पीले लाल गुलाब
यादों की हमसाया मेरी
दीमक लगी किताब ।
कल के मधुरिम
एहसासों में पूरे डुबे अहे
रेशा रेशा कलियों का
अफसाना खूब कहे
कैसा मेरा था गुरूर
कैसी थी आब ?
खुशबू कई बरस
पहले की भीनी भीनी
घोले अधर मिठास
शहद भी फीकी चीनी
हर पंखुड़ी छुपाए दिल
में मीठा ख्वाब ।।
एक पन्ने के मध्य
रखी है मेरी वो छवि
प्रेमपत्र में गीत रचे थे
बन तुमने कवि
तुम देते हो पुष्प
झुकी करती आदाब ।।
पुलक रहा मन
अभीभूत हूँ देख पंखुड़ी
पत्र लिए पढ़ती
खो जाती खड़ी खड़ी
कभी सजाई थी पंखुड़ियाँ
ज्यूँ मेहताब ।।
**जिज्ञासा सिंह**
वाह सुन्दर पंखुड़ियां यादों की पंखुड़ियां
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ऋतु जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन और वंदन 💐👏
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 23 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय दीदी । "पांच लिंकों का आनंद" में रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक नमन और वंदन । सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई💐👏
हटाएंJude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
जवाब देंहटाएंPub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers
वाह !
जवाब देंहटाएंगंगा-जमुनी तहज़ीब का फले-फूले दो-आब !
बहुत बहुत आभार आदरणीय सर 👏💐
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-02-2022) को चर्चा मंच "हर रंग हमारा है" (चर्चा अंक-4349) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय शास्त्री जी । चर्चा में रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक नमन और वंदन । सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई💐👏
हटाएंलाजवाब सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मनोज जी 💐💐
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही खूबसूरत रचना💐
जवाब देंहटाएंएकदम मीठी यादों की तरह,
यादें इतनी अच्छी होती ही है कि आते ही लबों पर मुस्कान आ जाती हैं लेकिन हां जाते जाते हैं कभी-कभी आंखों को नम कर जाती हैं पर मीठी यादें होती बहुत अच्छी हैं !
बहुत बहुत आभार प्रिय मनीषा ।
हटाएंहृदय स्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय।
हटाएंवाह जिज्ञासा जी आज तो श्रृंगार छलका जा रहा है शब्द शब्द, बहुत ही सुकोमल रचना। सुंदर हृदय स्पर्शी भाव सुंदर यादें ।
जवाब देंहटाएंइन सब के बीच, सहेजी यादों की किताब में दीमक क्यों???
"यादों की हमसाया मेरी
दीमक लगी किताब ।"
प्रशंसनीय।
मन की किताबों का क्या कुसुम जी? कभी कभी बिना पढ़े उनमें दीमक लग ही जाता है☺️☺️
हटाएंआपकी सार्थक सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक नमन और वंदन 👏👏
ज्यों किताबों में सूखा हुआ गुलाब मिले .... शायद यह किसी गजल की पंक्ति है जो आपकी कविता पढ़कर याद आ गयी, मधुर सृजन !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी । आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का हार्दिक अभिनंदन करती हूं ।
हटाएंवाह ...
जवाब देंहटाएंपंखुड़ियों के कितनी ही श्रृंगार रच दिए आपने ...
किताब के सूखे गुलाब की तो बात ही क्या ...
बहुत बहुत आभार आपका दिगम्बर जी। आपकी प्रशंसा को नमन है ।
जवाब देंहटाएंवाह!यादों की पंखुड़ियाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
सादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी ।
हटाएंवो बीते दिन
जवाब देंहटाएंऔर आँखों की भाषा
गुलाब के माध्यम से
जैसे पूरी होती आशा
रख किताब में
रोज़ पंखुरी देखना
मीठी सी खुशबू का
एहसास मन में भर लेना ,
ख्वाब और हकीकत में
बस यही अंतर होता है
ख्वाबों में खूबसूरत एहसास
तो हकीकत में
थोड़ा दर्द होता है ।।
बेहतरीन रचना ।
ख्वाब और हकीकत में
जवाब देंहटाएंबस यही अंतर होता है
ख्वाबों में खूबसूरत एहसास
तो हकीकत में
थोड़ा दर्द होता है ।।...हर मन को जरूर छू जाएंगी आपकी ये पंक्तियां। मेरे मन को तो अंदर तक भिगो गईं।
जिंदगी के ऐसे दर्द हमेशा तीस दे जाते हैं।
आपकी सुंदर भावभीनी और प्रेरणादायक टिप्पणियां मेरे लिए संजीवनी हैं ।आपको मेरा विनम्र नमन और वंदन।