तलाश जारी है,
जारी थी उनकी, जो अनिवार्यत है
जो निर्विकारी है ।
कूल मझाते भटकते
कदमों की दिशा भ्रमित हुई कई बार
एक अदना सा दृश्य नहीं दिखा
बोझ की गठरी बड़ी भारी है ॥
क्यों कर अंधा सा है मन
जो दिखे वही खोजता, वही ढूँढता
बार बार करूँ प्रतिकार
धुजा से उतारने की तैयारी है ॥
एक डिबिया में बंद कर लूँ
या फैला दूँ यहाँ से वहाँ अंबर तक
सब कुछ परिलक्षित है
भाव से भरी उदारी है ॥
अपरिमित ध्रुवों को समेटे
विस्तार धारे अपने अंक में
क्या कुछ नहीं गर्भ में भरा
जगत आधारी है ॥
न जानों तो अंजान सी लगी
खाका छान लिया जग का
पलट कर उधेड़ा, बार बार देखा
वो नर है न नारी है ॥
विभूषित सुशोभित ब्रह्मऋषि की जटा जैसी घनी
सदियों से आभा बिखेरती
स्व में विश्व समेटे निमग्न अलंकृत,
सर्व ज्ञान दायिनी पुस्तक हमारी है ॥
**जिज्ञासा सिंह**
बड़ी भारी दार्शनिक कविता लिख मारी जिज्ञासा !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सर।
हटाएंकरबद्ध सादर अभिवादन।
बहुत ही बढ़िया और सुन्दर कविता लिखा है आपने।♥️🌻
जवाब देंहटाएंबहुत आभार शिवम जी ।ब्लॉग पर आने के लिए आपका बहुत धन्यवाद।
हटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंबहुत आभार कविता जी ।ब्लॉग पर आपके स्नेह के लिए आपका बहुत धन्यवाद।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 25 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी, आपका बहुत बहुत आभार ।
हटाएंरचना के चयन के लिए कोटि कोटि नमन और वंदन ।
मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 25 अप्रैल 2022 को 'रहे सदा निर्भीक, झूठ को कभी न सहते' (चर्चा अंक 4410) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी, नमस्कार !
हटाएंआपका बहुत बहुत आभार ।
रचना के चयन के लिए कोटि कोटि नमन और वंदन ।
मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर कविता, जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ज्योति जी ।ब्लॉग पर आपके स्नेह के लिए आपका बहुत धन्यवाद।
हटाएंविभूषित सुशोभित ब्रह्मऋषि की जटा जैसी घनी
जवाब देंहटाएंसदियों से आभा बिखेरती
स्व में विश्व समेटे निमग्न अलंकृत,
सर्व ज्ञान दायिनी पुस्तक हमारी है ॥
बहुत सुन्दर !! पुस्तकों के सम्मान में अत्यंत सुंदर सृजन ।
बहुत आभार मीना जी ।ब्लॉग पर आपकी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत धन्यवाद।
हटाएंक्या लिखा है आपने🌷 बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार विभा जी ।ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति के लिए आपका बहुत धन्यवाद, नमन और वंदन ।
हटाएंकिताबों से अच्छा साथी कोई नहीं।
जवाब देंहटाएंजी,बिलकुल सही ।बहुत आभार सखी ।
हटाएंbahut sneh
हटाएंबहुत सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आदरणीय सर ।ब्लॉग पर आपके आगमन के लिए आपका बहुत धन्यवाद, नमन और वंदन।
जवाब देंहटाएंअपरिमित ध्रुवों को समेटे
जवाब देंहटाएंविस्तार धारे अपने अंक में
क्या कुछ नहीं गर्भ में भरा
जगत आधारी है... बहुत सुंदर सृजन।
सादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी ।
हटाएंअर्थपूर्ण और सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवाह
बधाई
बहुत बहुत आभार ज्योति जी । सादर नमन एवम वंदन ।
हटाएंस्व में विश्व समेटे निमग्न अलंकृत,
जवाब देंहटाएंसर्व ज्ञान दायिनी पुस्तक हमारी है ॥
दो पंक्तियों में ही पुस्तक का सार समेट लिया, बेहतरीन सृजन जिज्ञासा जी 🙏
बहुत बहुत आभार कामिनी जी । सादर नमन एवम वंदन।
हटाएंअद्भुत ! निराली कविता !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार नूपुर जी ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका । ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति का हार्दिक स्वागत है।
जवाब देंहटाएंस्व में विश्व समेटे निमग्न अलंकृत,
जवाब देंहटाएंसर्व ज्ञान दायिनी पुस्तक हमारी है ॥...वाह! पुस्तकों का सीधा संबंध हमारी जिज्ञासा से है।
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
हटाएंक्या कुछ नहीं गर्भ में भरा
जवाब देंहटाएंजगत आधारी है... बहुत सुंदर सृजन।
पुस्तकें हमेशा सच्ची साथी । यथार्थ सृजन ।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंसर्वज्ञान दायिनी पुस्तकें...
लाजवाब सृजन ।
वाह!! बहुत खूब प्रिय जिज्ञासा!
जवाब देंहटाएंपुस्तकें सच में सब हैं।एक दीपक, एक दोस्त, एक मार्गदर्शक और एक देवता भी।सभी कुछ समेट लिया आपने रचना में---
❤
विभूषित सुशोभित ब्रह्मऋषि की जटा जैसी घनी
जवाब देंहटाएंसदियों से आभा बिखेरती
स्व में विश्व समेटे निमग्न अलंकृत,
सर्व ज्ञान दायिनी पुस्तक हमारी है ॥
क्या बात है!! वाह वाह वाह सिर्फ वाह!!!👌👌👌👌❤