 'लिप्सा जो अमरत्व की'(चर्चा अंक -४०९१ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  8. अनीता जी,नमस्कार !
    मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार व्यक्त करती हूं,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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  9. मैं चन्द्र के जैसा शीतल हूँ, मैं सूर्य की गर्मी पीता हूँ
    मैं तुममें हूँ, तुम मुझमें हो, सृष्टि को प्रतिपल जीता हूँ
    महासागर का सार समेटे सुन्दर सृजन जिज्ञासा जी ।

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    1. मीना जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार,आपको मेरा सादर नमन ।

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  10. सबको समेट पाने की सक्षमता और उसका अभिमान, अत्यन्त प्रभावी अभिव्यक्ति।

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    1. प्रवीण जी,आपका बहुत बहुत आभार, आपकी प्रशंसा भरी टिप्पणी का हार्दिक स्वागत है ।

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  11. सागर का दोहन, प्रकृति के दोहन का ही एक अंग है.
    मनुष्य अपने पालनहारों - सागर, नदी, पर्वत, वन आदि का दोहन कर, उनको प्रदूषित कर, स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है.
    अभी भी समय है कि वह प्राकृतिक संपदाओं के संरक्षण के प्रति समर्पित हो और धरती को फिर से उसका शस्य-श्यामल रूप लौटा दे.

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    1. आदरणीय सर आपकी सार्थक व्याख्या कविता का मान बढ़ा गई,आपका कथन बिलकुल सटीक है, आपका बहुत बहुत आभार ।

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  12. तुम मेरी सुनो मैं तेरी सुनूँ, मैं सब कुछ अर्पण कर दूँगा
    हे मानव ! बनकर अनुगामी, सर्वस्व समर्पण कर दूँगा
    सागर की व्यथा कथा और आग्रह संजोती भावपूर्ण रचना प्रिय जिज्ञासा जी। काश मानव जाति ने विवेक से काम लिया होता!!

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    1. आपका बहुत बहुत आभार प्रिय रेणु जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया हमेशा कविता को मन दे जाती है,सफर नमन ।

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  13. ऐसे में कहूँ मैं कुछ अपनी, तुम मुझसे करना छल छोड़ो
    इस ब्रह्म जगत के जीवों की, खातिर मुझसे नाता जोड़ो---


    कितनी खूबसूरत रचना है, शानदार...गहन मन से लिखी गई। खूब बधाईयां...। अगले अंक में अवश्य लेंगे इसे अपनी पत्रिका के...। प्लीज मेल कर दीजिएगा...। कविता, संक्षिप्त परिचय, अपना फोटोग्राफ....। आभार

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  14. आपका बहुत बहुत आभार संदीप जी,आपकी सराहना बहुत ही उत्साहित करती है, आखिर आप स्वयं प्रकृति के संरक्षण के क्षेत्र में महती भूमिका निभा रहे हैं आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।
    एक दो दिन में आपको मेल करती हूं ।सादर नमन ।

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    1. जी बहुत आभार आपका...। प्रकृति को जीने वाले और अच्छी तरह से उसे उकेरने वाले सभी मेरे साथी हैं...आभार। जल्द भेजिएगा।

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  15. सराहना के लिए आपका हार्दिक शुक्रिया।

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  16. आदरणीय सर, नमस्कार! आज बहुत समय बाद ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति देखकर अत्यधिक हर्ष की अनुभूति हुई,आखिर आपने मेरे ब्लॉग को शुरुआती दौर में बहुत प्रोत्साहित किया आपको मेरा कोटि कोटि नमन । हार्दिक शुभकामनाएं एवम वंदन..जिज्ञासा सिंह..

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  17. तुम मेरी सुनो मैं तेरी सुनूँ, मैं सब कुछ अर्पण कर दूँगा
    हे मानव ! बनकर अनुगामी, सर्वस्व समर्पण कर दूँगा
    वाह!!!
    कमाल का लेखन जिज्ञासा जी!
    प्रकृति की एक एक रचना अपने में महत्वपूर्ण है और हमारा जीवन निर्भर है इन सभी पर... फिर सागर की तो बात ही क्या ! आपने सागर का समस्त सार बताते हुए बहुत ही सार्थक एवं सारगर्भित संदेश दिया है....
    बहुत ही सराहनीय एवं लाजवाब सृजन हेतु बधाई एवं शुभकामनाएं आपको।

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    1. जी,आपका बहुत बहुत आभार, आपकी अनुपम प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं,इतना सुंदर लिखा कि मन खुश हो जाय । आपको असंख्य शुभकामनाएं ।

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  18. मैं जल भी हूँ, मैं अग्नी हूँ, मैं अतुल वनस्पति वाला हूँ
    मेरा गर्भ भरा है सृजनों से, मैं साँसों का रखवाला हूँ

    सागर की महत्ता समझाती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,,सादर नमन आपको जिज्ञासा जी

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  19. प्रोत्साहित करती आपकी प्रशंसा को तहेदिल से नमन । सादर शुभकामनाएं..जिज्ञासा सिंह...

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  20. तुम मेरी सुनो मैं तेरी सुनूँ, मैं सब कुछ अर्पण कर दूँगा
    हे मानव ! बनकर अनुगामी, सर्वस्व समर्पण कर दूँगा
    वाह बेहतरीन सृजन जिज्ञासा जी।

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  21. बहुत बहुत आभार अनुराधा जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन ।

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  22. लाजवाब! सागर की ओर से प्रकट उद्गारों में कुछ सत्य अनावृत किए हैं जिज्ञासा जी आपने जिनको अनदेखा करके मानव ने अपना ही अहित किया है।

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  23. बहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया कविता सृजन को सार्थक कर गई ।आपको मेरा सादर नमन ।

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