ये मूढ़मती मन सोच रहा, कुछ जागृत हो तो अच्छा हो
मैने तन मन धन का मान किया, मन सात्विक हो तो अच्छा हो
हर रोज राह में काँटों ने, चुन चुन के मेरे ही पाँव चुने
जख्मों के मरहम में कुसुमों का, अर्क मिले तो अच्छा हो
अब दुःख और सुख मेरे जीवन में, पथ के दो किनारे जैसे हैं
धीरज संयम को हृदय लगा, सहचर बन जाएँ तो अच्छा हो
एक दिन तो सभी को जाना है,फिर अपना पराया कौन यहाँ
इस शून्य अधम सी काया का, मत मोह करो तो अच्छा हो
वो कहते हैं सब कुछ मेरा है,मैं करती हूँ न्योछावर उनको
क्या लेना मुझे क्या देना मुझे,सब तुम ही संभालो तो अच्छा हो
बस इतना रहे मेरे हाथों में,अर्पण तुमको कुछ कर पाऊँ
वो धन हो या मन हो या जीवन हो,सर्वस्व समर्पण अच्छा हो
हे नाथ कृपानिधि तुम मेरी, छाया बनकर संग में रहना
मैं बन के तुम्हारी अनुगामी, पथ पर चल पाऊँ तो अच्छा हो
**जिज्ञासा सिंह**
पूर्ण समर्पण की भावना , सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबस ये समझ पाएँ की इस संसार में न कुछ मेरा है न तेरा तो अच्छा हो ।
आपकी त्वरित प्रतिक्रिया दिल की गहराइयों तक उतर गई,आपको मेरा सादर नमन आदरणीय दीदी🙏।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर। बाकी और क्या चाहिए जब सबकुछ अच्छा हो..🌼
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शिवम जी ।
हटाएंतेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय,सादर नमन।
हटाएंबस इतना रहे मेरे हाथों में,अर्पण तुमको कुछ कर पाऊँ
जवाब देंहटाएंवो धन हो या मन हो या जीवन हो,सर्वस्व समर्पण अच्छा हो
हे नाथ कृपानिधि तुम मेरी, छाया बनकर संग में रहना
मैं बन के तुम्हारी अनुगामी, पथ पर चल पाऊँ तो अच्छा
बहुत सुंदर प्रिय जिज्ञासा जी। जीवन के तामझाम के बाद आध्यात्मिकता बहुत सुकून देती है। बहुत अच्छा लगता है परम सत्ता से संवाद करना। हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत बहुत आभार प्रिय रेणु जी,आपकी सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया कविता के सृजन को सार्थक कर गई,आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंसर्वस्व समर्पण सब तुझको अर्पण
जवाब देंहटाएंविनती इतनी तू बन जा दर्पण
बहुत सुंदर रचना,अत्यंत भावपूर्ण चैतन्य मन की दार्शनिक अभिव्यक्ति।
सस्नेह
सादर।
आपका बहुत बहुत आभार श्वेता जी,सादर नमन।
हटाएंदिल को छूती बहुत सुंदर रचना, जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार ज्योति जी,सादर नमन।
हटाएंईश्वर करे आपकी सभी आशायें फलवती हैं।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार प्रवीण जी,सादर नमन।
हटाएंहे नाथ कृपानिधि तुम मेरी, छाया बनकर संग में रहना
जवाब देंहटाएंमैं बन के तुम्हारी अनुगामी, पथ पर चल पाऊँ तो अच्छा हो
ऐसी समर्पण हो जाए तो जीवन में कोई दुःख शेष ना रहे
बेहद प्यारी रचना जिज्ञासा जी,सादर नमन आपको
आपका बहुत बहुत आभार कामिनी जी,सादर नमन।
हटाएंसुंदर समर्पण भाव !!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार अनुपमा जी,सादर नमन।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर
आपका बहुत बहुत आभार अनीता जी,सादर नमन।
हटाएंमंत्रमुग्ध करती रचना - -
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार शांतनु जी,सादर नमन।
हटाएंअब दुःख और सुख मेरे जीवन में, पथ के दो किनारे जैसे हैं
जवाब देंहटाएंधीरज संयम को हृदय लगा, सहचर बन जाएँ तो अच्छा हो
वाह!!!
सर्वस्व समर्पण भाव !!!
लाजवाब सृजन।
आपकी प्रशंसा कविता को परिपूर्ण कर गई।आपकी सार्थक प्रतिक्रिया को सादर नमन।
हटाएंबहुत सुंदर आध्यात्मिक भावों से ओतप्रोत,जीवन का सही मूल्यांकन करती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जिज्ञासा जी।
कुसुम जी, आपकी बहुमूल्य टिप्पणी को हार्दिक नमन एवम वंदन करती हूं।
हटाएंप्रभावशाली रचना !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार सतीष जी,सादर नमन।
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिक भावों से सजी अत्यंत सुन्दर कृति जिज्ञासा जी!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी,आपको मेरा सादर नमन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय सर 🙏🙏
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