हर कण कण में, हर इक क्षण में,
द्रुम द्रख्तों का दिखे अवतरण ।
घर्षण की चिंगारी से,
निकले नव अंकुरित किरण ।।
वो अनुरागिनि बैठ धरा पर
शत शत दीप जलाय रही ।
बीज कुबीज लिए आँचल में
मरु सी भूमि सजाय रही ।।
बारंबार गिरे धरणी पर
सह डाले अगणित अंधड़ ।।
सागर की कल कल छल छल
के आगे भीख माँगती है वो ।
दे दो हे रत्नाकर बूँदें
देती तुमको है बरखा जो ।।
आँख मूँद कर, अपने हाथों
करती बस धरती का पोषण ।।
आएगी इक दिन तो हरितिमा
पहने पातों की चुनरी ।
लाखों व्यवधानों से लड़कर
रक्खी झोली सदा भरी ।
बाधाओं से हर पग में वो
जीत रही है निशदिन रण ।।
चीर वक्ष काली रैना का
अरुणोदय प्राची रसरंग ।
धरनी का श्रृंगार किया
ले इंद्रधनुष के सातों रंग ।।
ये आशा है, जिज्ञासा है
ये उसके जीवन का प्रण।।
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 09 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी, रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह 💐🙏
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०९-१२ -२०२१) को
'सादर श्रद्धांजलि!'(चर्चा अंक-४२७३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी, रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन । शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना, खूबसूरत पंक्तियां
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने और प्रशंसनीय प्रतिक्रिया देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय ।
हटाएंसागर की कल कल छल छल
जवाब देंहटाएंके आगे भीख माँगती है वो ।
दे दो हे रत्नाकर बूँदें
देती तुमको है बरखा जो ।।
आँख मूँद कर, अपने हाथों
करती बस धरती का पोषण ।।
शानदार अभिव्यक्ति
सादर...
इस सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी । आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन ।
हटाएंवो अनुरागिनि बैठ धरा पर
जवाब देंहटाएंशत शत दीप जलाय रही ।
बीज कुबीज लिए आँचल में
मरु सी भूमि सजाय रही ।।
बारंबार गिरे धरणी पर
सह डाले अगणित अंधड़ ।।
बहुत ही बेहतरीन सृजन!
हर किसी के लिए प्रेणास्रोत हैं!
सही मायने में ऐसे ही लोग पद्मश्री के हकदार होते हैं और इनको पद्मश्री मिलने से इनके साथ बहुत से लोगों को प्रेणा मिलती है!
आदरणीय तुलसी गौड़ा जी को शत् शत् नमन्🙏🙏
बिलकुल सही कहा मनीषा ।ऐसे बहुत ही क्रियाशील लोग हैं जो
हटाएंअपने कर्मों से बहुत ही नेक काम कर रहे हैं । पर गुमनाम जिंदगी जीते । ऐसे लोगों को पद्मश्री मिलना गर्व का विषय है ।
आदरणीया तुलसी गौड़ा जी को सत सत नमन, लाजवाब सृजन जिज्ञासा जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम ।
हटाएंतुलसी गौड़ा जी की प्रतिष्ठा में अनुपम कृति
जवाब देंहटाएंकलम की जय हो
आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंआएगी इक दिन तो हरितिमा
जवाब देंहटाएंपहने पातों की चुनरी ।
लाखों व्यवधानों से लड़कर
रक्खी झोली सदा भरी ।
बाधाओं से हर पग में वो
जीत रही है निशदिन रण
आदरणीया तुलसी गौड़ा जी को समर्पित लाजवाब सृजन
वाह!!!
आपकी प्रशंसा भरी प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
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जवाब देंहटाएंवो अनुरागिनि बैठ धरा पर
शत शत दीप जलाय रही ।
बीज कुबीज लिए आँचल में
मरु सी भूमि सजाय रही ।।
बारंबार गिरे धरणी पर
सह डाले अगणित अंधड़ ।।
सह डाले अगणित अंधड़ ।।
आदरणीया तुलसी गौड़ा जी को समर्पित लाजवाब कृति । आपकी कलम हर विषय पर अपनी सुन्दर छाप छोड़ती है ।
आपकी सराहना ने कविता को सार्थक कर दिया आदरणीय मीना जी ।आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम रचना जिज्ञासा जी अद्भुत लेखन आपकी प्रत्येक रचना अनुपम होती है, बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना करती अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक नमन एवम वंदन आदरणीय दीदी 💐🙏
हटाएंआदरणीय तुलसी गौड़ा और उन जैसे तमाम गुमनाम योद्धा जो किसी न किसी रूप में पर्यावरण समाज और देश कि सेवा में निस्वार्थ भाव से लगें है उन सब को छुती नमन करती आपकी रचना |
जवाब देंहटाएंसुन्दर अति सुन्दर ! भावपूर्ण सृजण !
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय । आपकी सराहना संपन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक नमन और वंदन ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका बी।
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