नील नभ में है जड़ित
मोती सा दिखता चंद्रमा
नृत्य करतीं तारिकाएँ
झूमता है आसमाँ
चाँद की निर्मल प्रभा
सज्जित हुआ सारा गगन
दूधिया सी चाँदनी से
चमकता है ये चमन
उतरती हैं मेनका
स्वागत करे स्वर्णिम जहाँ ।।
ओस की लड़ियाँ सुशोभित
भोर हर तिनके पे हैं
मोगरे सी गुंथी आभा
पुष्प के मनके पे हैं
हीरकों की किरन से
है दमकता हर बागबाँ ।।
पंछियों का झुंड कलरव
कर रहा अंबर तलक
रजत पंखों की छटा बिखरी
चमकती दूर तक
नयन ओझल एक,
दूजा उड़ चला है कारवाँ ।।
**जिज्ञासा सिंह**
वाह बहुत ही खूबसूरत!
जवाब देंहटाएंएकदम पूर्णिमा की रात्रि की तरह!
प्रशंसा के लिए बहुत बहुत आभार प्रिय मनीषा 💐👏
हटाएंअति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी 💐👏
हटाएंवाह , लाजवाब 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी 💐👏
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ फरवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी "पांच लिंकों का आनंद" में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन करती हूं । मेरी असंख्य शुभकामनाएं 💐💐
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (१८-०२ -२०२२ ) को
'भाग्य'(चर्चा अंक-४३४४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत-बहुत आभार अनीता जी । चर्चामंच में रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन । मेरी बहुत बहुत शुभकामनाएं 💐💐
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी।
हटाएंपसंद आई..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय दीदी 💐👏
हटाएंबहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबधाई
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय 👏💐
जवाब देंहटाएंवाह!खूबसूरत भावाभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शुभाजी ।
हटाएंवाह ! आपने तो आसमान पर साक्षात स्वर्ग ही रच डाला
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय गगन की । आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन ।
हटाएंप्रिय जिज्ञासा जी, जगमग-जगमग मनमोहक और सजीले पूर्णिमा के चंद्र नवल का अत्यंत सुन्दर वर्णन! बहुत ही प्यारी शब्दावली में सजी पूर्णमासी की शीतल और दूधिया चांदनी में नहाई रात का वर्णन पढ़कर आनन्द आया। इस प्यारी सी कविता के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसच कहूं तो मुझे भी एक पुरानी रचना याद आ गई जो लेखन के शुरुआती दिनों की है। यहां लिख रही हूं--
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बादल संग आँखमिचौली खेले
पूरा चाँद सखी फागुन का-- !
संग जगमग तारे
लगें बहुत ही प्यारे
सजा है आँगन नीलगगन का !!
सखी ! दूध सा चन्दा
दे मन आनंदा,
हरमन भाये ये समां पूनम का !!
कोई फगुवा गाये
तो पीहर याद आए,
झर-झर नीर बहे नयनन का !!
सखी ! अपलक निहारूँ
मैं तन- मन वारूँ ,
चाँद लगे साथी
कोई बचपन का !!
🙏🌷🌷💐💐❣️❣️
अहा! कितनी प्यारी मनोहारी रचना ।
हटाएंसच पूनम का चांद होता ही इतना सुंदर है ।
इतनी सुंदर प्रतिक्रिया ।
बहुत बहुत आभार आपका सखी 💐💐
वाह!!!!
जवाब देंहटाएंदूधिया चाँद!
बहुत ही मनभावन लाजवाब सृजन।
आपका बहुत बहुत आभार सुधाजी । सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंओस की लड़ियाँ सुशोभित
जवाब देंहटाएंभोर हर तिनके पे हैं
मोगरे सी गुंथी आभा
पुष्प के मनके पे हैं
हीरकों की किरन से
है दमकता हर बागबाँ ।। वाह्ह्ह👌
बहुत प्यारी रचना प्रकृति का सुरम्य दर्शन करवाती सुंदर रचना।
बहुत बहुत आभार आपका कुसुम जी💐👏
जवाब देंहटाएंJude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
जवाब देंहटाएंPub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers