है चौपाल गरम ।
चाय की भट्ठी दिगी हुई
चूना खैनी ठुंकी हुई
कंडा लकड़ी थुनिया थम्मर
बेड़रा बापू हम ।
अहा सजी चौपाल
नीति के लंबरदार
ठोंक ठोंक कर ताल
कहें ओ बरखुरदार
पासा रक्खो पास
रहो चुप अभी नरम ।।
गिरगिट वाला रंग
बहो फगुआ की तान
अंधे, बहरे, लूले, लंगड़े
बन लो सिद्ध सुजान
दिखे बड़ा आदर्श
ओढ़ लो दीन धरम ।।
उजली है हर रात
दिनों की बात न पूछो
हैं दरबारी सजे
तिलोरी फेरी मूँछों
साम दाम औ दंड
भेद कर सारे तिकड़म ।।
**जिज्ञासा सिंह**
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (06 मार्च 2022 ) को 'ये दरिया-ए गंग-औ-जमुन बेच देंगे' (चर्चा अंक 4361) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी, चर्चा मंच में रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन । मेरी शुभकामनाएँ💐👏🏻
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका अनुराधा जी ।
हटाएंबहुत सुंदर आँचलिक शब्दों से सुसज्जित रचना! साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय 💐💐👏👏
जवाब देंहटाएं😄😃👌👌क्या बात है प्रिय जिज्ञासा जी।अलाव पर नीति के ठेकेदारों की चर्चा को क्या खूब अभिव्यक्ति दी है आपने!रोचक शब्दावली और हास्य पुट ने ताल ठोक दी।😃😄😄लोकजीवन का ये लुभावना रंग बहुत आनन्ददायक है।इस रसीली रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं 😃
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका । दृश्य देखा लेखनी चल गई👏👏😀😀
हटाएंगूंगे के गुड सी अभिव्यक्ति 😃👌👌
जवाब देंहटाएंअहा सजी चौपाल
नीति के लंबरदार
ठोंक ठोंक कर ताल
कहें ओ बरखुरदार
पासा रक्खो पास
रहो चुप अभी नरम ।।😄😄😃
😀😀😀😀👍👍
हटाएंवाह! बहुत ही बेहतरीन! मजा आ गया पढ़ कर प्रिय मैम😄😄
जवाब देंहटाएंतुम्हें तो सामने दृश्य दिख हो गया होगा प्रिय मनीषा । आनंद लो😀😀
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