साँकल द्वार लगी कि लगी
अभ्यंतर आय बसा जोगी
रनिवास छोड़ मैं दौड़ पड़ी
सारंगी ऐसी बाजी
कौन कहे यह धुन कैसी
मन आजु यती ने साजी
युगों गए यहि धुन पर मीरा
बनी प्रेम रोगी ।
साँकल द्वार लगी कि लगी
अभ्यंतर आय बसा जोगी ।।
कहाँ बजे और कौन सुने
यह धुन मैं ही जानूँ
सकल प्रीत की उठती ज्वाला
लपट हृदय बिच भानू
खेल नहीं ये मन ही जाने
क्या पहचानें पोंगी ?
साँकल द्वार लगी कि लगी
अभ्यंतर आय बसा जोगी ।।
नगर ढिंढोरा पीट रहे जो
मर्म व्यथा क्या जाने
हाय करमगति भेद गई है
जाने अनजाने
कहे तीव्र स्वर में हुंकार भर
मैं जग की ढोंगी ।
साँकल द्वार लगी कि लगी
अभ्यंतर आय बसा जोगी ।।
भूत की करन भविष्य कहे
कुछ ग्रंथ कहें कुछ मानस
मैं तो कर्मकार के झुक गइ
रहा नहीं कुछ भानस
कोई ठगिनी, कहे योगिनी
कहता कोई भोगी ।
साँकल द्वार लगी कि लगी
अभ्यंतर आय बसा जोगी ।।
**जिज्ञासा सिंह**
वाह।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार शिवम जी !
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२८ -०२ -२०२२ ) को
'का पर करूँ लेखन कि पाठक मोरा आन्हर !..'( चर्चा अंक -४३५५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत-बहुत आभार अनीताजी । चर्चामंच में रचना को शामिल करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐👏
हटाएंवाह जिज्ञासा !
जवाब देंहटाएंप्रेम-दीवाणी मीरा के गीतों के जैसा भावपूर्ण गीत !
आपका बहुत-बहुत आभार । सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए आप को मेरा नमन और बंदन।
हटाएंलोक जीवन की सौंधी सुगंध लिए कमाल का गीत
जवाब देंहटाएंप्रभावी शब्दशिल्प
बहुत बधाई
बहुत-बहुत आभार आपका । आपकी सार्थक प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक कर दिया । नमन और वंदन।
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना बहुत ही खूबसूरती से मन के भावों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया है आपने प्रिय मैम
बहुत आभार प्रिय मनीषा।
हटाएंभूत की करन भविष्य कहे
जवाब देंहटाएंकुछ ग्रंथ कहें कुछ मानस
मैं तो कर्मकार के झुक गइ
रहा नहीं कुछ भानस
कोई ठगिनी, कहे योगिनी
कहता कोई भोगी ।
साँकल द्वार लगी कि लगी
अभ्यंतर आय बसा जोगी ।।
वाह!!!
सराहना से परे नि:शब्द करती रचना।
बहुत ही लाजवाब
बधाई एवं शुभकामनाएं आपको।
आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मनोबल बढ़ाती है, नमन और वंदन प्रिय सखी 💐
हटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपकी उपस्थिति से अतीव हर्ष हुआ ।बहुत आभार आपका 💐👏
जवाब देंहटाएंवाह! अद्भुत, मन की लगन मीरा की दिवानगी तक ले जाती है भला साधारण मनुष्य इसे क्या समझेगा क्या रोकेगा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मनोहर सृजन।
बहुत बहुत आभार कुसुम जी ।
हटाएंलाज़बाब,मनमोहक रचना जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दीदी ।आपको मेरा सादर अभिवादन 👏💐
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