मत उतरो


मत उतरो ।
सोचो समझो तनिक स्वयं को,
और अभी थोड़ा ठहरो ।।

चढ़े अगर अंबर पे हो,
तो नापो उसकी आज भुजाएँ ।
चाँद, सितारे नभमंडल औ,
सप्तऋषि की गूढ़ कथाएं ।।

विचरण करते गगन भेदते,
टूटे तारों संग झरो ।।

उतर गए शशि के संग तो,
सागर से मिलते आना ।
पृथक पृथक देशों से आई,
सरिता से कुछ लेते आना ।।

वह बतलाएगी कितना कुछ,
कैसे और कब, कहाँ भरो ?

अगर कहे संग चलने को फिर,
जाना कांतार से मिलने ।
धरती हँसती वहीं मिलेगी,
इंद्र धनुष का गहना पहने ।।

मेरे पास नहीं कुछ प्यारे,
आज उन्हीं में तुम विचरो ।।

रे मन आज बड़ा व्याकुल,
अपने को ढूंढे इतर उतर ।
चढ़ी हुई हूं सबसे ऊपर,
अन्तर्मन है तितर बितर ।।

एक अरज बस एक अरज,
अपनों से ही तुम संवरो ।।

**जिज्ञासा सिंह**

30 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-10-21) को "/"रावण मरता क्यों नहीं"(चर्चा अंक 4220) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका बहुत बहुत आभार कामिनी जी,आपके स्नेह ने सदैव मेरे सृजन को सार्थकता दी है, रचना के चयन के लिए आपको मेरा कोटि कोटि आभार और अभिनंदन । ढेरों शुभकामनाएं प्रिय सखी ।

      हटाएं
  2. आपका यह गीत निस्संदेह सराहनीय है जिज्ञासा जी। मेरे पास नहीं कुछ प्यारे, आज उन्हीं में तुम विचरो। मनन कर रहा हूँ इन पंक्तियों पर।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी प्रतिक्रिया मेरी अगली रचना का आधार बन जाती है, आदरणीय जितेन्द्र जी । आपकी टिप्पणी मेरा मार्गदर्शन है । आपको मेरा सादर नमन ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार प्रिय अनीता जी । आपकी प्रशंसा रचना को सार्थक बना गई ।

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. ब्लॉग पर आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया को सादर नमन ।

      हटाएं
  6. रे मन आज बड़ा व्याकुल,
    अपने को ढूंढे इतर उतर ।
    चढ़ी हुई हूं सबसे ऊपर,
    अन्तर्मन है तितर बितर ।।

    अहा, हृदय झँकझोर गया।

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी टिप्पणी ने कविता को सार्थक बना दिया ।आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन ।

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह!बेहतरीन । हृदयस्पर्शी सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार शुभा जी । आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन ।

      हटाएं
  9. रे मन आज बड़ा व्याकुल,
    अपने को ढूंढे इतर उतर ।
    चढ़ी हुई हूं सबसे ऊपर,
    अन्तर्मन है तितर बितर ।।
    बहुत ही मार्मिक व हृदय को छू जाने वाली पंक्ति!
    सच दिल को छू गई... 💜❤

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत बहुत आभार और स्नेह प्रिय मनीषा, ततुम्हारी प्रशंसा को सादर नमन।

    जवाब देंहटाएं
  11. दिल को छूती सुंदर अभिव्यक्ति, जिज्ञासा दी।

    जवाब देंहटाएं
  12. रे मन आज बड़ा व्याकुल,
    अपने को ढूंढे इतर उतर ।
    चढ़ी हुई हूं सबसे ऊपर,
    अन्तर्मन है तितर बितर ।।
    हृदयस्पर्शी सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत बहुत आभार मीना जी,आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।

    जवाब देंहटाएं
  14. रे मन आज बड़ा व्याकुल,
    अपने को ढूंढे इतर उतर ।
    चढ़ी हुई हूं सबसे ऊपर,
    अन्तर्मन है तितर बितर ।।
    बेहतरीन रचना जिज्ञासा जी।

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत बहुत आभार अनुराधा जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन ।

    जवाब देंहटाएं