विश्वासघात

दर्द में डूबी हुई अनमोल रातें

क्या कहूँ उन आँसुओं का
चक्षु के कोरों से निकले 
कान तक जो बह गए
भीगे हुए केशों की बातें 
दर्द में डूबी हुई अनमोल रातें ।।

बेशरम से हो गए मेरे अधर भी
हैं लबों का मोल भी क्या
होंठ भी कुछ बुदबुदाते थरथराते
आस की पीड़ा में नीले पड़ से जाते 
दर्द में डूबी हुई अनमोल रातें ।।

रात हैं दिन, दिन भी रातें
है समय क्या ? क्या घड़ी है
कौन हूँ किसको पड़ी है
रोर सा दिल में मचलता
और कहानी कहती घातें
दर्द में डूबी हुई अनमोल रातें ।।

है विषम सम का विषय ये
द्वार पर मेरे खड़ा जो
रत अनर्गत चुभ रही है 
एक कली कंटक के जैसे
उसपे भौरा गीत गाते
दर्द में डूबी हुई अनमोल रातें ।।

**जिज्ञासा सिंह**
चित्र गूगल से साभार

16 टिप्‍पणियां:

  1. हृदय स्पर्शी रचना।
    घात का दर्द पिघलता सा स्याही में समा गया हो जैसे
    बहुत सुंदर सृजन।

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    1. आपका बहुत-बहुत आभार । आपकी प्रशंसा को नमन और बंदन ।

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  2. उत्तर
    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थक कर दिया । आपको नमन और बंदन ।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०४-१२ -२०२१) को
    'हताश मन की व्यथा'(चर्चा अंक-४२६८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  4. बहुत-बहुत आभार अनीता जी । चर्चा मंच में रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन करती हूं.. सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह

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  5. रात हैं दिन, दिन भी रातें
    है समय क्या ? क्या घड़ी है
    कौन हूँ किसको पड़ी है
    रोर सा दिल में मचलता
    और कहानी कहती घातें
    दर्द में डूबी हुई अनमोल रातें ।।
    बहुत ही मार्मिक, हृदयस्पर्शि रचना
    दर्द छलक रहा है एक एक पंक्ति में!
    हर किसी के जिंदगी में ऐसा समय आता है
    जब न तो कोई हमें समझने वाला होता है और न ही कोई हमारे दर्द को महसूस करने वाला! तब खुद से दोस्ती करते हैं हम खुद के दोस्त बनते हैं खुद से संवाद कर रहें होतें है!

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    1. वाह ! इतनी समझदारी भरी और सारगर्भित टिप्पणी लगता है किसी बड़े ने की हो, मर्म तक पहुंचने के लिए बहुत आभार प्रिय मनीषा ।

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  6. बहुत ही सुन्दर ‌‌‌लिखा है आपने। हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकारें।।।।

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  7. बहुत बहुत आभार पुरुषोत्तम जी । आपकी टिप्पणी देखकर बहुत प्रशंसा हुई । ब्लॉग पर आपका नमन और बंदन ।

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  8. भावपूर्ण पंक्तियां , बेहतरीन रचना

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  9. कहूँ क्या ?
    अव्यक्त भावों की व्यथा-कथा ।
    खूब कहा !

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  10. रचना के भाव का सार समझ सुंदर टिप्पणी के लिए आपका आभार।

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  11. आपकी इस कविता का स्तर अत्यन्त उच्च है जिज्ञासा जी, इसमें कोई संदेह नहीं। पढ़ने वाले के मन को आलोड़ित कर देने वाली रचना की है आपने।

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  12. आपकी प्रशंसा सृजन को सार्थक कर जाती है,ब्लॉग पर आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया का हमेशा स्वागत है ।आदरणीय जितेन्द्र जी आपको मेरा नमन और वंदन ।

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