रिश्तों की बुनियाद


हर मोड़ पे चाहने वालों ने
रिश्तों के तार तराशे हैं
पर कौन निभाएगा इनको
रिश्ते जब बने तमाशे हैं ।।

रिश्तों की नव बुनियादों को
मूल्यों से ही वंचित रक्खा
रिश्तों ने हमको छोड़ जहाँ का 
स्वाद अधिक चाहा चक्खा
हम लगते उनको मरूभूमि
वो हरियाली के प्यासे हैं ।।

जो खुद का वतन हमारा है
हम खुद ही उससे रहे भगे
अपने ही लोगों से हमको
वाक़िफ होना ही गुनाह लगे
ऐसे में उनकी क्या गलती
हमने ही फेंके पासे हैं ।।

रंगीनी औ रंगिनियत का
है खूब तमाशा यहाँ वहाँ
हर ओर मुकम्मिल रिश्तों का
बिखरा दिखता अनमोल जहाँ 
अपना जो बनाना चाहो तो
मिलते ही हमेशा झाँसे हैं ।।

रक्खूँ, या बिखेरुँ तोड़ तोड़
ये हर एक मन की पैदाइश
वो मेरे बने या दूर रहें
करनी ही नहीं जब अजमाइश
इकतरफा चलकर रिश्तों में
मिलते ही सदा कुहासे हैं ।।

**जिज्ञासा सिंह**

23 टिप्‍पणियां:

  1. हर मोड़ पे चाहने वालों ने
    रिश्तों के तार तराशे हैं
    पर कौन निभाएगा इनको
    रिश्ते जब बने तमाशे हैं ।। बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति।

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  2. बहुत बहुत आभार आपका, आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मनोबल बढ़ाती है 👏💐

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  4. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।रचना का चयन करने के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन। हार्दिक शुभकामनाएं 💐👏

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  5. सच रिश्तों को एक सूत्र में बाँधे रखा हँसी -ठट्टा नहीं
    बहुत सुन्दर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका । सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक नमन ।

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  6. बिना मूल्यों के रिश्ते सिर्फ नाम के रिश्ते होते हैं.
    अनुभव आधारित सटीक रचना.
    Welcome to my New post- धरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा

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    1. बहुत बहुत आभार आपका । सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक नमन ।

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  7. बहुत ही सुंदर व सटीक सृजन प्रिय जिज्ञासा ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका । सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक नमन ।

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  8. बहुत सुंदर सृजन, जिज्ञासा दी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका । सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक नमन ।

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  9. हम लगते उनको मरूभूमि
    वो हरियाली के प्यासे हैं ।।

    आह और वाह! के पल जिज्ञासा जी।
    शानदार व्यंजना बहुत बहुत हृदय स्पर्शी बिंब अभिनव सृजन।
    बहुत सुंदर।

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  10. बहुत बहुत आभार आपका । सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक नमन ।

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  11. जब तक आदमी का खुद से रिश्ता नहीं जुड़ता बाहर के रिश्ते टिकते नहीं, जब खुद से यानी खुदा से रिश्ता जुड़ जाता है तब सारा ऊहापोह ख़त्म हो जाता है, तब हरेक रिश्ते से एक ही ख़ुशबू आती है प्रेम की ख़ुशबू!

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    1. बहुत सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार 👏👏🌹🌹

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  12. एकदम सटीक लिखा है जिज्ञासा जी आपने
    रिश्तों को लेकर मेरा भी यही अनुभव रहा अनकहे से भावों को शब्द दिये हैं आपने...
    बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं आपको।
    रिश्तों से डर गया मन इस कदर
    इसने नाते न जोड़े फिर उम्र भर।

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    1. जीवन में रिश्ते बहुत अनुभवी बना जाते हैं सखी । सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार 👏👏🌹

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  13. रक्खूँ, या बिखेरुँ तोड़ तोड़
    ये हर एक मन की पैदाइश
    वो मेरे बने या दूर रहें
    करनी ही नहीं जब अजमाइश
    इकतरफा चलकर रिश्तों में
    मिलते ही सदा कुहासे हैं ।दरकते रिश्तों की मार्मिक अभिव्यक्ति प्रिय जिज्ञासा जी।मन को छूती हुई।

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    1. जीवन में रिश्ते बहुत अनुभवी बना जाते हैं सखी । सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार 👏👏🌹

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  14. बहुत आभार प्रिय मनीषा, खुश रहो💐💐

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  15. एकदम सटीक लिखा है जिज्ञासा जी आपने

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