एक दीप जल रहा

रात्रि श्यामला सनी,
              कालरात्रि सी घनी ।     
                                आज तिमिर से ठनी ।।        
एक दीप जल रहा,
                वायु संग मचल रहा ।
                               बर्फ सा पिघल रहा ।।
बुझ गया अगर कहीं,
               दिख रहा है डर यही ।
                               मिल रही डगर नहीं ।।
बस वही बचा था जो,
                   कब से जल रहा था वो ।
                                यूँ संभल रहा था वो ।।
जैसे काल आ रहा,
             दीप को बुझा रहा ।
                             अंधकार ला रहा ।।
हो गए दिशा भ्रमित, 
             थे कहाँ हुए रमित ।
                          भूलकर वही गणित ।।
कि है बड़ी विशाल भव,
                बन के दीप जोति लौ ।
                            ज्ञान का करे प्रसव ।।
आदि अंत है वही,
                  उसने कुछ समझ कही ।
                            उसके कोख में बही ।।
जिसपे सबका वास है,
                प्रभु का निज निवास है ।
                              तू उसी का दास है ।।
ऊष्मा को ले के संग, 
               औ प्रकृति के सात रंग ।
                              सच कहूँ यही उमंग ।।
वक्त की पुकार भी,
             कंठ का है हार भी ।
                            सृष्टि का श्रृंगार भी ।।
इस धरा को पूज तू,
            ढूंढ अब न दूज तू ।
                            न भटक न बूझ तू ।।
कह रही हूँ ऐ मनुज,
              बन धरा का तू अनुज ।
                        जो दिया रहा है बुझ ।।
उस दिए को तू जला,
              तू बना ये सिलसिला ।
                          फूल एक रहे खिला ।।
कहीं न हो कोई दमन ।
                खिला खिला रहे चमन ।।
                             दीप लौ उड़े गगन ।।
                   
         **जिज्ञासा सिंह**

22 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-11-2021) को चर्चा मंच        "रूप चौदस-एक दीपक जल रहा"   (चर्चा अंक-4236)      पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    दीपावली से जुड़े पंच पर्वों कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  2. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी,रचना के चयन के लिए आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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  3. उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार ज्योति जी, धनतेरस,दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई ।

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति प्रिय जिज्ञासा जी। मन का दीप प्रज्ज्वलित करके ही इन्सान सच्ची दिवाली मना सकता है। दीप जीवटता और संघर्ष का प्रतीक है । उससे बड़ी प्रेरणा नहीं हो सकती। मानवता के दीप को प्रज्ज्वलित करके रखना ही होगा। दीप के बहाने प्रेरक सृजन को नमन। दीप पर्व पर आप को सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई। ज्योति पर्व आपके लिए शुभता और खुशियां लेकर सीसीआए यही कामना करती हूं ❤️❤️🌷🌷

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  5. बहुत बहुत आभार प्रिय रेणु जी, आपकी प्रशंसनीय और सारगर्भित प्रतिक्रिया ने कविता का मान बढ़ा दिया,आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन । धनतेरस और दीवाली पर आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई💐💐

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  6. बस वही बचा था जो,
    कब से जल रहा था वो ।

    –अद्धभुत लेखन

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    1. आपकी प्रशंसा ने कविता को साकार कर दिया, आपको मेरा सादर नमन और वंदन ।
      दीपाली के दीप से जगमग पूरा देश ।
      तिमिर भगाने का सदा देते ये संदेश ।।
      दुर्गम पथ सब सुगम हो , मानुष हो खुशहाल ।
      प्रेम और सद्भाव से बीते दिन औ साल ।।
      दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं💐💐

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  7. जो दिया रहा है बुझ, उस दिए को तू जला। अति-प्रशंसनीय रचना है यह जिज्ञासा जी। अभिनन्दन एवं दीपावली की शुभकामनाएं आपको।

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    उत्तर
    1. आपकी प्रशंसा ने कविता को सार्थक कर दिया, आपको मेरा सादर नमन और वंदन ।
      दीपाली के दीप से जगमग पूरा देश ।
      तिमिर भगाने का सदा देते ये संदेश ।।
      दुर्गम पथ सब सुगम हो , मानुष हो खुशहाल ।
      प्रेम और सद्भाव से बीते दिन औ साल ।।
      दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं💐

      हटाएं
  8. आदरणीया जिज्ञासा जी, बहुत सुंदर पंक्तियाँ,
    जो दिया रहा है बुझ ।।
    उस दिए को तू जला,
    तू बना ये सिलसिला ।
    फूल एक रहे खिला ।।
    कहीं न हो कोई दमन।
    सुंदर सृजन!--ब्रजेंद्रनाथ

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  9. आपकी प्रशंसा ने कविता को सार्थक कर दिया, आपको मेरा सादर नमन और वंदन ।
    दीपाली के दीप से जगमग पूरा देश ।
    तिमिर भगाने का सदा देते ये संदेश ।।
    दुर्गम पथ सब सुगम हो , मानुष हो खुशहाल ।
    प्रेम और सद्भाव से बीते दिन औ साल ।।
    दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं💐

    जवाब देंहटाएं
  10. कह रही हूँ ऐ मनुज,
    बन धरा का तू अनुज ।
    जो दिया रहा है बुझ ।।
    उस दिए को तू जला,
    तू बना ये सिलसिला ।
    फूल एक रहे खिला ।।
    अप्रतिम भाव लिए मनोहारी सृजन । दीपावली महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई जिज्ञासा जी 🏜🙏🏜

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    उत्तर
    1. बहुत आभार मीना जी, आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन एवम ।
      दीपाली के दीप से जगमग पूरा देश ।
      तिमिर भगाने का सदा देते ये संदेश ।।
      दुर्गम पथ सब सुगम हो , मानुष हो खुशहाल ।
      प्रेम और सद्भाव से बीते दिन औ साल ।।
      दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं💐🪔🎆🎇

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  11. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 05 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  12. बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी 👏👏
    दीपावली पर लिखी रचना सार्थक हो गई । आपको मेरा नमन और वंदन ।
    दीपाली के दीप से जगमग पूरा देश ।
    तिमिर भगाने का सदा देते ये संदेश ।।
    दुर्गम पथ सब सुगम हो , मानुष हो खुशहाल ।
    प्रेम और सद्भाव से बीते दिन औ साल ।।
    दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं💐🪔🎆🎇

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  13. ऊष्मा को ले के संग,
    औ प्रकृति के सात रंग ।
    सच कहूँ यही उमंग ।।
    बहुत ही उम्दा व सुंदर विचार

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  14. बहुत बहुत आभार प्रिय मनीषा । दीपोत्सव के हर उत्सव को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ।

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  15. बहुत सुंदर पंक्तियाँ,
    जो दिया रहा है बुझ ।।
    उस दिए को तू जला,
    तू बना ये सिलसिला ।

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  16. बहुत बहुत आभार आपका संजय, मैंने आपके ब्लॉग पर कई बार देखा,पर आप गैरहाजिर थे। आपकी टिप्पणी देख बहुत प्रसन्नता हुई । आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏

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  17. सुन्दर लयबद्धता और विचार प्रवाह।

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  18. बहुत बहुत आभार प्रवीण जी,आपकी प्रतिक्रिया यों ने मुझे अभिभूत कर दिया। आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।

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