दीपों का थाल लिए,
मेरे प्रभु रामजी,
वन से पधारेंगे ।
अँचरा के कोर से,
अँगना बुहार रही,
भरके परात जल,
चरण पखारेंगे ।
लड़ियाँ लगाय,
दूँगी कलश भराय,
सखी दियना जलाय,
पूरे अवध को साजेंगे ।
चंदन चौकिया पे,
फुलवा बिछाय दूँगी,
राम लछिमन और,
जानकी विराजेंगे ।
**जिज्ञासा सिंह**
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंजय श्री राम !
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सर 🙏💐
हटाएंबहुत सुन्दर ♥️
जवाब देंहटाएंशिवम जी,आपका बहुत बहुत आभार 💐💐
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०६-११-२०२१) को
'शुभ दीपावली'(चर्चा अंक -४२३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी,रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन ।
हटाएंशुभ दीपावली। जय श्रीराम।
जवाब देंहटाएंजय श्री राम नितीश जी ।
हटाएंशुभ दीपावली
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका मनोज जी 💐🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका 🙏💐
हटाएंबहुत सुंदर भाव भरा भक्ति पूर्ण सृजन।
जवाब देंहटाएंदीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
सस्नेह।
जी,बहुत बहुत आभार कुसुम जी ।
जवाब देंहटाएंभक्ति पूर्ण सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ।आपको मेरा सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंजय हो।
जवाब देंहटाएंघर आयेंगे, राम लखन सिय।
बहुत बहुत आभार प्रवीण जी।
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