घिरा अंधेरा राह में, दिशा हुई अवरुद्ध ।
मन के अंदर है छिड़ा, पाप पुण्य का युद्ध ।।
पाप पुण्य का युद्ध, ले गया मुझको मंदिर ।
मां शक्ति के रूप देख, अदभुत व सुंदर ।।
गिर जिज्ञासा चरण, हरो माँ संकट मेरा ।
मातु दिखातीं मार्ग, घना जब घिरा अंधेरा ।।१।।
कर माता की अस्तुति, आसन दिया सजाय ।
पान,सुपारी,ध्वजा,नारियल, चुनरी दिया चढ़ाय ।।
चुनरी दिया चढ़ाय, बनी कुछ शोभा ऐसी ।
लगे मूर्ति आज, जगत की जननी जैसी ।।
कह जिज्ञासा आज, मातु कष्टों को लो हर ।
विनती करते भक्त, जोड़कर नित दोनों कर ।।२।।
माता रानी दे गईं, मुझको ये वरदान
सदा रहेगा तू सुखी, ऐ बालक नादान ।।
ऐ बालक नादान, पड़े जब विपदा भारी ।
श्रद्धा और विश्वास से, सारी मुश्किल हारी ।।
कह जिज्ञासा कर्म करो, कुछ ऐसे भ्राता ।
सदा मिले आशीष, शरण लग जाओ माता ।।३।।
**जिज्ञासा सिंह**
जय मातेश्वरी !
जवाब देंहटाएंजय माता दी 🙏🙏💐💐
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५ -१०-२०२१) को
'जन नायक श्री राम'(चर्चा अंक-४२१८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी, चर्चा मंच पर मेरी कुंडलियों को सजाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन । नव रात्रि तथा दशहरा पर्व की आपको हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई,💐💐
जवाब देंहटाएंवाह!जिज्ञासा जी ,सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार शुभा जी ।
हटाएंवाह! जिज्ञासा जी बहुत सुंदर मंडप सजाया है आपने भक्ति से ओत-प्रोत कुण्डलियाँ का।
जवाब देंहटाएंसभी कुण्डलिया बहुत सुंदर।
बहुत बहुत बधाई आपको माँ के दरबार में उपस्थित के लिए।
सस्नेह।
आपकी प्रशंसा मेरे सृजन को सार्थक कर गईं । आपका बहुत आभार कुसुम जी ।
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंनवदुर्गा पर्व पर माँ दुर्गा की अराधना में
शानदार कुण्डलिया छन्द ...
दशहरा पर्व की बधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत बहुत आभार सुधा जी । प्रशंसा के लिए आपका नमन और वंदन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ।
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