बाला ओ गोपाला, प्यारे नंद जी को लाला तुम
काहे मोहें लुक छिप, करो हैरान है ।
बारी बारी लख बारी, करती मआफ तोहें
सोचे यही मन मेरो, छोरो नादान है ।।
खाय लियो मक्खन, मटकियाँ भी फोर दई
कहें गोकुलबासी, गिरधारी सैतान है ।
काऊ समझाऊँ, किस किस सो लुकाऊँ
यह जसुदा का जाया, छुपो मेरो ही मकान है ।।
कोने कोने छुपो फिरे, करै मोसे हठ खेली
बड़ो प्यारो लागे, जब करे परेसान है ।
सबरे गोपाल बाल, भागे हैं भवन निज
हाथ मेरे चढ़ो आज, सबको प्रधान है ।।
**जिज्ञासा सिंह**
वाह मन मोहक सृजन कान्हा जी की बाल लीलाएं सदा लुभावनी मनभावन होती है ,उस पर आपकी यह शानदार वात्सल्य रस भरी सरस रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुंदर जिज्ञासा जी।
आपका बहुत बहुत आभार, आपकी सुंदर,सरस प्रतिक्रिया मन मोह गयी ।
हटाएंप्रधान पकड़े गए । बहुत प्यारी रचना । कृष्ण के कितने रूप ।
जवाब देंहटाएंएक माखनचोर भी ।
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी,सादर नमन।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंक्या कहने हैं जिज्ञासा जी आपकी इस रचना के! ऐसा प्रतीत होता है मानो हम कविवर सूरदास जी के ही काव्यमय उद्गारों का आनंद ले रहे
जवाब देंहटाएंइतनी महान उपमा के लायक़ मेरा सृजन कहाँ है,जितेन्द्र जी,परंतु मैं आपके सुंदर प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ,सादर नमन।
हटाएंअपनी कल की चर्चा में कुछ ऐसा से ही लिखा है ।
हटाएंजितेंद्र जी आपकी बात से सहमत हूँ ।
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (5-07-2021 ) को 'कुछ है भी कुछ के लिये कुछ के लिये कुछ कुछ नहीं है'(चर्चा अंक- 4116) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आदरणीय रवीन्द्र जी,ब्लॉग पर आपका हमेशा हार्दिक स्वागत है,आपका चर्चा मंच मुझ जैसे रचनाकारों को प्रेरित करता है,जो नव सृजन करने तथा मनोबल बढ़ाने का आधार बनते हैं।
हटाएंमेरी रचना के चयन के लिए आपका कोटि आभार,आपको मेरा सादर नमन।शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह..
आपकी लिखी रचना सोमवार 5 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
आदरणीय दीदी,
हटाएंमेरी रचना का चयन करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार एवं अभिनंदन,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह...
वाह!बहुत ही सुंदर सृजन मन मोहता।
जवाब देंहटाएंसादर
अनिता जी,आपकी सुंदर प्रशंसा को सादर नमन।
जवाब देंहटाएंजु जु जु जू..
जवाब देंहटाएंयशोदा का नंदलाला..
काऊ समझाऊँ, किस किस सो लुकाऊँ
यह जसुदा का जाया, छुपो मेरो ही मकान है ।।
बढ़िया उत्सव परक प्रस्तुति
सादर..
आदरणीय दीदी,आपकी टिप्पणी सृजन को सार्थक बना देती है,आपको मेरा सादर नमन एवं वंदन।
हटाएंपसंदीदा गीत
जवाब देंहटाएंhttps://youtu.be/d3WdWPks2X4
दीदी,आपके लिंक पर जाकर गनेबका आनंद ले आई,आपका बहुत बहुत आभार एवम नमन।
हटाएंप्रेम का सबसे शुद्ध अलौकिक रुप जो कृष्ण ने सिखाया वैसा दर्शन विरल है।
जवाब देंहटाएंअति मनमोहक सृजन प्रिय जिज्ञासा जी।
सस्नेह।
बहुत बहुत आभार की श्वेता जी, आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंवाह!खूबसूरत सृजन जिज्ञासा जी ।
जवाब देंहटाएंशुभा जी आपका बहुत बहुत आभार एवम नमन।
हटाएंकृष्ण की बाललीला का मनमोहक वर्णन । उत्कृष्ट सृजन जिज्ञासा जी!
जवाब देंहटाएंइतने सुन्दर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई।
आदरणीय मीना जी,आपका बहुत बहुत आभार एवम आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंबहुत सुंदर ! कभी-कभी बड़ी व्यथा सी होती है अचरज भी होता है कि कैसे खुद अपने अवतार की रुपरेखा बनाई थी ! कैसी नियति तय की थी अपने लिए ! जन्म से लेकर मृत्यु तक शोक, विरह, लांछन, संघर्ष, अपयश, निंदा, दुःख से तपाया था अपने आप को ! दुनिया में ऐसा कुंदन बन उभरा कोई दूसरा चरित्र हो ही नहीं सकता !
जवाब देंहटाएंजी,गगन जी सही कहा आपने,आपकी सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया ने कविता को सार्थक बना दिया, आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन।
हटाएंसुन्दर बाल लीला वर्णन श्री कृष्ण का!बहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार अनुपमा जी, आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंकृष्ण की बाल लीला को बहुत ही सुंदर शब्दों में उकेरा है आपने, जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार ज्योति जी,आपको मेरा सादर नमन।
जवाब देंहटाएंस़ुदर वात्सल्य रस से परिपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंनमन
बहुत बहुत आभार पम्मी जी।
हटाएंसबरे गोपाल बाल, भागे हैं भवन निज
जवाब देंहटाएंहाथ मेरे चढ़ो आज, सबको प्रधान है ।।---वाह मधुरम लेखन...। शैली और सृजन दोनों ही बेहद गहरे हैं। बधाई आपको जिज्ञासा जी।
बहुत बहुत आभार संदीप जी।
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी।
जवाब देंहटाएंअहा, अद्भुत..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रवीण जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, मीठी ब्रजभाषा ने बाललीला को और मधुर बना दिया है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी, आपकी प्रशंसा को सादर नमन।
जवाब देंहटाएंखाय लियो मक्खन, मटकियाँ भी फोर दई
जवाब देंहटाएंकहें गोकुलबासी, गिरधारी सैतान है ।
काऊ समझाऊँ, किस किस सो लुकाऊँ
यह जसुदा का जाया, छुपो मेरो ही मकान है ।।
बाल लीला की मनोरम झांकी संजोई है आपने शब्दों में। हार्दिक शुभकामनाएं 👌👌🌷💐🌷🙏
आपका बहुत बहुत आभार रेणु जी,आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन करती हूं।
हटाएंसबरे गोपाल बाल, भागे हैं भवन निज
जवाब देंहटाएंहाथ मेरे चढ़ो आज, सबको प्रधान है
वाह!!!!
सबका प्रधान पकड़ ही लिया आपने ...बहुत ही मनभावन उत्कृष्ट सृजन जिज्ञासा जी!बहुत बहुत बधाई इस नायाब कृति हेतु...
लाजवाब।
बहुत बहुत आभार सुधाजी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत है,आपको मेरा सादर नमन।
जवाब देंहटाएंछोरो नादान है…सच में सूरदास याद दिला दिए…बहुत सुन्दर रचना ❤️
जवाब देंहटाएंउषा जी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को सादर नमन।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना |
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर,आपकी प्रशंसा कविता को सार्थक बना देती है, आपको मेरा सादर अभिवादन।
जवाब देंहटाएंआदरणीया मैम, लोकभाषा में बाल -गोपाल की लीला पढ़ कर आनंदित हूँ । मन में उनका नटखट माखन-चोर रूप उतर गया है । गोपियाँ तो माखन कान्हा जी के लिए ही मथतीं थीं और माँ यशोदा से शिकायत करना या कान्हा जी को रंगे हाथों पकड़ना तो उनके दर्शन करने का और उनके साथ समय बिताने का बहाना था । हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार और स्नेह प्रिय अनंत,हमेशा ख़ुश रहो।
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्दों में उकेरा है बाल लीला को
जवाब देंहटाएंआपकी अनमोल टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत करती हूं।सादर नमन।
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