परिस्थिति का मारा


ये लाल परिस्थिति का मारा
किसकी आँखों का तारा है ।
न साथ में मातु पिता इसके
न दिखता कोई सहारा है ।।

कुछ एक घड़ी पहले मैंने
देखा था दौड़ लगाते इसे
मेरी गाड़ी उसकी गाड़ी
के आगे पीछे जाते उसे

मेरे भी केशों की सज्जा को
वेणी लेकर आया था
बोला था ले लो एक लड़ी
दस रुपया दाम बताया था

मैं कहूँ तू ले ले दस रुपया
पर वेणी नहीं खरीदूँगी
तू मुझसे ज़िद मत कर प्यारे
मैं बीस रुपैया दे दूँगी

वह बोला मुझसे तान भृकुटि
क्या तुम्हें भिखारी लगता मैं
अपने सम्मान की खातिर ही
फूलों की फेरी करता मैं

बिन मातु पिता का बालक मैं
पर जिसने मुझको पाला है
उसने मेहनत की रोटी का ही
मुझको दिया निवाला है

मैं हूँ जरूर जग में अनाथ 
पर मेहनत करना जानूँ मैं
भूखा प्यासा सो जाऊँ मैं
पर स्वाभिमान को मानू मैं

**जिज्ञासा सिंह**

28 टिप्‍पणियां:

  1. काश ! मुफ्त का पैसा पा कर भी देश विरोधी नारे लगाने वाले और उनके हितैषियों के पास से शर्म गुजरती

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    1. जी,सही कहा आपने,आपके उद्गार से सहमत हूं मैं, आपको मेरा सादर नमन ।

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  2. काश की कभी भी बच्चों की ऐसी दुर्दशा न हो।

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    1. जी,सही कहा आपने, ब्लॉग पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणी का सदैव स्वागत है।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 18 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. पम्मी जी, नमस्कार !
      मेरी रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-08-2021) को चर्चा मंच   "माँ मेरे आस-पास रहती है"   (चर्चा अंक-४१६०)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. आदरणीय शास्त्री जी, प्रणाम !
      मेरी रचना के चर्चा मंच में चयनित करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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  5. नींद का कोई श्रृंगार नहीं होता... वह तो थकन की सेज चाहती है... यह तो जिंदगी की बिसात है यहां यह अक्सर हमें नट जैसा नचाती है...। खूब गहन रचना..।

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  6. जी, सही कहा आपने संदीप जी,आपकी प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन ।

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  7. सबका अपना अभिमान रहे,
    जीवन का पूरा मान रहे।

    सुन्दर कविता।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।आपकी प्रशंसा को सादर नमन।

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  8. मैं हूँ जरूर जग में अनाथ
    पर मेहनत करना जानूँ मैं
    भूखा प्यासा सो जाऊँ मैं
    पर स्वाभिमान को मानू मैं

    स्वाभिमान जिसके पास व्व मन से कभी गरीब नहीं हो सकता ।
    संवेदनशील रचना ।

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  9. बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी सृजन।
    अनाथ निर्धन है पर स्वाभिमान की दौलत है जिसके पास वो सचमुच अमीर है ।
    अप्रतिम।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।आपकी प्रशंसा को सादर नमन।

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  10. बहुत खूब, ज‍िज्ञासा जी, वह बोला मुझसे तान भृकुटि
    क्या तुम्हें भिखारी लगता मैं
    अपने सम्मान की खातिर ही
    फूलों की फेरी करता मैं

    बिन मातु पिता का बालक मैं
    पर जिसने मुझको पाला है
    उसने मेहनत की रोटी का ही
    मुझको दिया निवाला है....आत्‍मसम्‍मान का अद्भुत उदाहरण

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।आपकी प्रशंसा को सादर नमन।

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  11. स्वाभिमान का पाठ पढ़ाती बहुत सुंदर रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।आपकी प्रशंसा को सादर नमन।

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  12. बेहतरीन रचना जिज्ञासा जी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।आपकी प्रशंसा को सादर नमन।

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  13. स्वावलंबन के भाव को दर्शाता हृदयस्पर्शी सृजन ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।आपकी प्रशंसा को सादर नमन।

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  14. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति।
    सादर

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  15. बहुत बहुत आभार आपका।आपकी प्रशंसा को सादर नमन।

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  16. भावनाओं की मार्मिकता एक अलग ही सुन्दर छवि प्रस्तुत कर रही है । हार्दिक बधाई आपको ।

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  17. मेरे मन को पढ़ लिया आपने अमृता जी,बहुत आभार आपका ।

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