शिकन सी बादलों पे आज बड़ी छाई है ।
कहे वो जा रहे देखो बहार आई है ।।
धुआँ-धुआँ सा आसमान हुआ जाता है ।
हवा भी चलते हुए राह डगमगाई है ।।
जमी पे जल रही ज्वाला ने रूप बदला है ।
फिजा की खो गई रंगीन तरूणाई है ।।
खगों ने गुलशनों में आना छोड़ दिया है बिलकुल ।
चमकते परों में कुछ जंग सी लग आई है ।।
दिए की रोशनी से कैसे अब उजाला हो ।
निकलते सूर्य की आंखें भी डबडबाई है ।।
जो कह रहे हैं चमन ये बड़ा ही सुंदर है ।
उन्हीं के द्वार पर बजती सदा शहनाई है ।।
यहाँ तो हो रहा है, चलती साँसों का सौदा ।
बड़ी मुश्किल से डोर श्वाँस की बचाई है ।।
**जिज्ञासा सिंह**
जवाब देंहटाएंयहाँ तो हो रहा है, चलती साँसों का सौदा ।
बड़ी मुश्किल से डोर श्वाँस की बचाई है ।।
बहुत सुंदर
बहुत बहुत आभार ज्योति जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 15 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आदरणीय यशोदा दीदी, नमस्कार !
हटाएं"पांच लिंकों का आनंद" जैसे सुंदर मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन । शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह 💐🙏
वाह !
जवाब देंहटाएंहिंदी-उर्दू की मीठी चाशनी में पगी हुई ग़ज़ल !
बहुत बहुत आभार आदरणीय सर, आपकी प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंखूबसूरत पंक्तियां।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार नितीश जी, आपकी प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय जोशी जी ।सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय । ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत करती हूं ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सार्थक ग़ज़ल, गहन संवेदनाएं समेटे अभिनव अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार कुसुम जी,आपकी प्रशंसा सृजन को सार्थक बना देती है ।
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