ऐ कलम तुझको खड़ा होना पड़ेगा ।
हर घृणा औ पाप अब धोना पड़ेगा ॥
राह रोकेंगे सुनामी बन समंदर,
काट धारा नाव को खेना पड़ेगा ॥
आँधियाँ संग ले बवंडर जब उड़ेंगी,
उड़ हवा के साथ नभ छूना पड़ेगा ॥
चल पड़ेंगी गोलियाँ बंदूक़ ग़र तो,
तान सीना सामने चलना पड़ेगा ॥
हर मनुज की प्रेरणा तू है युगों से,
प्रेरणा का पुष्प बन खिलना पड़ेगा ॥
जिज्ञासा सिंह
लखनऊ
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अभिलाषा जी ।
हटाएंभावपूर्ण
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंखुबसूरत रचना .बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत आभार जयकृष्ण जी ।
हटाएंवाह ! हौसला बुलंद हो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय सर।
हटाएंबहुत सुंदर सृजन है जिज्ञासा जी। कलम के
जवाब देंहटाएंविषय में आपने सत्य कहा है।
बहुत बहुत आभार वीरेन्द्र जी ।
हटाएंउचित कहा है आपने जिज्ञासा जी, कलम की ज़िम्मेदारी है समाज को सही पथ का ज्ञान दे, जो ग़लत है उसे ग़लत कहे और किसी लोभ या भय के आगे ना झुके, बल्कि प्रेम का प्रकाश फैलाए
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी।
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