अगर पायल मेरी बोले (गीत)

 

रुको  ! 

देखना मुझको,

स्वयं की छवि है पानी में 

ढूँढना है 

अभी अंतर

बहावों की रवानी में 


जो ठहरी सी हुई काई में,

एक मछली फँसी मचले 

फड़कते पंख हैं उसके

करे घर्षण आह निकले 

वही घर्षण चले दिन रात 

मेरी जिंदगानी में 


है पानी प्राण उसका 

और मेरी ये हवाएँ हैं,

मगर घटता सरोवर

देख कर हँसती फजाएँ हैं,

मछलियाँ डूबकर मरती,

रहीं मेरी कहानी में॥


खुले आकाश का पंक्षी,

उड़े स्वच्छंद पर खोले

ठिठक जाते कदम रह-रह

अगर पायल मेरी बोले

रहे बंधक मेरे घूँघरू

भरी चढ़ती जवानी में॥


 नींदों में सजा सपना,

 सपने में कोई रहबर 

जगा दे जो ऊनींदेपन से,

देखूँ नैन मैं भरकर 

है क्या अंतर समझ ,

जाए दासी और रानी में 


**जिज्ञासा सिंह** 


31 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 16 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय सर।मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 16 मई 2022 को 'बुद्धम् शरणम् आइए, पकड़ बुद्धि की डोर' (चर्चा अंक 4432) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. "मछलियाँ डूबकर मरती,

    रहीं मेरी कहानी में॥" वाह जिज्ञासा की जिज्ञासा कई जिज्ञासाएँ जगा जाती हैं।

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  4. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया का बहुत बहुत आभार ।

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  5. आपकी इस कविता की गुणवत्ता बहुत ही उच्च है जिज्ञासा जी, इसमें कोई संदेह नहीं।

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    1. ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति अतिरेक हर्ष दे गई । हर रचना आपकी बाट जोहती है ।
      आपकी प्रतिक्रिया रचना का संबल होती है । पता चलता है लेखन का आशय ।
      स्नेह की आभारी हूं ।

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  6. बड़ा ही फ़लसफ़ा देखा, तेरी छोटी कहानी में

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  7. ज़िन्दगी की कहानी में न जाने क्या क्या और कैसे घटित हो रहा है । बहुत अच्छी रचना ।

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी ।आपको मेरा सादर अभिवादन।

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  8. प्रकृति का दर्द कहती एक शानदार रचना जिज्ञासा जी...क्‍या खूब ही कहा आपने कि..है पानी प्राण उसका

    और मेरी ये हवाएँ हैं,

    मगर घटता सरोवर

    देख कर हँसती फजाएँ हैं,

    मछलियाँ डूबकर मरती,

    रहीं मेरी कहानी में॥...वाह

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    1. बहुत बहुत आभार अलकनंदा जी । सादर नमन आपको ।

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  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. रुको न !
    देखना मुझको,

    स्वयं की छवि है पानी में ।

    ढूँढना है

    अभी अंतर

    बहावों की रवानी में ॥


    चिंतनपरक सृजन आदरणीय जिज्ञासा जी,मगर समस्या तो वहीं है फुर्सत किसके पास है रुक कर देखने और सोचने की सादर🙏

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    1. सार्थक प्रश्न उठाती सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार सखी ।

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  11. दर्द और आँसू का रिश्ता
    खुशी और मुस्कान की तलाश में
    नीर में रहके भी सीप तड़पे
    ताके मेघ,बूँदभर स्वाति की आस में।
    -----
    अत्यंत भावपूर्ण सृजन जिज्ञासा जी।

    जो ठहरी सी हुई काई में,
    एक मछली फँसी मचले ।
    फड़कते पंख हैं उसके
    करे घर्षण आह निकले ॥
    वही घर्षण चले दिन रात
    मेरी जिंदगानी में ॥
    इन.पंक्तियों ने छू लिया मन।
    प्रवाहपूर्ण सुंदर लेखन।

    सस्नेह
    ----//



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    1. वाह ! रचना के मर्म तक पहुंचती आपकी सुंदर पंक्तियों का हार्दिक स्वागत है ।
      बहुत बहुत आभार आपका प्रिय सखी ।

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  12. कितना ज़हरीला पानी होगा..."मछलियां डूबके मरती रहीं ,मेरी कहानी में"!
    गहन रचना !👌

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  13. जीवन के विभिन्न आयामों में एक आयाम ये भी होता है जो सच में बड़ा जहरीला हो सकता है ।
    एक सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।

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  14. जो ठहरी सी हुई काई में,
    एक मछली फँसी मचले ।
    फड़कते पंख हैं उसके
    करे घर्षण आह निकले ॥
    वही घर्षण चले दिन रात
    मेरी जिंदगानी में ॥
    हृदयस्पर्शी गहन सृजन ।।

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  15. जब तक यह तलाश जारी है तब तक ही जीवन जीवन है, स्पंदन है ! इसके हर मोड़ पर कहीं दर्द है कहीं उल्लास, सुंदर सृजन !

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  16. प्रिय जिज्ञासा जी,गहन वेदना की अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।ये पँक्तियाँ मन को बींध गयी 👌👌👌
    है पानी प्राण उसका
    और मेरी ये हवाएँ हैं,
    मगर घटता सरोवर
    देख कर हँसती फजाएँ हैं,
    मछलियाँ डूबकर मरती,
    रहीं मेरी कहानी में॥////

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  17. सुंदर लेखन शानदार रचना जिज्ञासा जी

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