मेघ बरसे यूँ कि जैसे नैन से आँसू झरे ।
दामिनी भी कड़ककर, आज तरुवर पर गिरे ।।
आँधियों ने ला बवंडर, धुंध फैलाई विकट ।
सूर्य की किरणों ने फेंकी, अग्नि जैसी लौ लपट ।।
जल गई धरिनी की काया, और दरारें दिख रहीं ।
इन दरारों में कहीं से, बूँद जल की गिर रही ।।
मैं उसी एक बूँद के, जलस्रोत को हूँ ढूँढती ।
है कहाँ से गिर रहा, ये अमृत सबसे पूछती ।।
मैं हूँ आगे मेरे पीछे, सहस्रों प्राणी खड़े ।
पेड़ पादप जीव जंतु, सब हैं पाने को अड़े ।।
ये वही एक बूँद है, जो शिव जटा की धार थी ।
सृष्टि का जो प्राण थी,और नाम था भागीरथी ।।
बंद आँखें इंद्र की, और वरुण रूठे हैं हुए ।
कल के जनमानस ने भू पर,कर्म कुछ ऐसे किए।।
देखती हूँ चक्षुओं से, हर दिशा औ राह मैं ।
सूखती पड़ती मृदा का, ले रही हूँ थाह मैं ।।
हर तरफ है त्राहि, विपदा डाल दी है प्रकृति ने ।
बूँद जल की हो गई है, इस धरा पे अमृतमय ।।
दृश्य ये हम चर अचर को, दृष्टिगोचर दिख रहा ।
कुछ क्षणों की बात है, आगाह हमको कर रहा ।।
अमृतमय इस बूँद का, कर लो मनुज तुम संचयन ।
वरना कर न पाओगे एक बूँद का भी आचमन ।।
**जिज्ञासा सिंह**
वाह! नि:शब्द!!!
जवाब देंहटाएंविश्वमोहन जी,आपका बहुत बहुत आभार,आपकी प्रशंसा सृजन के लिए संजीवनी है,सादर नमन ।
हटाएंसारगर्भित व शिक्षाप्रद रचना - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंशांतनु जी आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया कविता का मान बढ़ा देती है,मेरे सृजन की प्रशंसा में लिखे आपके दो शब्द अनमोल है, आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंवाह। सटीक एवं सार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया शिवम जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।
हटाएंअद्भुत !!
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जी आपने बहुत ही सुंदरता से जल के महत्व को बताते हुए चेतावनी भी दे दी है, सच पर्यावरण पर जागरूकता होनी अनिवार्य है वर्ना कटते हुए वन और कंक्रीटों के फैलते बवंण्डर में सभी तहस नहस हो जायेगा।
बहुत सार्थक सृजन।
कुसुम जी, प्रकृति संरक्षण का कोई ठोस प्रयास कही नहीं दिखता है,साथ ही वर्षा जल तथा मृदा संरक्षण का तो कोई नाम ही नहीं लेता,सिवाय कागजी खानापूर्ति के । सब देख मन द्रवित हो जाता है।
हटाएंआजकल मैं कुछ भी लिखना चाहूं,मेरी लेखनी अपने आप पर्यावरण से जुड़े किसी न किसी विषय पर जाकर ठहरती है,और आप जैसी विदुषी प्रशंसा करती हैं,तो नव सृजन के लिए प्रेरणा मिलती है, आपको मेरा सादर नमन ।
प्रकृति का संतुलन बनाये ही रखना होगा !!बहुत सुन्दर प्रयास !!
जवाब देंहटाएंआपको ब्लॉग पर देखकर बड़ी खुशी हुई, आपकी टिप्पणी को हार्दिक नमन ।
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सरिता जी, आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन ।
हटाएंमही का करुणामयी चित्रण। दोष हमारा है, अपने भविष्य पर ही ध्यान न दिया।
जवाब देंहटाएंसही कहा प्रवीण जी, आपकी विशेष प्रतिक्रिया मन को छू गई ।
जवाब देंहटाएंअमृतमय इस बूँद का, कर लो मनुज तुम संचयन
जवाब देंहटाएंवरना कर न पाओगे एक बूँद का भी आचमन .
एक एक शब्द मन में उतार लेने वाला . समझना होगा जल है तो जीवन है .
आदरणीय दीदी, आपकी प्रशंसनीय और मनोबल बढ़ाती प्रशंसा को हार्दिक नमन करती हूं । सादर शुभकामनाएं ।
हटाएंEmotional quotes
जवाब देंहटाएंgirly quotes
good night
hunk water
touching Quotes
personality quotes
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल .मंगलवार (8 -6-21) को " "सवाल आक्सीजन का है ?"(चर्चा अंक 4090) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
कामिनी जी, नमस्कार !
हटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच के लिए चयनित करने के लिए आपका बहुत शुक्रिया, सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।
पर्यावरण के प्रति जागरूक करती बहुत सुंदर रचना,जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंज्योति जी आपका बहुत बहुत आभार,आपकी प्रशंसा को तहेदिल से नमन करती हूँ।
जवाब देंहटाएंमेघ बरसे यूँ कि जैसे नैन से आँसू झरे ।
जवाब देंहटाएंदामिनी भी कड़ककर, आज तरुवर पर गिरे ।।
बेहतरीन रचना
बहुत बहुत आभार मनोज जी, सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन आदरणीया जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार प्रिय अनिता जी, आपकी प्रशंसा को हृदय से नमन करती हूँ।सादर शुभकामनाएँ।
हटाएंमैं उसी एक बूँद के, जलस्रोत को हूँ ढूँढती ।
जवाब देंहटाएंहै कहाँ से गिर रहा, ये अमृत सबसे पूछती ।।
मैं हूँ आगे मेरे पीछे, सहस्रों प्राणी खड़े
पेड़ पादप जीव जंतु, सब हैं पाने को अड़े
ये वही एक बूँद है, जो शिव जटा की धार थी
सृष्टि का जो प्राण थी,और नाम था भागीरथी---प्रकृति पर मेरी पसंदीदा रचनाओं में ये भी अब एक है...
वाह कितनी खूबसूरती से आपने पानी लिख दिया, कितनी खूबसूरती से आपने एक जिम्मेदारी को लिख दिया। खूब बधाई जिज्ञासा जी।
संदीप जी, आपकी प्रशंसा ने कविता को सार्थक बना दिया, इतनी सुसज्जित व्याख्या से मै अभिभूत हूँ,संदीप जी आजकल का दृश्य,ख़ासतौर से कोविड पीरियड को देखकर अंतर्मन द्रवित है,कि आख़िर इसका कोई तो ज़िम्मेदार है, हर तरफ़ देखने के बाद यही दिखता है, कि हम ही दोषी हैं। प्रकृति ने हमें क्या नहीं दिया ? और हमने उसे ऐसी स्थिति में छोड़ा है, कि हमें रात दिन वैक्सीन के पीछे भागना पड़ रहा है, स्थिति ये है,कि हम शायद वैक्सीन से बच जायँ, पर धरती को वैक्सीन कौन देगा ? आपकी प्रशंसा को नमन है,सादर शुभकामनाएँ। मेरी आज की कविता पे अपना मार्गदर्शन ज़रूर करें,सादर जिज्ञासा सिंह।
हटाएंअमृतमय इस बूँद का, कर लो मनुज तुम संचयन
जवाब देंहटाएंवरना कर न पाओगे एक बूँद का भी आचमन
बहुत ही सटीक खाका खींच ा है आपने आने वाले कल का... यदि अभी भी नहीं सम्भलें तो ऐसा ही विभत्स रूप देखना पड़ेगा हमें...एक एक बूँद के लिए तरसना पड़ेगा।
बहुत ही उत्कृष्ट एवं लाजवाब सृजन।
वाह!!!
आपकी सटीक व्याख्या कविता को मान दे गई । आपका बहुत बहुत आभार सुधा जी,आदर नमन ।
हटाएंअमृतमय इस बूँद का, कर लो मनुज तुम संचयन
जवाब देंहटाएंवरना कर न पाओगे एक बूँद का भी आचमन
चिंतनपरक सृजन ।
मीना जी आपकी प्रशंसा हमेशा मनोबल बढ़ाती है,सृजन का मान बढ़ाने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार रचना
जवाब देंहटाएंभारती जी,आपका बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएं