दुल्हन जैसी सजी
फागुनी आई मेरे द्वारे
पहन बसंती चुनर,
माँग में टेसू रंग सजा रे ।।
क्षण क्षण मे वह रूप बदलती
कजरारी रतनारी
बदली जैसे केश उड़ाती
आज समीरा हारी
झाँझर की धुन सुन
धरती ने अपने अंक पसारे ।।
बौराया है बाग देख कर
मनुहारी ये छवियाँ
चटक चिहुक कर खिल खिल जाएँ
ले अंगड़ाई कलियाँ
भौंरा गाए गीत मधुर धुन
कुंजन वन विहँसा रे ।।
उड़े गुलाल अबीर अंगन
चौबारा रंग नहाए
बालवृंद पिचकारी ले
हैं गलियन धूम मचाए
साजन हैं परदेस
सजनियाँ ड्योढी बैठ निहारे ।।
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसाजन परदेस गए हैं तो फिर काहे की होली, काहे का फाग?
बहुत बहुत आभार आपका नमन और वंदन 🌺👏
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 17 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार आपका !
जवाब देंहटाएंरचना का चयन करने के लिए आपका नमन और वंदन 🌺👏
"झाँझर की धुन सुन
जवाब देंहटाएंधरती ने अपने अंक पसारे" ।।
अहा!कितना मोहक समा है और पी कहीं दूर आपने तो रंग के साथ विरह लिख दिया ।
बहुत मोहक रचना।
वाह होली के सुन्दर दृश्य दिखाती अच्छी रचना , हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई। राधे राधे।
जवाब देंहटाएंहोली का भूतभी सुंदर गीत।
जवाब देंहटाएंबौराया है बाग देख कर
जवाब देंहटाएंमनुहारी ये छवियाँ
चटक चिहुक कर खिल खिल जाएँ
ले अंगड़ाई कलियाँ
भौंरा गाए गीत मधुर धुन
कुंजन वन विहँसा रे ।।
फाग और बासंती अनुराग भरी मधुर रचना प्रिय जिज्ञासा जी | हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं|
बहुत सुंदर कविता
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