मैं कोटि सघन वन की मिरगा


मैं कोटि सघन वन की मिरगा

मेरे ह्रदय पर शूल उगे 
मेरे हृदय पर फूल उगे
शूलों से गूंथा पुष्प और 
वेणी में अपने लिए लगा

घातक पशुओं से घिरी हुई
अपने मृग से भी डरी हुई
मैं मकड़जाल में फंसी मगर
चुन चुन कोमल पल्लव ही चुगा

घनघोर घटाओं में घिरकर
बिन पंख हुए माखी मधुकर
मैं भी भटकी कानन कुंजन
फिर भी न मेरा विश्वास डिगा

अमृत से मेरा कंठ भरा
यह देख लगा मुझपे पहरा
बन गए शिकारी सब मेरे
सौ बार तीर सीने में लगा

जब दावानल ने मुँह फाड़ा  
लौ बीच फँसा मेरा बाड़ा 
मैं क्षितिज तलक भागी दौड़ी 
अपने पुंजों को हृदय लगा

मैं कोटि सघन वन की मिरगा...

**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल 

30 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया को नमन है।बहुत बहुत आभार।

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  2. कितनी सुंदरता से अपने विश्वास को बचाया और अभिव्यक्त भी किया !!सारगर्भित रचना !!

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    1. अनुपमा जी आपकी प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक बना दिया, आपकी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया को सादर नमन।

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  3. कितना सुंदर मानवीकरण किया है आपने।
    बेहतरीन रचना।
    एक एक पद उम्दा ... वाह।

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    1. बहुत बहुत आभार रोहितास जी,आपकी प्रशंसा को सादर नमन।

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  4. आपने निश्चय ही अच्छी कविता रची है जिज्ञासा जी।

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    1. आपकी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया को नमन है।बहुत बहुत आभार।

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-0७-२०२१) को
    'सघन तिमिर में' (चर्चा अंक- ४११४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. चर्चा मंच में मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार प्रिय अनीता जी,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह...

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  6. आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया को नमन है।बहुत बहुत आभार।

    जवाब देंहटाएं
  7. घनघोर घटाओं में घिरकर

    बिन पंख हुए माखी मधुकर

    मैं भी भटकी कानन कुंजन

    फिर भी न मेरा विश्वास डिगा

    बहुत ही सुंदर सृजन l

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  8. मानव व्‍यवहार की अनुकृत‍ि ....अमृत से मेरा कंठ भरा
    यह देख लगा मुझपे पहरा
    बन गए शिकारी सब मेरे
    सौ बार तीर सीने में लगा.... वाह

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    1. बहुत बहुत आभार अलकनंदा जी, आपकी प्रशंसा हमेशा मनोबल बढ़ाती है,स्नेह बनाए रखें।सादर।

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  9. हिरणी के माध्यम से नारी जीवन की चुनौतियों से निपटती उन्हें पार करती कुछ उपलब्धियों को सहेजे,संकट के दावानल से भी अपने पूंजों को बचाकर निकालने का अथक प्रयास।
    अद्भुत भावाभिव्यक्ति सुंदर शब्द सौष्ठव ।
    गहन भाव।
    अप्रतिम रचना।

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  10. आपकी मनोबल बढ़ाती सार्थक प्रतिक्रिया से अभिभूत हूं, आपकी टिप्पणी का जितना आभार व्यक्त करूं कम है,मेरा आपको सादर नमन।

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  11. घातक पशुओं से घिरी हुई
    अपने मृग से भी डरी हुई
    मैं मकड़जाल में फंसी मगर
    चुन चुन कोमल पल्लव ही चुगा ।

    इन पंक्तियों में बहुत कुछ कह दिया । सोचने पर विवश करती सुंदर रचना ।

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    1. आपकी सार्थक प्रशंसा ने कविता को सार्थक बना दिया,सादर नमन और आभार आदरणीय दीदी।

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  12. बहुत सुंदर बौद्धिक सृजन जिज्ञासा जी। नारी जीवन की समस्त उठापटक और जीवटता की विजय गाथा। निशब्द कर ने वाली रचना 👌👌👌🌷🙏

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  13. आपका बहुत आभार प्रिय रेणु जी,आपकी प्रशंसा सिर माथे पर।

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  14. छिपा हृदय में जो, वन सा गहरा। सुन्दर भाव उकेरती पंक्तियाँ..

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  15. आपका बहुत बहुत आभार प्रवीण जी,सादर नमन।

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  16. आपका बहुत बहुत आभार सर,आपको मेरा सादर नमन।

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