बन के सत्तासीन ।
चाहे जितना ज़ोर बजाओ
भैंसें कब सुनती हैं बीन ॥
चरवाहा मदमस्त घूमता
पूँछ पकड़ता माथ चूमता
गहरी नदिया में नहलाता
बैठ पीठ चहुँओर ढूँढता
हरी घास का नर्म मुलायम
विस्तृत एक कालीन ।।
पगुराना वो सीख गईं
दूध की नदियाँ सूख गईं
लिए कमंडल खड़े हुए हम
लेरुआ की मिट भूख गई
थैला बोतल बिके धकाधक
पड़रू दूध विहीन ।।
धरी खोखली हाँडी है
गोरखधंधा चाँदी है
हड्डी सत रोटी चुपड़ी
लक्ष्मण रेखा फाँदी है
मावा मिश्री घोट मिलाया
पर्व हुआ रंगीन ।।
भैंसें कब सुनती हैं बीन ।।
**जिज्ञासा सिंह**
बहुत खूब जिज्ञासा !
जवाब देंहटाएंआजकल भैंसे किसी की बीन को सुनती तो नहीं लेकिन उसे ख़ुद बड़े शौक़ से बजा रही हैं और अपनी ढपली पर अपना राग भी गा रही हैं.
बहुत बहुत आभार आदरणीय।
हटाएंआपकी सार्थक प्रतिक्रिया मेरे सृजन का आधार है, आपको मेरा सादर नमन और वंदन ।
बहुत बढिया शिल्प और सार्थक लक्ष्य को भेदती मर्मांतक सार्थक व्यंग रचना प्रिय जिज्ञासा जी।सच में अपनी धुन में जी रहे लोगों को अब सत्तासीनों का प्रलाप सुनने का समय नहीँ। वे बजातें रहें अपनी बीन पर भैसें हैं अपनी धुन में लीन।😃
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सखी !
हटाएंआपकी सार्थक प्रतिक्रिया मेरे नवसृजन का आधार है ।
अंकमिलन सखी ।
एक पूरी की पूरी विडंबना को आपने खूब शब्दों में बांधा ज्रूोति जी...पगुराना वो सीख गईं
जवाब देंहटाएंदूध की नदियाँ सूख गईं
लिए कमंडल खड़े हुए हम
लेरुआ की मिट भूख गई
थैला बोतल बिके धकाधक
पड़रू दूध विहीन ।।...वाह
बहुत बहुत आभार अलकनंदा जी।
हटाएंआपके वाह ने दिन बना दिया ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 14 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी ।
हटाएंमेरी रचना को "पांच लिंकों का आनंद" में शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया मेरा हार्दिक नमन और बंदन।
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (14 मार्च 2022 ) को 'सपेरे, तुम्हें लगता है तुम साँप को नचा रहे हो' (चर्चा अंक 4369) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी, नमस्कार !
हटाएंचर्चा मंच में रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन।
दो दो मंचो पर आपने मेरी रचना को चुना । मेरा अहोभाग्य । कितना भी शुक्रिया करूं कम है।
मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
वाह बहुत ही शानदार व्यंग्य प्रिय मैम😄
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रिय मनीषा।
जवाब देंहटाएंवर्तमान हालातों पर तीखा कटाक्ष करती प्रभावशाली रचना
जवाब देंहटाएंबहरी बनी व्यवस्था पर एक करारी चोट
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व्यंगात्मकअभिव्यक्ति प्रिय जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक व्यंग,जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंलाजवाब!
जवाब देंहटाएंलाजवाब व्यंग्यात्मक सृजन ।
जवाब देंहटाएंवर्तमान हालातों पर तीखा कटाक्ष करती व्यंग्यात्मक रचना
जवाब देंहटाएंवर्तमान हालातों पर तीखा कटाक्ष करती व्यंग्यात्मक रचना
जवाब देंहटाएं