मन को मत कर बंद राही पिंजर में ।
डूब जाएगा तू यहाँ समंदर में ।
और गहरे, और गहरे डूबता जाएगा है तू ।
जीवन सागर है यहाँ की चाबियाँ पाएगा न तू ।।
फँस जाएगा जीवन के हर मंजर में ।
मन को मत कर बंद राही पिंजर में ।।
मन के दरवाजे, सीकचे ढीले कर ।
हर अंधेरे बाद होती एक सहर ।।
हैं सभी फंसते यहाँ बवंडर में ।
मन को मत कर बंद राही पिंजर में ।।
धोखा मिलता है सभी को राह में ।
काटने जो बैठे गर्दन चाह में ।।
है लगाए खून घूमें खंजर में ।
मन को मत कर बंद राही पिंजर में ।।
जिंदगी संघर्ष है तू मान ले ये ।
हर बला है भागती गर ठान ले ये ।।
उग है जाती हरियाली भी बंजर में ।
मन को मत कर बंद राही पिंजर में ।।
**जिज्ञासा सिंह**
मन को खुला भी कैसे छोड़ें ? बाँधना पड़ता है मन को साधने के लिए । 😄😄😄
जवाब देंहटाएंसंदेशपरक रचना ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी, आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।
हटाएंमन को मत कर बंद राही पिंजर में ।
जवाब देंहटाएंडूब जाएगा तू यहाँ समंदर में ।
बहुत खुब, लेकिन... संगीता दी ने भी सही कहा" खुला भी कैसे छोडे, बहुत ही सुन्दर सृजन जिज्ञासा जी, सादर
बहुत बहुत आभार कामिनी जी । आपकी प्रशंसा को नमन और वंदन ।
हटाएंजिंदगी संघर्ष है तू मान ले ये ।
जवाब देंहटाएंहर बला है भागती गर ठान ले ये ।।
उग है जाती हरियाली भी बंजर में ।
मन को मत कर बंद राही पिंजर में ।
बहुत सुंदर सृजन, जिज्ञासा दी।
आपकी सराहना रचना को सार्थक कर गई । आपकी प्रशंसा को नमन और वंदन ।
हटाएंबहुत सुंदर ! पर मन कहां बंधता या कैद होता है ! उसकी फितरत ही उन्मुक्त विचरण है ! जिसने उसे बांध लिया फिर वह मानव कहां रहा
जवाब देंहटाएंकविता का सार समझ आपने प्रतिक्रिया दी । सृजन सार्थक हुआ। हृदय से आभार और नमन ।
हटाएंउत्तम राह पर उन्मुक्त विचारों के खातिर मन को को भी पतंग सा उन्मुक्त तो करना ही होगा ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही चिन्तनपरक एवं विचारणीय सृजन।
सुधा जी आप की प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थकता प्रदान की आपका हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंमन चिड़िया है और तितली भी
जवाब देंहटाएंमन पानी,हवा और मछली भी
मन मन का बंधन ही पहचाने
मन प्रेम पतंग की सुतली भी।
------
बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन प्रिय जिज्ञासा जी।
प्रिय श्वेता जी बहुत दिनों पश्चात आपकी टिप्पणी ब्लॉक पर देख कर मन अभिभूत हुआ । बहुत सारा आभार व्यक्त करती हूं। आपको नमन और बंदन
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (07-12-2021 ) को 'आया ओमीक्रोन का, चर्चा में अब नाम' (चर्चा अंक 4271) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी,चर्चा मंच में रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन । आपको मेरा नमन और बंधन ।
हटाएंगहन चिंतन
जवाब देंहटाएंमन बंदी बनकर
नहीं कर सकता..
जिंदगी संघर्ष है तू मान ले ये ।
हर बला है भागती गर ठान ले ये ।।
उग है जाती हरियाली भी बंजर में ।
मन को मत कर बंद राही पिंजर में ।।
सुंदर रचना
सादर..
आदरणीय दीदी ब्लॉक पर आपकी टिप्पणी से रचना सार्थक हो गई, आपको मेरा हृदय तल से नमन और वंदन ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंब्लॉक पर आपका हार्दिक स्वागत है आपकी टिप्पणी को नमन और वंदन ।
हटाएंजिंदगी संघर्ष है तू मान ले ये ।
जवाब देंहटाएंहर बला है भागती गर ठान ले ये ।।
उग है जाती हरियाली भी बंजर में ।
मन को मत कर बंद राही पिंजर में ।।
बहुत ही शानदार बात कही आपने!
लाजवाब सृजन..
बहुत-बहुत आभार प्रिय मनीषा ।सुंदर टिप्पणी के लिए शुक्रिया ।
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंहिम्मते जिज्ञासा, मदद-ए-ख़ुदा !
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सर । आपको मेरा सादर अभिवादन ।
हटाएंप्रेरक रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी आपका बहुत-बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंमन के उन्मुक्त प्राणी की लम्बी उड़ान को रोकना नहीं चाहिए ... ये उड़ान ही सृजन की प्रेरणा देती है ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय ।
जवाब देंहटाएं