शिकन बादलों की


शिकन सी बादलों पे आज बड़ी छाई है ।
कहे वो जा रहे देखो बहार आई है ।।

धुआँ-धुआँ सा आसमान हुआ जाता है ।
हवा भी चलते हुए राह डगमगाई है ।।

जमी पे जल रही ज्वाला ने रूप बदला है ।
फिजा की खो गई रंगीन तरूणाई है ।।

खगों ने गुलशनों में आना छोड़ दिया है बिलकुल ।
चमकते परों में कुछ जंग सी लग आई है ।।

दिए की रोशनी से कैसे अब उजाला हो ।
निकलते सूर्य की आंखें भी डबडबाई है ।।

जो कह रहे हैं चमन ये बड़ा ही सुंदर है ।
उन्हीं के द्वार पर बजती सदा शहनाई है ।।

यहाँ तो हो रहा है, चलती साँसों का सौदा ।
बड़ी मुश्किल से डोर श्वाँस की बचाई है ।।

**जिज्ञासा सिंह**

14 टिप्‍पणियां:


  1. यहाँ तो हो रहा है, चलती साँसों का सौदा ।
    बड़ी मुश्किल से डोर श्वाँस की बचाई है ।।
    बहुत सुंदर

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योति जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 15 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आदरणीय यशोदा दीदी, नमस्कार !
      "पांच लिंकों का आनंद" जैसे सुंदर मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन । शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह 💐🙏

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  3. वाह !
    हिंदी-उर्दू की मीठी चाशनी में पगी हुई ग़ज़ल !

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय सर, आपकी प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।

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  4. बहुत बहुत आभार नितीश जी, आपकी प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।

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  5. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय जोशी जी ।सादर नमन ।

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  6. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय । ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत करती हूं ।

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  7. सुंदर सार्थक ग़ज़ल, गहन संवेदनाएं समेटे अभिनव अभिव्यक्ति।

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  8. आपका बहुत बहुत आभार कुसुम जी,आपकी प्रशंसा सृजन को सार्थक बना देती है ।

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